शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

जमींं खा गई, आसमां कैसे-कैसे

यह ज़मीन खा गयी आसमान कैसे-कैसे?


सलीम मलिक एडवोकेट "जॉर्नलिस्ट"
सबसे बड़ी जेल, जिसके हम सब कैदी है, वह इस बात का डर है, कि लोग क्या कहेंगे।


सुप्रभात 


यह कहावत है लेकिन शत-प्रतिशत सही और सच है ,कई आये ,कई चले गए, कुछ लोग है ,जो याद है ,कुछ लोग है ,जिन्हे लोग भूल गए ,,कोटा में ,, मुन्ना कामरेड ,उर्फ़ कॉमरेड हमीद ,इसी तरह  की बेहतरीन शेर दिल शख्सियत है,जिसकी हुंकार से हाड़ोती ही नहीं ,,पूरा राजस्थान काँप उठता था। ऐसी शख्सियत ,जिसकी भाषा शैली के आगे ,सुपर स्टार अमिताभ बच्चन भी फेल्योर साबित हो चुके थे। लेकिन कुछ लोग होते है ,जिन्हे उनके दोस्त याद रखते है, याद करते है ,,और दूसरों के लिए भी उनकी यादें ताज़ा रखते है। कॉमरेड हमीद उर्फ़ मुन्ना कामरेड की बहादुरी के क़िस्से तो , उनकी हम उम्र लोगों के दिल दिमाग में आज भी है। लेकिन उनकी शख्सियत को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए भी कुछ होना चाहिए। ऐसा मेरा मानना है ,,जी हाँ दोस्तों ,संघर्ष का एक नाम ,,कॉमरेड हमीद उर्फ़ मुन्ना कॉमरेड ,,जो ,,इंक़लाब ज़िंदाबाद ,नारे को सार्थक करने वाली शख्सियत रहे ,जिसने मज़दूरों को पुलिस की गोलियों से बचाने के लिए ,,जे के गोली कांड में ,,अपनी जान जोखिम में डालकर ,निहत्थे होने पर भी ,,हथियारों से लेस ,गोलियां दागती हुई ,पुलिस से संघर्ष ,किया कई मज़दूरों को पुलिस की गोलियों के निशाने से बचाया ,,उधोगों के ,मालिक ,प्रबंधक ,,कॉमरेड हमीद को खरीदने के लिए ,,नोटों  की गड्डियां इकट्ठी करते रहे लेकिन कॉमरेड हमीद मज़दूरों की हित संघर्ष में बिना बिके ,बिना डरे ,,डटे रहे ,मुक़ाबला करते रहे ,,,कॉमरेड हमीद ने मज़दूर साथियों ,महिलाओं को स्वरोज़गार से जोड़ने के लिए ,,अनेक सोसायटी बनाकर ,,कई लघु उद्योग संचालित किये ,,खासकर क्षमा बीड़ी के नाम से उनका बीड़ी उधोग मज़दूरो को रोज़गार देने के लिए काफी था ,,पुलिस अत्याचार हो ,,सियासी अनाचार हो ,,प्रशासनिक लापरवाही ,या फिर लालफीताशाही हो ,,,मज़दूरों के हक़ में उनके इन्साफ के लिए ,कॉमरेड हमीद निर्भीक होकर जाते ,,टकराते ,,मज़दूरों का काम करवाते ,अनेक बार संघर्ष में घायल भी होते ,,पीटते  भी ,पिटते भी ,,मुक़दमे भी लगते ,,जेल भी जाते ,,घायल होने पर अस्पताल भी जाते ,लेकिन वोह ख़ौफ़ज़दा नहीं हुए ,मज़दूरों के लिए जान देने को तत्पर रहकर उन्हें इंसाफ मिले ,इसके लिए वोह मरते दम तक संघर्ष करते रहे ,,अनेकों बार पुलिस अधिकारियों के अत्याचार के खिलाफ उनके