गतांक से...
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव अथवा मेरे भद्र ऋषि मंडल अभी-अभी मेरे पूज्य पाद गुरुदेव ने परमपिता परमात्मा को पुरोहित संबोधित करते हुए, अपने बड़े भव्य और मार्मिक विचार दिए! की पुरोहित की आवश्यकता रहती है! मेरे पूज्यपाद गुरुदेव ने इस वाक्य में अंतरआत्मा के शब्दों में नवीन रूप मे लाने का प्रयास किया! यह सदैव हमें प्रकाश में रत रहने के लिए अग्रणी बनाते रहते हैं! इसलिए आज मेरे पूज्य पाद गुरुदेव ने पुरोहित के संबंध में जितना कहा है वह बड़ा प्रियतम है! क्योंकि जो राष्ट्र आज 'आम व्रहे' में आज पूज्यपाद गुरुदेव से आज्ञा पाता हुआ! सबसे प्रथम यह जो हमारी वाणी है, यह 'आकाशं भूतं मंडलूं बर्वे' यह मृत्य मंडल में प्रवेश कर रही है और वहां एक विशाल भव्य यज्ञ का आयोजन हुआ! जिसको दृष्टिपात करता हुआ, मेरी अंतरात्मा बड़ी प्रसन्न रहती है! क्योंकि जो अपने हृदय से यज्ञ करते है, उनको आयु प्रदान की जाती है! वह मेरी अंतरात्मा तो यजमान के साथ रहता है और मैं सदा यह उच्चारण करता रहता हूं कि हे यजमान, तेरे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे और तेरी प्रवृत्तियां अखंड बनी रहे! जिससे मानवता अपनी आभा में रत हो सके! मेरे गुरुदेव ने कहा है कि राष्ट्र में पुरोहित होने चाहिए! 'पुरोहिताम् भूतम' राष्ट्र में यदि पुरोहित नहीं होंगे तो राष्ट्र नहीं रहेगा! जो वर्तमान का काल चल रहा है! इसमें पुरोहित का अभाव है, विचारधारा में एक-दूसरे के विचारों में चिंता है और वे चिंतन भी शुभ नहीं कर रहे हैं! क्योंकि राष्ट्र की प्रणाली में आवश्यकता है पुरोहितों की! जैसे ही परमपिता परमात्मा ने संसार को रचने के बाद स्वयं पुरोहित बने और वह स्वयं बनकर के उपदेश दिया! वह 'तेशाम कृतं' का पान करते हुए अपनी-अपनी स्थितियों में रत हो गए और जानने के लिए तत्पर हो गए! मेरे पूज्य पाद गुरुदेव ने अभी-अभी महात्मा विश्वामित्र और वशिष्ठ की चर्चा की है! इनका जीवन तेज, महान और पवित्र रहा है! उनके जीवन में आहार-व्यवहार सदा से पवित्रतम रहते हैं! जिससे बुद्धि का विनाश न हो! परंतु वे भी सील अन्न को पान करते रहते हैं! राष्ट्रीय अन् नको ग्रहण नहीं करते थे! पुरोहित राजा को भी कह सकते हैं, परंतु हे राजन्, तेरा राज्य पवित्र नहीं चल रहा है! हे राजन, तुम्हारे राष्ट्र में प्रजाओ में महानता नहीं है! परंतु पूज्यपाद गुरुदेव ने यह उदगीत गाया, मैं तो यह कहता हूं कि महाभारत के पश्चात पुरोहित का भी सदैव अभाव हो गया! राष्ट्रवेता बने परंतु राजाओं ने पुरोहितों को चुनौती नहीं दी! यदि पुरोहित भी बन गए, तो वे पुरोहित स्वार्थ परत में रत हो गए और स्वार्थ परत मे रत होने के पश्चात यहां सदैव गोदान का ह्रास हो गया! यहां सबसे प्रथम गोधन का अभाव हो गया और अभाव होता ही चला गया और यह जो मेधावी बुद्धि होती है उसका भी अभाव हो गया और यहां से उल्टे मार्ग से सर्वत्रता में गमन कर गए! यहां अन्न में सुगंधी होनी चाहिए, वहां दुर्गंध का वास हो गया! विचार आता रहता है, मैं विशेषता में नहीं जा रहा हूं यह जो आधुनिक काल के जो राष्ट्रवेता है! वह भी वाममार्गी है और प्रजा भी वाम मार्ग के लिए तत्पर हो रही है! उसके आहार-व्यवहार दोनों में त्रुटियां आ गई है! पुरोहित के न रहने से! और यदि पुरोहित महान बुद्धिमान है, ब्रह्मा आत्मा है। ऐसे राजा के राज्य में बुद्धिजीवी होते हैं तो वहां राष्ट्र महान बनता रहता है। बुद्धिजीवी प्राणियों से ही समाज का निर्माण होता है और इसी से राष्ट्र की प्रणाली को चुनौती प्रदान की जाती है।
रविवार, 17 नवंबर 2019
पराविद्या की दीक्षा
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