गतांक से...
मैंने बहुत पुरातन काल में अपने पूज्यपाद गुरुदेव से प्रकट करते हुए कहा था! हे पूज्यपाद, यह समाज जाने कहां जा रहा है, मैं इसको नहीं जान पा रहा हूं? प्रहा धन-धन्म ब्रहे, पूज्यपाद गुरुदेव ने मुझे शिक्षा दी और विचार दिए कि यदि राष्ट्र को उन्नत बनाना है! अग्नि से दूरी कर देना है, नम्रता में लाना है तो राजा को चाहिए कि वह ब्रह्म ज्ञान का अध्ययन करें! तपस्वी बने! जैसे मेरे पूज्य पाद गुरुदेव कई समय से राष्ट्रवाद और राम की चर्चा कर रहे थे! पूज्य पाद,ॠषिवर विद्यमान है! परंतु चर्चा कर रहे हैं, महान बनने की और वही चर्चा जब क्रियावान बन जाती है तो वहीं चर्चा महान बन करके राष्ट्र में एक माधुरीता को जन्म दे देती है! विचार आता रहता है मैं गुरुदेव को निर्णय करा रहा हूं! आधुनिक काल का जो काल चल रहा है! यहां राष्ट्र का तो अभाव है, मैं दृष्टिपात करता रहता हूं! ब्रह्म ज्ञानी, ज्ञानी परंतु वह ज्ञानी भी नहीं है! आसन की लोलुपता में वह समाज रत हो रहा है! वह धर्म में और अन्य में रत हो रहा है! विचार आता रहता है कि मेरा जीवन कैसे ऊंचा बने? परंतु मैं यह कहा करता हूं कि राजा से कहो, हे राजा तेरे रास्ते में रूढि नहीं रहनी चाहिए! तुम ब्रह्मावेता बन करके उसका निराकरण करो और अपनी राष्ट्रीय प्रणाली को पवित्र बनाओ! इस प्रकार मेरे पूज्य पाद गुरुदेव मुझे उपदेश दे रहे हैं! कई समय हो गए हैं राम की चर्चा करते हुए! राम जैसे महान शाखा की चर्चा, जिसका जीवन सदैव आभा में निहित रहा है और वह अपने में अपनेपन की वृत्तियो में रत रहने के लिए तत्पर रहे हैं! विचार आता रहता है मैं यह गीत गाता रहता हू! मेरे पूज्य पाद गुरुदेव यह जो वर्तमान का काल चल रहा है यह सुरा-सुंदरी और वाम-मार्ग का काल चल रहा है! इसलिए मैं अपने यज्ञमान को कहता हूं कि तुम्हारे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे! तुम्हारे गृह में धर्म का सदैव सदुपयोग होता है! देवताओं की पूजा करना ही तुम्हारा कर्तव्य है! यदि समाज को ऊंचा बनाना चाहते हो, अग्नि विभाजन करती है, अग्नि भेदन करके तुम्हारी प्रवृत्तियों को महान बना सकती है! परंतु इसी प्रकार,वेदाम भू वेदाम ब्रथम, पूज्य पाद ने मुझे वर्णन कराया की प्रथम यह सर्वत्र एक आभा में निहित होने वाला, यह जगत है! मैं अपने पूज्यपाद गुरुदेव से यह गीत गाने के लिए आया हूं! हे प्रभु, आज राष्ट्रवाद न होने से मानव, मानव रक्त का भक्षक बनने के लिए तत्पर हो रहा है! यहां धर्म के नाम पर नाना प्रकार की मान्यताएं हैं और ये मान्यताएं ऐसी बन गई है! जो राष्ट्र का विनाश कर सकती है! इसीलिए मैं कहता हूं,हे राजन ब्रह्मज्ञानी बन और तेरे अंग-संग विधमान होने वाले रूढ़ियों के आचार्यों का शास्त्रार्थ हो, राजा स्वयं निर्णय देने वाला हो,जब वह निर्णायक बन जाता है! तो समाज में पवित्रता जाती है और यह निर्णय नायक को प्राप्त करता हुआ सागर से पार होने का प्रयास करता है!
गुरुवार, 7 नवंबर 2019
असुविधा में यज्ञ कैसे करें?
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