शनिवार, 9 नवंबर 2019

पराविद्या के विज्ञानवेता

मुनिवरो, आज हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे हैं। यदि तुम्हें प्रतीत हो गया होगा आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया हमारे यहां परंपरागतो से ही उस मनोहर वेदवानी का प्रसार होता रहता है। जिस पवित्र वेद वाणी में उस परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान गाया जाता है। क्योंकि वह महिमावादी है और वही यज्ञोमयी है। क्योंकि यह उसका आयतन है। उसका ग्रह है उसका सदन है और वह उसी में निवास कर रहा है। इसीलिए हम उस परमपिता परमात्मा की महिमा और उसकी अनंता के ऊपर सदैव विचार-विनिमय करते रहते हैं। और यह गीत गाते रहते हैं कि वह परमपिता परमात्मा अनंतमयी है और वह पुरोहित है। पुरोहित उसे कहा जाता है जो परा विद्या को प्रदान करने वाला है। पराविद्या कौन सी है। जिसे वह प्रदान करता है मानव के आत्म उत्थान के लिए जो कोई ज्ञान है। उसी को उधरवा में गमन कराने का नामकरण पुरोहित प्रदान करता रहता है। हम यह विचार-विनिमय करते रहे हैं कि वह परमपिता परमात्मा पुरोहित है। अनंतमयी है और उसकी अनंतता एक-एक परमाणु में एक-एक कण मे रहती है। इसलिए हम परमपिता परमात्मा की सदैव उपासना करते रहे हैं, और वह जो पुरोहित है पराविद्या को प्रदान करने वाला है। जिस पराविद्या से मानव के अंतरात्मा का उत्थान होता है और मानत्व प्राणत्व को आत्मा में निहित किया जाता है! तो ज्ञान और विज्ञान का नामकरण हमारे यहां पुरोहित के द्वारा ही प्राप्त होता रहता है!


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