पुलिसवाला खाकी उतार कर कभी भी पहन सकता है खादी।
हैदराबाद पुलिस पर ऊंगली उठाने वाले नेताओं से कहें ज़रा पहन कर दिखाएं खाकी
नई दिल्ली! हैदराबाद रेप कांड मैं आज पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटर को लेकर हमारे देश के कुछ कर्णधारों ने सवाल उठाए हैं। जिनमें प्रमुख रूप से "एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट" मेनका गांधी ने जो बात कही वह बात आम आदमी के दिल को चुभने वाली है। मेनका गांधी ने कहा कि - ये जो भी हुआ है बहुत भयानक हुआ है इस देश में। आप किसी को भी जान से मार नहीं सकते क्योंकि बस आप मारना चाहते है। अगर इस तरह से न्याय करना है तो क्या फायदा है कानून का ? ऐसे तो आप बस बंदूक उठाओ और जिसको भी मारना है मारो।
ससम्मान मेनका गांधी की इस बात का जवाब कोई क्यों नहीं देता हूँ भाई ! और सोशल मीडिया पर उनके इस बयान को लेकर गुस्सा निकल रहे युवाओं को भी एक बात बताना चाहता हूं। देखो भाई ! मैडम मेनका गांधी पर नाराज होने की कोई आवश्यकता नहीं है। वह वैसे भी एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट हैं। उनके जानवर प्रेम से सारा देश वाकिफ है। कुत्ते बिल्लियों के भले पर काम कर कर के उन्होनें काफी धन सरकारों से उठा उठा कर जानवरों की सेवा में लगाया है। जानवरों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना उन्होंने अपना धर्म मान रखा है।
फिर डॉ प्रियंका रेड्डी के साथ ऐसा घृणित कृत्य करके जिंदा जला देने *वाले लोग इंसान तो वैसे भी कहलाने योग्य है नहीं !!! क्योंकि उनकी हरकत अपने आप में जानवारियत का सबसे बड़ा प्रमाण थी ।* अब जब उन जानवरों को जानवरों की मौत मार दिया गया है तो एक एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट भला कैसे चुप बैठ सकती थी ? सो भाई !!! मेनका गांधी को अपनी बात कहने दो और आप इस नए भारत का उदय होते हुए देखो। 'दाद दीजिये ऐसे बहादुर पुलिसकर्मियों को जिनका जमीर अभी तक सिस्टम के बोझ के तले दबकर मरा नहीं हैै।' मेनका गांधी होती कौन है ? यह डिसाइड करने वाली की उस वक्त जब उन चारों को दौराने तफ्तीश क्राइम सीन पर ले जाया जा रहा था तब क्या आलम था ? और किस तरह की मजबूरियां थी वहां मौजूद पुलिस वालों की ? क्या मेनका गांधी आज जो बयान दे रही है और तब भी यही बयान देती यदि वह चारों अपराधी भागने में सफल हो जाते ? तब तो यही मेनका गांधी शायद उन पुलिसकर्मियों को ससपेंड करने की बात कहती दिखाई देती। अपने घर में ऐसी चेंबर में बैठकर देश के मुद्दों पर भाषण देना देने वाले नेताओं को यदि 1 घंटे के लिए भी पुलिस की वर्दी पहना कर तपती धूप में चौराहे पर खड़ा कर दिया जाए तब शायद उन्हें एहसास होगा की पुलिस की वर्दी पहनकर घूमना कितना मुश्किल है ? एक पुलिसवाला खाकी उतारकर खादी कभी भी पहन सकता है। लेकिन एक नेता खादी उतारकर खाकी इस जन्म में नहीं पहन सकता। क्योंकि खाकी पहनने के लिए पढ़ लिख कर , दिन रात मेहनत करके, तैयारी के साथ पुलिस भर्ती की परीक्षा में पास होना पड़ता है। पुलिसवाला बनने के लिए केवल सच झूठ बोलकर जनता को बेवकूफ बनाकर चुनाव जीतना ही काफी नहीं है।'तो ऐसी निर्लज और 'लोगों के खून पर पल रही पराजीवी कौम को* कोई अधिकार नहीं है कि एक मेहनतकश पुलिसकर्मी पर इस तरह की उंगली उठाए।
वहीं कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपने बयान में कहा कि देश कानून के मुताबिक बनाये गए नियमों से चलना चाहिए।इस देश का कोई भी जागरूक नागरिक शशि थरूर से यह क्यों नहीं पूछता कि यदि देश कानून के बनाए हुए नियमों के मुताबिक चलना चाहिए तो निर्भया हत्याकांड के मामले में कैसे अपराधी कानून के नियमों को चकमा देकर निकल गए? यह सवाल मेनका गांधी से भी पूछा गया था जिस पर मेनका गांधी ने कहा कि - यह कानून का दोष है।
इन दोनों महान नेताओं द्वारा दिए गए वक्तव्य को अगर मिलान किया जाए तो यही लगता है कि यह कह रहा है कि - *यह देश एक ऐसे कानून के मुताबिक चलना चाहिए जिस कानून में गलती है। अगर हैदराबाद पुलिस ने कानून में व्याप्त गलती की गली से उन चारों अपराधियों को भाग निकलने का मौका नहीं दिया है ... तो उन पुलिसकर्मियों ने सही मायने में इस देश में एक नए सशक्त कानून की आधारशिला रखे जाने की और एक मजबूत कदम उठाया है। जिसके लिए व पुलिसकर्मी प्रशंसा के पात्र हैं। यह तो है सच बाकी इस देश में मुझसे बहुत बड़े बड़े समझदार लोग बैठे हैं। जिसको जो सही लगे कहे भाई !!! इस देश में वैसे भी भयानक हदों तक अपनी बात कहने की आज़ादी व्याप्त है। सो मैने भी आज ज़रा हद लांघ दी है।
नरेश राघानी 'मधुकर'
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