भाजपा का गम 'संपादकीय'
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के विधानसभा-चुनाव भाजपा के लिए चुनौती से भी बढ़कर है। दिल्ली विधानसभा-चुनाव में दो बार भाजपा को बौनें कद का एहसास कराया जा चुका है। पिछले विधानसभा-चुनाव में भाजपा की खूब किरकिरी हुई थी। जबकि उस दौर को 'भाजपा का स्वर्णिम दौर' कहा जाने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। देश के ज्यादातर राज्यों में भाजपा कमल खिलाने में सफल रही। संपूर्ण भारत में भाजपा ने कुल 84% क्षेत्र में एकछत्र शासन स्थापित करने में महारत हासिल कर ली थी। वजह चाहे जो भी रही हो। आज भाजपा 35% राज्यों में सत्ता प्राप्त करने में सफल रही है। दिल्ली विधानसभा-चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह को दायित्व सौंपा गया है। लेकिन दिल्ली फतह करना भाजपा के लिए 'टेढ़ी खीर' ही नजर आ रही है। अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक नीतियां विपक्षियों पर एक बार फिर भारी पड़ने वाली है। जनता को मिलने वाली सुविधाओं के बलबूते आम आदमी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार निर्वाचित होने का रास्ता और यात्रा बहुत छोटी हो गई है। दिल्ली में भाजपा की जद्दोजहद कुछ लाभकारी सिद्ध अवश्य होगी। दिल्ली की जनता विवेकपूर्ण निर्णय लेने में माहिर है। जिसका प्रमाण भी रहा है कि भाजपा की 31 सीटों पर जीत के बाद पुनः चुनाव होने पर भाजपा को 70 सीटों में से कुल 3 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। हालांकि राजू श्रीवास्तव का हास्य व्यंग उस समय बहुत चर्चित भी रहा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि "भाजपा का यही गम है, पहले चार कम थे, अब 4 से भी कम है। पिछले चुनाव और दिल्ली सरकार का सेवा-भाव जनता के मन में घर कर चुका है। जिसको निकालने या कम करने का सतत प्रयास दिल्ली भाजपा के द्वारा नहीं किया गया है। गृहमंत्री का प्रयास भाजपा को बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। लेकिन प्रत्याशियों की छवि और लोकप्रियता राह का बड़ा कांटा साबित होंगे।
राधेश्याम 'निर्भय-पुत्र'
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