नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच दो सफल अनौपचारिक वार्ता हुई हैं। इसके जरिए दोनों देशों ने कई मुद्दों पर बात की है और उन्हें सुलझाने पर सहमति बनाई है लेकिन फिर भी कुछ मुद्दों को लेकर दोनों में विवाद हो सकता है। दोकलाम के बाद उपजा यह विवाद दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित कर सकता है। जहां एक तरफ चीन भारत सरकार के जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लिए जाने का विरोध कर रहा है वहीं अब दलाई लामा और तिब्बत मामला दोनों देशों के संबंधों को और प्रभावित कर सकता है। इस महीने चीन ने भारत से आधिकारिक तौर पर कहा है कि कोई भी वरिष्ठ भारतीय नेता या सरकारी अधिकारी का दलाई लामा से मिलना दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को प्रभावित कर सकता है। यह बात चीन ने भारतीय अधिकारियों को हाल ही में धर्मशाला में हुई राइजिंग हिमाचल ग्लोबल इंनवेस्टर्स समिट से पहले कही। बता दें कि धर्मशाला को शरणार्थी तिब्बत सरकार का स्थान भी माना जाता है। इस समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। चीन कई बार इस बात की संभावना जता चुका है कि केंद्र और राज्य सरकारों के भारतीय नेता और अधिकारी धार्मिक नेता से मुलाकात करते रहते हैं।
चीन को जवाब देते हुए भारत ने कहा कि दलाई लामा को कोई भी राजनीतिक गतिविधि करने की इजाजत नहीं है और यह समिट भी एक गैर-राजनीतिक कार्यक्रम है। धार्मिक स्वंत्रता मामले में अमेरिकी राजदूत सैम ब्राउनबैक ने धर्मशाला में कुछ हफ्ते पहले दलाई लामा से मुलाकात की थी। माना जा रहा है कि यह बात चीन के दिमाग में है। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई जिसके बाद मामले को सुलझा लिया गया। यह काफी संवेदनशील समय है क्योंकि कुछ हफ्तों से दलाई लामा के पुनर्जन्म की सुर्खिया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाई हुई हैं। 84 साल के 14वें दलाई लामा और अमेरिका इस बात को सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि चीन को उनका उत्तराधिकारी चुनने की इजाजत न दी जाए। यहां तक कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।
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