शनिवार, 16 नवंबर 2019

पराविद्या की दीक्षा

गतांक से...
आओ पुत्रों विचार क्या है? आचार्यजन क्या कहते हैं? इस संबंध में, मुनिवरो वह कहते हैं उदगीत गाना चाहिए! उदगीत में ही रत रहना चाहिए कि हमारा पुरोहित बनना सार्थक हो जाए! विचार क्या है? आज मैं विद्यालयो की चर्चा कर रहा था! आज ऋषि विश्वामित्र और वशिष्ठ ऋषि की चर्चा हो रही थी! क्योंकि  ऋषि विश्वमित्र अपने में मनन करने वाले और अपनी आभा को उधरवा में व्रत करने वाले रहे हैं! मैं आज तुम्हें विशेष चर्चा देने नहीं आया हूं! विचार केवल यह प्रकट करने के लिए आया हूं कि हमारे यहां बिधाए होनी चाहिए! धनुर्विद्या भी होनी चाहिए, वाजपेई यज्ञ, नरमेध यज्ञ, अश्वमेघ यज्ञ, अग्निष्टोम यज्ञ भी होने चाहिए! क्योंकि विभिन्न प्रकार के यज्ञो का वर्णन प्राय: हमारे वैदिक साहित्य में आता रहता है! उसे जानने में सदैव तत्पर रहें! मेरे पुत्रों विचार-विनिमय क्या हो रहा है? हम देवत्व को प्राप्त करने के लिए आए हैं और वह देवत्व हमारे जीवन का अंग बन कर के उधरवा में गमन कर सकता है! आज मैं तुम्हें विशेष विवेचना देने नहीं आया हूं! विचार चल रहा है कि मैं ऋषि विश्वामित्र के यहां एक वर्ष में दीक्षांत उपदेश होता रहता था! ब्रह्मचारी को दिक्षा भी दी जाती और दीक्षा लेने वाले ब्रह्मचारी अपने में अध्ययन में सदैव तत्पर रहें! भिन्न-भिन्न प्रकार की विद्याओं का चयन होता रहा है! इसी प्रकार प्रत्येक मानव को विचारना है कि हम मानवीय जीवन को उधरवा में गमन कराना चाहते हैं और वही उधरवा में मानव के अंगरक्षक बनकर के, मानव के जीवन को महान, पवित्रतम उपदेश दे सकें! मैं इस संबंध में विशेषता में नहीं ले जा रहा हूं! उदगीत गाता दूर भी नहीं चला जाऊं! विचार केवल यह है कि हम परमपिता परमात्मा की आराधना करते हुए, देव की महिमा का गुणगान गाते हुए! इस संसार सागर से पार हो जाए और अब मेरे प्यारे महानंद जी शब्द उच्चारण करेंगे!


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Thank you, for a message universal express.

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