नई दिल्ली। उत्तर भारत जहां ठंड से कंपकंपा रहा है, वही यहां ठंड खुद सिकुड़ी-सिकुड़ी, सहमी-सहमी, दुबकी दुबकी नजर आ रही है। ठंड अपने समय पर अपना कब्जा चाहती है और इसलिए वह लगातार दस्तक दे रही है। लेकिन तपती दोपहरी उसकी एक नहीं चलने दे रही है। ठंड ले लेकर अलसुबह और देर रात अपना एहसास कराने में सफल हो पा रही है। लेकिन जो जलवा वह हिमाचल और उत्तराखंड में दिखा रही है वैसा यहां नहीं दिखा पा रही। दिसंबर आधा बीत चुका है और लोग गर्म कपड़े निकाल कर ठंड का स्वागत करने के लिए तैयार है। मगर सूरज महाराज हैं कि मानते ही नहीं है। दोपहरी को वह अपनी बपौती मान बैठे हैं और उस पर अपना दावा छोड़ने को तैयार नज़र नहीं आ रहे।दोपहरी को ऐसा लगता ही नहीं कि दिसंबर आ गया है। आज भी दोपहरी गुनगुनी होने की जगह बजाएं चुभती हुई लगती है। बाहरहाल संदूक में कैद बंद गर्म कपड़े सज़ा काट कर बाहर निकल आए है। साफ-सुथरे होकर अब अपना जलवा दिखाने को बेकरार हैं। बस उन्हें इंतजार है ठंड के पसरने का। गरम दुपहरी के सिकुड़ने का और मौसम के खुशनुमा होने का।
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