रविवार, 10 नवंबर 2019

पराविद्या की दीक्षा

गतांक से...
 मुझे स्मरण आता रहता है बेटा, ऋषि-मुनियों ने बहुत पुरातन काल में एक पद्धति का निर्माण किया था। वह उस पद्धति से प्रत्येक ग्रह में पुरोहित होना चाहिए। क्योंकि हमारे यहां राष्ट्र में भी पुरोहित होते हैं और वे पुरोहित इसलिए होते हैं कि मानव उल्टे मार्ग पर न चला जाए। वह सदैव सुमार्ग पर गमन करते, वह विचार देते रहते हैं और राजा को भी उपदेश देते हैं कि वह ऐसे कनिष्ठ मार्ग पर न चला जाए। जिस मार्ग पर चले जाने के पश्चात समाज चिंतित हो जाए और रक्तमयी मानव का समाज बन जाए। इसलिए हमारे यहां पुरोहित की बड़ी विवेचना मानी गई है। क्योंकि पुरोहित ही राष्ट्र का निर्वाचन करते रहे हैं। हमारे यहां सृष्टि के आरंभ से, जब से राष्ट्रवाद का निर्माण हुआ। यहां भगवान मनु ने राष्ट्र का निर्माण किया था और भगवान मनु ने यह कहा कि पुरोहित होना चाहिए। राष्ट्र में और मानव समाज में यदि पुरोहित नहीं है। पराविद्या देने वाला नहीं है तो है समाज ऊंचा नहीं बन सकेगा। विद्यालयों में भी जब हम प्रवेश करते रहें तो वहां भी एक महान पुरोहित कहलाता है। वहां आचार्यों के अंगरक्षक का और उनकी आध्यात्मिक प्रतिभा का वह स्त्रोत कहलाता है। तो इसलिए बेटा हमारे आचार्यों ने बड़ी तत्परता से यह कहा कि हमारे यहां पुरोहित होने चाहिए। प्रत्येक ग्रह में पुरोहित की जो परंपरा मानी गई है। पुरोहित ही ज्ञान से ग्रह को ऊंचा बनाते हैं और वे आशीर्वाद की प्रतिभा में सदैव निहित रहते हैं। आज जब भी क्रियाकलाप होते हैं वह बालक से लेकर बूढो तक उनको मानवीय शिक्षा दी जाती है। मैं मानवीय शिक्षा प्रणाली में इतना प्रवीणतम आता रहता है। त्रेता के काल में वशिष्ठ मुनि महाराज अयोध्या के राष्ट्र पुरोहित कहलाते थे। वेद रविता थे ब्रह्म, ज्ञान विज्ञान की उड़ाने उड़ने वाले थे। ब्रह्मवेता कहलाता है जो ज्ञान में विज्ञान में और योगिकवाद में ब्रह्मा की निष्ठा में परायण जो ब्राह्म का निर्णय करने वाला विश्वसनीय हो । वही उसके द्वारा वह राजपुरोहित बना हुआ है। परमपिता परमात्मा को जानने वाला ही पराविद्या में अग्रणी कहलाता है। परा विद्या किसे कहते हैं? बेटा उसे कहते हैं जो आत्मा और परमात्मा का एक मौलिक विषय है। मौलीक की चर्चाएं हैं। आदमी बेटा अपने में चिंतन कर रहा है, मनन कर रहा है और मनन करता हुआ वह परमपिता परमात्मा की महती को जानने में तत्पर है। वह  शंका में नहीं है अंधकार में नहीं है। क्रियात्मक अपने जीवन को लाता है तो वह 'पुरोहिताम ब्राह्मणे वेता:, वह परमपिता परमात्मा के ज्ञान विज्ञान को जानता हुआ पुरोहित कहलाता है। तो विचार आता रहता है कि वशिष्ठ मुनि महाराज पुरोहित थे। पुरोहित राष्ट्रवाद को भी विचारते हैं और वे पराविद्या को प्रदान करने वाले है। अध्यात्मिक विज्ञान में बड़े परायण रह रहे हैं और उस आध्यात्मिक वाद को जानते हुए भी महानता का सदैव प्रदर्शन करते रहे।


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