जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग के रीति रिवाज एवं खानपान राज्य के अन्य हिस्सों से काफी भिन्न है। इसका एक ताजा उदाहरण लाल चीटियों की चटनी को लिया जा सकता है। बस्तर में इसे चापड़ा चटनी कहा जाता है। वर्षा ऋतु के समाप्त होने के बाद हाट बाजारों में लाल चीटियां बिकने आने लगती है। आदिवासी समाज के लोगों द्वारा चापड़ा चटनी बड़े चाव से खाई जाती है। इन दिनों स्थानीय साप्ताहिक बाजारों में पत्ते के दोनों में लाल चीटियां बिकती हुए देखी जा सकती है। 10 रुपए से लेकर 50 रुपए दोने तक में लाल चीटियां बिकती हैं। इन दोने में लाल चीटियों के अंडे भी होते हैं। आदिवासियों का कहना है कि लाल चीटियों को मिर्च, लहसुन तथा नमक के साथ पीसा जाता है। इसके बाद इसे खाया जाता है। आदिवासियों का दावा है कि संचारी रोगों से बचाव के रूप में भी लाल चीटियों की चटनी खाई जाती है। यदि किसी को बदलते मौसम में बुखार आने लगे तो उसे लाल चीटियों की चटनी यानी चापड़ा चटनी खाने की समझाइश भी दी जाती है। चापड़ा चटनी को बस्तर में घृणा के रूप में नहीं देखा जाता बल्कि बड़े चाव के साथ खाया जाता है।
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