संघर्ष को लेकर उनके खिलाफ पुलिस ने अनेक मुक़दमे दर्ज किये ,गिरफ्तार किया ,,लेकिन वोह इन्साफ के हक़ संघर्ष के लिए डटे रहे ,,आपात काल का वक़्त ,,,कॉमरेड हमीद ,बेहतरीन पहलवान ,,बेहतरीन तेराक , बहतरीन पटेबाज़ ,,बेहतरीन वक्ता ,,इसीलिए उनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस के छापे ,पुलिस कोशिशों के बावजूद भी उन्हें गिरफ्तार न कर सकी ,आखिर में जब बात पुलिस की नौकरी पर आयी ,तो खुद मीसाबंदी के रूप में सरेंडर हुए ,कोटा जेल में पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्ण कुमार गोयल ,, पूर्व मंत्री ललित चतुर्वेदी ,,पूर्व मंत्री हरी  कुमार औदीच्य , ,सहित सभी मीसाबंदियों के ,,कॉमरेड हमीद जेल में ,केयर टेकर के रूप में रहे ,,उन्हें वक़्त  पर राजनितिक क़ैदियों की तरह खाना और सुविधाएं ,मिले इसलिए लिए उन्होंने जेल में भी ,,आमरण अनशन किये ,संघर्ष किया ,और जेल में बंदी रहते हुए ,पुलिस ज़ुल्म ,अत्याचार ,हिंसा के शिकार भी हुए , कालकोठरी में रखे गए ,,लेकिन ,कॉमरेड हमीद के खौफ से ,,सभी कोटा के मीसाबंदियों को लगातार उनका हक़ दिया जाता रहा ,परिजनों से मेल मिलाप कार्यक्रम रहा ,,कॉमरेड हमीद को जनता पार्टी कार्यकाल में ,,छबड़ा से टिकिट दिया गया ,,लेकिन उन्होंने कोटा के स्वाभिमान को ठेस न लगे ,इसलिए छबड़ा से जनता पार्टी का टिकिट ठुकरा ,दिया ,कोटा ,लाडपुरा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़े ,,उन्हें जनता पार्टी की सरकार में भैरोसिंह शेखावत ने ,कई मंत्री दर्जा चेयरमेन पद ऑफर किये ,लेकिन कॉमरेड हमीद ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़कर मज़दूरों के लिए ,दलितों के लिए ,अल्सपंख्यकों के लिए हक़ संघर्ष के साथी बने रहना चाहते थे इसीलिए उन्होंने ,केंद्र सरकार और राजस्थान सरकार के सभी ऑफर ठुकरा दिए ,,हेमवती नंदन बहुगुणा ,,जब अमिताभ बच्चन के खिलाफ चुनाव लड़े ,अमिताभ बच्चन ,,सुपर स्टार , जया बहादुडी ,सुपर स्टार ,दोनों उत्तरप्रदेश ,बहुगुणा की चुनावी सभा में पीछे जाकर खड़े होते और आम जनता बहुगुणा का मंच छोड़कर सीधे ,अमिताभ बच्चन के पीछे हो लेती ,,उत्तरप्रदेश गवाह है ,,जब माइक कॉमरेड हमीद ने संभाला ,,अमिताभ बच्चन ,जया बहादुरी के पीछे लोग भागने लगे ,तब ,,कॉमरेड हमीद की ज़बरदस्त आवाज़ ,भाषण शैली से मंत्रमुग्ध होकर ,,अमिताभ बच्चन के पीछे भागने वाले लोग पलटने लगे ,,कॉमरेड हमीद को सुनने लगे ,कॉमरेड हमीद के तार्किक भाषण इसके बाद ,,तालियों की गड़गड़ाहट के बीच ,, इतिहास बन गया ,और राष्ट्रिय स्तर के मंचो पर कॉमरेड हमीद को बुलाया