शनिवार, 12 अक्टूबर 2019

संकल्पमयी संसार की विशेषता

गतांक से...
 आओ मेरे प्यारो, मैं तुम्हें विशेष विचार नहीं देना चाहता हूं। विचार केवल यह है कि भगवान राम भयंकर वन में अपने 12 वर्ष के तप से अवऋन हो गए और अपने में विचार कर रहे हैं कि मैं अपने राष्ट्र को कैसा स्थापित करुं? जिससे राष्ट्र अपनी आभा में गतिमान होता हुआ और प्रत्येक राष्ट्र में रहने वाला मानव विचार विनिमय करने लगे। विचारवान बन करके परमपिता परमात्मा के अनूठे राष्ट्र में परिणत होकर के उधरवा में कल्पना करता चले जाए। भगवान राम ने यही कहा कि हम अपने में सुगंधी को ला सकें जैसे अग्नि प्रत्येक परमाणु का विभाजन कर देती है। उनमें वह तरंगों के रूप में परिणत हो जाते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक राजा जब अपने राष्ट्र में उन्नत होने के लिए सदैव तत्पर रहेगा, तो वह उन्नत होना ही मानो मानवीयता आपमे रत हो जाएगा और राष्ट्र अपने में राष्ट्र कहलाएगा जैसे परमात्मा का राष्ट्र है। उसी में सूर्य है उसी में चंद्रमा है और उसी में पृथ्वी है और उसी में जल और अग्नि अपने अपने मे गमन कर रहे हैं। और प्राण सत्ता अपने में उग्र रूप धारण कर रही है और अंतरिक्ष में सब समाहित हो रहा है। विचार आता रहता है कि हमारा जीवन बेटा सुगंधित होना चाहिए। यदि जीवन में सुगंधी नहीं है तो वह जीवन नहीं कहलाता। राजा के राष्ट्र में सुगंध नहीं है तो राजा का राष्ट्र नहीं कहलाता। इसी प्रकार बेटा हम सुगंधी वाले बने। प्रत्येक ग्रह में वेदों की ध्वनि आनी चाहिए।ध्वनी मे ध्वनीत होना चाहिए। अनहद रूप में जब आती है अनहद रूप से उससे मानव अपनी मानवता को धारण करता हुआ। वह उसी ध्वनि से अपनी आंतरिक जगत की ध्वनि को धारण करता हुआ बेटा, वह ध्वनि एक योगिक ध्वनि कहलाती है और इसमें हमें ध्वनिया आती रहती है। विचार आता रहता है बेटा मैं दूर चला गया हूं। विचार यह प्रारंभ कर रहा था कि परमपिता परमात्मा का यह अनूठा जगत है। परमात्मा पुरोहित कहलाते हैं। इसलिए पुरोहितों के द्वारा प्रत्येक ग्रह में सुगंधी होनी चाहिए। राम ने 12 वर्ष का तप किया। जिसमें अन्न को त्यागते हुए उन्होंने सिल्लस्तन को प्राप्त किया। जिससे मन पवित्र बन कर के रजोगुण में जो एक दूसरे को मृत्युदंड देने की आभा का जन्म हुआ। उसे नष्ट करने के लिए उन्होंने तप किया। क्योंकि बिना तप किए कोई राष्ट्र को भोगने का अधिकारी नहीं होता है। तप उसे कहते हैं जो मानव जितेंद्रय बन करके अपने आत्मबल को उन्नत बनाता है। जो तपस्वी बनता है वह अन्नाद को पवित्र बना करके मन मस्तिष्क और बुद्धि को ऊंचा बनाता है। या यह कह दीजिए कि मन, प्राण और विचारों की उपलब्धि होकर के उन्हीं विचारों को महान बनाता रहता है। विचार विनिमय क्या है? बेटा मानव को तप करना चाहिए, क्योंकि बिना तप के राष्ट्र और समाज की उन्नति नहीं होती। वशिष्ठ मुनि महाराज और राम का जो उस काल का आध्यात्मिकवाद का प्रकरण है। वह बड़ा विचित्र रहा है, आज का हमारा उद्देश्य क्या रहा है। हमें तपस्वी बनना चाहिए और बिना तप के राज्य नहीं भोगा जाता। बिना तप के मुनीवरो समाज को उन्नत नहीं बना सकते। इसलिए प्रत्येक मानव को तपस्वी बनना चाहिए और तप करने के पश्चात अपने अधिकार का उपयोग करने वाला हो। परमपिता परमात्मा को साक्षी करता हुआ और परमपिता परमात्मा की अमृतधारा को जानने वाला बने। तो बेटा आज का विचार विनिमय क्या है कि हम परमपिता परमात्मा की आराधना करते हुए देव की महिमा का गुणगान गाते हुए। वेदों का उपदेश पाते हुए, हम इस सागर से पार हो जाए। बेटा,तपम् ब्राह्म: तपम रुद्रोभागा:, हे मानव,तू तपस्वी बन और तपस्वी बन करने के पश्चात बेटा राष्ट्र का अधिकार प्राप्त होता है। देखो राम ने ऐसा ही किया। राम तपस्वी बने और तप करने के पश्चात वह राष्ट्र को भोगने वाले बने। राष्ट्र में जो उनके विचार,गीत बने बने,उन विचारों को कल प्रकट कर सकूंगा। आज का वाक्य समाप्त होता है अब वेदों का पठन-पाठन होगा।


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