जगदलपुर। छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के बाद वन भैंसा को राजपशु, पहाड़ी मैना को राजपक्षी, साल वृक्ष को राजवृक्ष, चंदैनी गोंदा को राजपुष्प का दर्जा दिया गया है, परंतु अब तक किसी मछली को राज मछली का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में सिर्फ बस्तर की इंद्रावती नदी में पाई जाने वाली तथा तेजी से खत्म हो रही बोध मछली को राज मछली का दर्जा देकर इसे संरक्षित किया जाना बेहद जरूरी है। कैटफिश को ही बस्तर में बोध या गुंज मछली कहा जाता है। छोटी को बोध और गुंज तथा बड़ी को भैसा बोध कहा जाता है।
यह मछली भारत में ब्रह्मपुत्र नदी के अलावा बस्तर की इंद्रावती और शबरी नदी में पाई जाती थी। ब्रह्मपुत्र में यह मछली अभी भी पनप रही है लेकिन बस्तर की शबरी नदी में अब यह नजर नहीं आती। फिलहाल इंद्रावती नदी में ही बची है। इंद्रावती में यह मछली चित्रकोट वाटरफॉल के नीचे से लेकर गोदावरी संगम के मध्य पाई जाती है। इस मछली का वजन 150 किलो किलोग्राम तक पाया गया है। यह मांसाहारी मछली है और नदी में बह कर आए मृत जीवों को खाती है। बोध मछली को बस्तरवासी सम्मान देते हैं।
इसके नाम पर ही बारसूर के पास बोध नामक गांव हैं वहीं बारसूर की लंबित पनबिजली परियोजना का नाम भी बोधघाट जल विद्युत परियोजना है। इसके अलावा जगदलपुर शहर की एक कॉलोनी और थाना का नाम बोध मछली के नाम पर क्रमश: बोधघाट कॉलोनी और बोधघाट थाना है।यह मछली आक्रामक होती है और भूखी होने पर कभी कभी नदी में उतरे व्यक्ति पर हमला कर देती है, इसलिए जान माल की सुरक्षा के हिसाब से इंद्रावती नदी किनारे बसे दर्जनों गांवों के रहवासी बोध मछली की पूजा करते हैं। बोध मछली के नाम पर ही चित्रकोट जलप्रपात के पास एक खोह में सैकड़ों वर्ष पुराना बोध मंदिर है । यहां कूड़क जाति के मछुआरे प्रतिवर्ष जात्रा आयोजित कर बोध मछली की पूजा करते हैं।
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