मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

संकल्पमयी संसार की विशेषता

गतांक से...
 मेरे प्यारे, इस प्रकार का विचार हमारे प्रऻय: वैदिक साहित्य में आता रहा है। वैदिक साहित्य में भिन्न-भिन्न प्रकार की विवेचनाऐ, भिन्न-भिन्न के क्रियाकलाप उनके (पुरोहित के) मुखारविंद से उत्पन्न हो रहे हैं। वह पुरोहिताम भूवरणस्‍तये ,वेदाचार्य कहता है कि हमारे जीवन में यदि कोई उन्नति दे सकता है तो वह पुरोहित कहलाता है। भगवान मनु ने यही कहा कि राजा के राष्ट्र में पुरोहित होना चाहिए। उसका अपने में बड़ा महत्व माना गया है। देखो पुरोहितानाम भूतम ब्राह्मण लोकाम व्रणहे:, वह पुरोहित कहलाता है जो अपने राष्ट्र और समाज को उन्नत बनाता है। त्रेता के काल में मेरे पुत्रों महात्मा ब्रहमणेश मनु मानो, वस्तुम्‌ ब्रहे कृतम्, रघुकुल में रघुवंश मे पुरोहित की आवश्यकता रहती है और प्रत्येक राष्ट्र में पुरोहित की आवश्यकता रहती है। रघुकुल के जो पुरोहित थे, वशिष्ठ मुनि महाराज बेटा, पुरोहिताम ब्राह्मण ब्रहम: राजा को पराविद्या की शिक्षा देते हैं और राजा उसे अपने में ग्रहण कर लेता है। मेरे प्यारे, मुझे स्मारण आता रहता है त्रेता के काल में जब राम ने लंका को विजय करने के पश्चात अपने गृह में प्रवेश किया। तब उन्होंने वास किया और वास करने के पश्चात अपनी स्थली पर विद्यमान हो गए। विद्यमान होकर के नाना ऋषि-मुनियों को निमंत्रित किया गया और निमंत्रित करने के पश्चात भरत अपना राष्ट्र का अधिकार अपना कर्तव्य जान करके राम को प्रदान करना चाहते थे। उस राष्ट्रीय धरोहर को राम को प्रदान करना चाहते थे। बेटा राम से प्रार्थना की प्रभु आइए अपने राष्ट्र को अपनाइए। मानो इस राष्ट्र का मुझे कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि मैं इसका अधिकारी नहीं हूं। राम बोले अमृताम ब्राह्म: इसको तुम ही भोगो मुझे नहीं चाहिए। उन्होंने कहा नहीं मैं नहीं चाहता हूं। प्रभु मैं आपको समर्पित करना चाहता हूं। राष्ट्र स्थली को अपनाइए। हे राम। भरत से कहा सब को निमंत्रित किया जाए। राष्ट्र में जितने अधिकारी है और ऋषि-मुनियों का सब का आगमन होना चाहिए। बेटा सब को निमंत्रित किया और निमंत्रित करने के पश्चात उस राज्यसभा में नाना ॠषिवर नाना विज्ञानवेता मानव सर्वत्र राष्ट्र निमंत्रण के कथन अनुसार अयोध्या में उनका आगमन हुआ और बेटा अगले दिवस प्रातकाल सब आसनों पर विराजमान हो गए। राम ने उपस्थित होकर कहा, ऋषि-मुनियों आज मुझे अपना राष्ट्र देना चाहते हैं परंतु मैं इस राष्ट्र को अपनाना नहीं चाहता। उन्होंने कहा क्यों नहीं चाहते? उन्होंने कहा मैं तपस्या करने जाऊंगा। उस समय महाराजा शिव ने कहा कि है राम आप तपस्या करके आप अपनी क्रियाओं से निवृत्त होने के लिए भी तपस्या आपकी ज्‍यौं की त्‍यौं है। राम ने कहा, प्रभु तुम्हारा वाक्य यथार्थ है। महाराजा शिव के बहुत प्रार्थना करने के पश्चात,  जब महात्मा पुरोहितों से यह कह रहा है। पुरोहित जनों देखो मैं राष्ट्र को नहीं चाहता। तप में जाना चाहता हूं। महात्मा वशिष्ठ मुनि महाराज ने ब्रह्मा से कहा, हे राम, तुम्हें राष्ट्र तो भोगना ही है परंतु त्याग पूर्वक इस राष्ट्र को भोगने वाले बनो। राम ने कहा कि प्रभु मैं इस राष्ट्र को नहीं चाहता जब तक अपने रजोगुण और तमोगुण हमारे शरीर में व्याप्त है। उसे नष्ट करना चाहता हूं। मैं तपस्या में परिणत होना चाहता हूं। उस समय विशेषकर राजा और महात्मा, जन, मानव मौन हो गए और मौन होकर के यह विचार में लगे कि इसको कैसे कार्य रोक दिया जाए। जो राम राजा बने और भरत तपस्वी बन जाए। देखो राष्ट्र का पालन चलता रहे और दोनों तपस्या में परिणत हो जाए।


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