गतांक से...
मेरे प्यारे ऋषि विश्वामित्र ने जब यह वाक्य कहा तो ऋषि ने उनके प्रश्नों का उत्तर दिया और उनकी जिज्ञासा को पूर्ण किया। उन्होंने कहा कि ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए। संभवम ब्राह्मणी वेतन देवताओं देवा ब्लू पिक्चर। बेटा पुरोहित तो वास्तव में परमात्मा है, जो निष्पक्ष है। परंतु समाज में भी पुरोहित की आवश्यकता है। यदि वह ममता और घृणा से रहित हो तो ऐसा जो ब्रह्म को जानने वाला। "ब्रह्मवर्चोसी ब्राह्मणे लोकाम" के रूप में वर्णित किया गया है। हमारे यहां वह पुरोहित प्रणाली सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। मैंने ऋषि विश्वामित्र से यह कहा है विश्वामित्र मेरी इच्छा यह है कि जाओ तुम पुरोहित के क्रियाकलापों को करो। उन्होंने कहा कि प्रभु पुरोहित तो आप है। आप ब्रह्म पराविद्या के भी ज्ञाता है। सर्वत्र विद्याओं को जानते हैं, महर्षि वशिष्ठ ने कहा, यह बात कह तो आपकी यथार्थ है। परंतु पराविद्या वह भी प्रदान करता है जो उसकी विवेचना करता है। पुुरोहितमाम ब्रहे यजनम ब्रहे पुरोहित:,कहलाता है उन्होंने कहा प्रभु "पुरोहितामम भूषणं ब्रहे" इस वाक्य को नहीं जानता कौन पुरोहित होता है? किसको पुरोहित कहते हैं? महर्षि वशिष्ठ ने कहा जो पराविद्या को जानने वाला, जो आत्मा और परमात्मा, प्राण और मन को जानने वाला है। उसका नाम पुरोहित है। यह स्वीकार करो उन्होंने कहा कि आप आज्ञा दीजिए। महात्मा विश्वामित्र ने जब ऐसा कहा तो वशिष्ठ मुनि ने कहा कि जाओ तुम भंयकर वनों में चले जाओ और वहां "पुरोहितमाम यर्क ब्रहे" यज्ञ करो जब उन्होंने यज्ञ का नामकरण श्रवन किया तो कहा प्रभु हम यज्ञ किसे कहते हैं। उन्होंने यज्ञ की मीमांसा करते हुए कहा कि यज्ञ वह कहलाता है। जिसमें विद्यमान हो करके अपनी आभा में सदैव निहित रहे। आनंदवत्त हो जाए, वही तो हमारे यहां वृत्तिवत चला है। पुत्रों महात्मा विश्वामित्र ने जब पुरोहित की विवेचना सुनी तो उन्होंने कहा, संभवित वायु संभवा: कीर्त भूतंव्रतम दाम्यताम प्रवाह दृश्यम जन्मे ब्रीगत: जब ऋषि ने यह वाक्य कहा, तो यह वाक्य उनके हृदय में समाहित हो गया और कहा जाओ तुम भयंकर वन में यज्ञ का आयोजन करो और उसमें राष्ट्रीय विद्या का योग होना चाहिए। जिससे राष्ट्र में प्रतििभा हो और राष्ट्र उसको जानने वाला हो।
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Thank you, for a message universal express.