जाने लगा ,,,पहलवानी ,,तैराकी ,,वाद विवाद ,,भाषण शैली ,,मज़दूरों की नेतागिरी ,संघर्ष की कहानी के साथ ,कॉमरेड हमीद को शेरो ओ शायरी ,अदब ,साहित्य का भी शोक था ,वोह कई अखिल भारतीय मुशायरे में खुद भी अपनी शायरी पढ़ते और नामचीन शायरों को बुलाकर मंच सांझा करते ,,वाहवाही लूटते ,,,,कोटा के दंगे ,फसादात सहित ,पुलिस ज़ुल्म के वोह खुद गवाह रहे है ,,,,कोटा में 1989 ,,,1992 ,,के फसादात ,,कॉमरेड हमीद का सीधा प्रोटेक्शन कर्फ्यू और कर्फ्यू ढील के दौरान ,क़ौमी एकता के पैगाम के साथ पीड़ितों के हाल जानना ,उनके साथ हुए ज़ुल्म ज़्यादती के खिलाफ आवाज़ उठाना ,,लोगों को आज भी याद है ,,,कोटा में जुलुस निकला ,फसाद हुआ ,अफरा तफरी मची ,,हिंसा हुई ,बेहिसाब , मौतें ,,आगजनी हुई ,,,कॉमरेड हमीद ने हिम्मत नहीं हारी ,वोह हिन्दू मुस्लिम  बस्तियों में क़ौमी एकता के पैगाम के साथ ,मिलजुलकर रहने की  शांति सद्भाव की , सीख के संदेश के साथ घूमते रहे ,लेकिन इसी बीच सी आर पी सी 144 के प्रावधान के तहत जिला कलेक्टर ने ,,टिपटा ,पाटनपोल ,घंटाघर ,मक़बरा ,,बजाजखाना ,रामपुरा क्षेत्र ,,किसी भी जुलुस के लिए प्रतिबंधित कर दिया ,,,,लेकिन सरकारें बदली ,सरकार के दबाव में ,भाजपा का विजय जुलुस इसी क्षेत्र से ,,जब निकला ,तो कॉमरेड हमीद ने दूसरे दिन ,,घंटाघर पर एक मुशायरे का ऐलान कर दिया ,,धारा 144 का प्रतिबंध ,दूसरी तरफ कॉमरेड हमीद की मुशायरे की ज़िद ,उनका कहना था ,,जब क़ानून तोड़कर ,सियासी पार्टी भाजपा का जुलुस निकल सकता ,है तो फिर मुशायरा क्यों नहीं हो सकता ,घंटाघर पर मुशायरा तो होकर रहेगा ,इसी नारे के साथ ,कॉमरेड हमीद ने ,मुशायरे की तय्यरियाँ शुरू कर दी ,,,घंटाघर पुलिस छावनी बन गया ,,लोगों की समझाइश हुई ,लेकिन कॉमरेड हमीद मुशायरे के लिए अढे रहे ,डी  आई जी सहित पूरी पुलिस फ़ोर्स , पूरे  प्रशासिक अधिकारी ,शहर के ज़िम्मेदार उन्हें समझाने की कोशिश में थे ,उनका कहना था ,या तो उलंग्घन के लिए समान क़ानून लागू करो ,,मुक़दमा दर्ज करो ,,नहीं तो हमे भी  मुशायरा करने दो ,,,बस ,कहा सुनी हुई ,उन्होंने इंक़लाब ज़िंदाबाद का नारा ,लगाया फिर पुलिस बेरहम हमला उन पर शुरू हुआ ,,वोह लगातार लाठियां खाते रहे ,लेकिन उनके मुंह से उफ्फ  न निकला ,सिर्फ इंक़लाब ज़िंदाबाद ,इंक़लाब ज़िंदाबाद ,,माहौल तनावपूर्ण हुआ ,, पुलिस अधिकारीयों की लाठियां टूट चुकी थी ,, सभी अधिकारी थक चुके थे ,,हांफने लगे थे ,,कॉमरेड हमीद की कई जगह की हड्डियां टूटी थी , बदन से खून बह रहा था ,लेकिन वाह कॉमरेड ,,एक आह न निकली ,सिर्फ इंक़लाब ज़िंदाबाद ,,इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारों से ,मक़बरा थाने की बैरक गूंज रही ,,थी  ,,आखिर फिर समझाइश हुई ,,सभी लोगों ने प्रशासन को तैयार किया ,के यह मुशायरा होकर रहेगा ,,तभी यह मुन्ना कॉमरेड अपना संघर्ष खत्म करेंगे ,,बस घंटाघर पर ,,अघोषित कर्फ्यू के बीच कृत्रिम मंच तैयार हुआ ,एक ठेले पर कॉमरेड हमीद घायल होने पर भी ,सहारे से खड़े हुए ,इंक़लाब ज़िंदाबाद का नारा लगा ,कुछ शान्ति समिति के लोग ,,सैकड़ों पुलिस कर्मी ,,और फिर कॉमरेड हमीद ने अपनी एक ग़ज़ल पढ़ी ,,ज़ुल्म  की इंतिहा का फलसफा और हिम्मत से मुक़ाबले की ताक़त के बारे में समझाय ,,फिर इंक़लाब ज़िंदाबाद हुआ और ,घायल शेर कॉमरेड हमीद बेहोश हो गए ,,बस फिर अस्पताल में इलाज हुआ ,गिरफ्तारी के खिलाफ निगरानी याचिका पेश हुई ,क्योंकि कॉमरेड हमीद ने ज़मानत पर छूटने से इंकार कर दिया था ,,निगरानी याचिका में ,कॉमरेड हमीद की गिरफ्तारी अवैध घोषित ,हुई वोह रिहा हुए ,लेकिन उनके शरीर पर कई अंदरूनी चोटें थी फिर वोह ठीक नहीं हो सके ,,और एक दिन अचानक ,खबर  आयी के संघर्ष की यह कहानी ,,मज़दूर ,,दलितों ,अल्पसंख्यकों ,पिछड़ों के इन्साफ की यह बुलंद आवाज़ ,,,संघर्ष की यह दहाड़ ,,खामोश हो गयी ,,,,,,यह शख्सियत आज भी लोगों के दिल ,दिमाग में है ,, इनका संघर्ष ,इनके क़िस्से ,इनकी बहादुरी के बाद भी ,,विनम्रता के क़िस्से ,इन्हे खरीदने की कोशशों के बाद हारचुके लालाओं के क़िस्से ,,पूंजीपतियों में इनके खौफ के माहौल के हालात ,अधिकारीयों ,,नेताओं में इनकी इन्साफ की हुंकार की दहशत ,इनके साथ वाले लोग आज भी याद करते ,है ,, और कहते है ,,सच कॉमरेड अब्दुल हमीद चाहे प्यार मुन्ना कहलाता हो ,लेकिन सच में वोह इंक़लाब था ,वोह ज़िंदाबाद ,,था ,, मुन्ना कॉमरेड की पहली बरसी पर ,जब सभी लोग सर्वदलीय बैठक के साथ श्रद्धांजलि सभा में एकत्रित हुए तब ,,कॉमरेड हमीद की स्मृति में ,कोटा वक़्फ़ सम्पति , बाबा जंगलीशाह के महफ़िल खाने का नाम , उनकी स्मृति में  नामकरण करने का प्रस्ताव पास हुआ ,वक़्फ़ के पदाधिकारी भी उस बैठक में मौजूद थे ,सहमति बनी ,घोषणा हुई ,लकिन अफ़सोस आज भी इस महफ़िल खाने का नाम , कॉमरेड अब्दुल हमीद की स्मृति में नामांतरित नहीं हो सका है ,,,,कॉमरेड हमीद के भानजे एडवोकेट मोहम्मद अली मेरे क़रीबी बचपन के निकटतम वफादार दोस्तों में से है ,, इसीलिए मेरा भी उनसे नज़दीकी रिश्ता रहा ,बाद में पत्रकारिता के नाते ,वकालत के नाते ,,उनके आंदोलनों के क़िस्से काफी सीखने  समझने को मिले।


एडवोकेट अख्तर खान


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