मंगलवार, 5 नवंबर 2019

असुविधा में यज्ञ कैसे करें?

गतांक से...
 (महानंद जी) ओम देवा भद्राम् भव्यम् ब्राह्मणा रुद्राहा: हम द्रव्हो गायंत्वाहा! मेरे पूज्यपाद गुरुदेव अथवा मेरे भद्र ऋषि मंडल अभी-अभी मेरे पूज्य पाद गुरुदेव नाना यज्ञो के संबंध में अपने विचार दे रहे थे! क्योंकि यज्ञ में परंपरागतो से ही मानव निहित रहा है और मेरे पूज्य पाद गुरुदेव ने भी अभी-अभी यह प्रकट करया कि यज्ञ अपने में बड़ा विचित्र है! जहां हमारी यह आकाशवाणी जा रही है, वहां एक यज्ञ का आयोजन हुआ और मैं यह जानता हूं कि यज्ञ अपने में बड़ा विचित्र उधरवा में कर्म है! मैं अपने यजमान को कहता हूं! हे यजमान, क्योंकि मेरा अंतरात्मा यजमान के साथ रहता है और मैं यह कहता रहता हूं कि हे यजमान तुम्हारे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे! यह जो काल चल रहा है इस काल को मैं वाम मार्ग काल कहता रहता हूं! वाममार्ग उसे कहते हैं जो उल्टे मार्ग पर का गमन करता है! यज्ञ इत्यादि का खंडन करता है और उसे खंडन करने के पश्चात उसकी कीर्ति में नहीं रहना चाहता! विचार आता रहता है! पूज्यपाद गुरुदेव ने मुझे कई कालों में प्रकट करते हुए कहा, आज भी मुझे स्मरण है कि यज्ञ अपने में बड़ा अनूठा क्रियाकलाप है! बड़ी अनोखी एक विचित्र धारा है! परंतु देखो वह अपने में ही अपनी आभा कृतियों में रत होने वाला है! विचार आता रहता है गुरुदेव यह जो वर्तमान का काल चल रहा है! वह वाम मार्ग काल है, वह मार्ग उसे कहते हैं जो उल्टे मार्ग पर गमन करता है! मुझे आश्चर्य होता है कि कैसे ऐसे में मानव की आभा कैसे विकृत हो जाती है? और विकृत होकर के अपनेपन और तन को वह शांत कर देता है? हे मानव, तू अपनी मानवता के ऊपर विचार-विनिमय कर और यज्ञ जैसे क्रियाकलापों को अपने से दूर ना होने दें! हे यजमान तेरे जीवन का सौभाग्य और प्रतिभा  बनी रहे! मैं उच्चारण कर रहा था कि मेरे पूज्य पाद गुरुदेव कहीं राष्ट्रवाद की चर्चा करते हैं तो कहीं राम की तपस्या की चर्चा करते हैं! पूज्यपाद गुरुदेव बड़े-बड़े अति उत्थानो की विवेचना अपने मन में ही करते रहते हैं! मेरे प्यारे उन्होंने कहा संभवत कृताहा: कि हम उसी आभा मे रत रहना चाहते हैं! जहां मार्ग में एक महानता की उपलब्धि हो जाती है! मेरे पूज्य पाद गुरुदेव कई समय से वर्णन करा रहे हैं! कहीं राम की तपस्या का वर्णन करते रहते हैं कि राम इतने विशाल तपस्वी थे और कहीं विश्वभान चर्चाएं होती रहती है! परंतु वेद के माध्यम से विचार आता रहता है कि यजमान अपने में महान बने, परंतु मैं आज इन वाक्यों का गीत गाने नहीं आया हूं! मैं राष्ट्रवाद के ऊपर अपनी विचारधारा व्यक्त करना चाहता हूं! कि राष्ट्रवाद कितना अनूठा है और कितना विचित्र माना गया है! पूज्यपाद गुरुदेव ने कई काल में प्रकट करते हुए कहा है कि उस काल की वार्ताएं स्मरण आती है तो हृदय मे गदगदता जाती है! हृदय में अग्रता का उत्पादन होने लगता है! देखो ऋषि अपनी वार्ता प्रकट करता है, कहता है 'संभवे संभवा कृतम देवा:, यजमान तेरे जीवन की आभा सदैव बनी रहे तेरे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे!


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