गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

संकल्पमयी संसार की विशेषता

गतांक से...
 मेरे प्यारे, राम ने 12 वर्ष तक ऐसे अन्न को ग्रहण किया, जिससे उनका मन पवित्र हो गया और पुराणों में एक महान धारा का जन्म होने लगा| देखो हूत और प्रहूत में वह परिणत होने वाला जगत बन गया! राम जब तपस्या करते रहते नाना मुनि आते चर्चाएं होती और वेद चर्चाएं मानो कोई आध्यात्मिक वाद की चर्चा कर रहा है, कोई आत्मा की चर्चा कर रहा है, कोई राष्ट्रवाद की विवेचना कर रहा है, कोई उसी में रत हो करके अपने पिता का ध्यान अवस्थित हो रहे हैं| मेरे प्यारे देखो अपने में अपनेपन को ही विचारना तपस्या कहलाता है! मुझे स्मरण आता रहता है मुझे भी आखियकाय स्मरण है! जब मानव तपस्वी बंन करके तत्वों में लीन होना चाहता है! 12 वर्ष का राम का अनुष्ठान पूर्णत़व को प्राप्त हुआ और वेदों का गान करते रहते थे! वेदों की महानता में रमण करते रहते थे! मुझे स्मरण आता रहता है, बेटा भगवान राम का वह जीवन जिसमें वह अपने में ही अपने पन दृष्टिपात करते रहते थे! यह सृष्टि का जो चक्र है यह बड़ा विचित्र माना गया है! परंतु इसके ऊपर विश्लेषण प्रत्येक मानव करता रहता है! मैं तुम्हें विशेष विवेचना में नहीं ले जा रहा हूं! विचार केवल यह है कि परमात्मा की बड़ी विचित्र है परंतु भगवान राम ने 12 वर्ष का कठोर तप किया और उन्होंने सिलसत अऩ को ग्रहण करते हुए अपने मन को पवित्र बनाने के लिए तपस्या में सुयोग्य बने! मेरे प्यारे, जब वह 12 वर्ष का तक पूर्ण हो गया तो भयंकर वनों में ही एक विचार वालों का मानव समाज उपस्थित हुआ! उन्होंने कहा कि राम अब तुम राष्ट्र को भोगो उन्होंने कहा राष्ट्र भोगने के लिए तत्पर हूं! परंतु मेरे विचार में यह नहीं आ रहा है कि यह राष्ट्र क्या है जिसे मैं भोगू! उन्होंने कहा राष्ट्र है अपने पर अनुशासन करना अपने प्राणों को संयम में लाने का नाम राष्ट्र है! परंतु देखो यह ऐसा राष्ट्र है जिसके ऊपर मानव परंपरागतो से ही टिप्पणियां करता रहा है! विचारधारा में तत्पर रहता है! राम ने कहा कि महाराज मैं राष्ट्रवाद को जानना चाहता हूं ,यह राष्ट्रवाद क्या है? तो मुनिवरो, देखो इन पुरोहितों ने वेदों के कर्मकांड महापुरुषों ने कहा, यह जो संसार है यह मानो बड़ी विचित्रा में तपो का क्षेत्र माना गया है! यहां प्रत्येक मानव तपस्या में परिणत होना चाहता है और वह अपने को तपस्चर में परिणित करता हुआ सागर से पार होना चाहता है! उन्होंने राष्ट्रीयता की घोषणा की और वहां यह विचार बन गया था कि राम अब इस समय पूर्णरूपेण मानो देखो यज्ञ प्रवाह जैसे यज्ञशाला में यज्ञमान विद्यमान हो करके वही धीपति कहलाता है! इसी प्रकार राष्ट्र को उन्नत बनाने के लिए मानो उसी प्रकार अनृत होना बहुत अनिवार्य है! मेरे प्यारे देखो राष्ट्र का 'अनुभूतम ब्रह्मा' भगवान राम ने स्वीकार कर लिया! परंतु ऋषि-मुनि उन्हें उपदेश देने लगे! राम ने यह कहा कि है ब्रह्म बताओ मुझे निर्णय कराओ यह राष्ट्रवाद क्या है! जिसके लिए इतना बल दिया जा रहा है! महात्मा वशिष्ठ मुनि बोले की प्रजा को अनुशासन में लाने के लिए! राम ने कहा कि जब सबको ज्ञान हो जाएगा ब्रह्मज्ञानी बन जाएंगे! कर्मठ कर्मकांड में परिणत समाज हो जाएगा, तो अनुशासन की आवश्यकता नहीं रहती! राम ने कहा अनुशासन वहां होता है जहां कुरीतियां आ जाती है विकृतियां आ जाती है! वहां अनुशासन की आवश्यकता है और जहां मानव अपने में अपनेपन को चिंतन में ला रहा है! उसके राष्ट्रवाद की आवश्यकता होना ना होना उसका प्रश्न ही नहीं उठता है! जब राजा अपने कर्तव्य का पालन करता है! प्रजा अपने कर्तव्य का पालन करती है और विज्ञान का सदुपयोग होता रहता है तो समाज में एक महानता का जन्म हो जाता है! राम ने कहा कि जब प्रत्येक मानव एक दूसरे से एक दूसरे में रत हो जाएगा! मानो उसी का नाम राष्ट्रवाद कहा जाता है! क्योंकि उस राष्ट्रवाद में अपनी अंतरात्मा की पवित्रता होती है! और जहां मानव की अपनी इंद्रियों में पवित्रता नहीं आएगी! उस समय द्वितीय राष्ट्र के निर्वाचन से कोई लाभ नहीं होना है! संसार में जब तक प्रत्येक मानव का इंद्रित़व ऊंचा न बन जाए और विचारधारा पवित्रत़व को प्राप्त न हो जाए! राम ने कहा कि मैं इस राष्ट्र को अवश्य भोगूगा! परंतु मेरा अंतरात्मा यह कहता है कि प्रत्येक मानव को अपने कर्तव्य में तल्लीन हो जाना चाहिए! मानो यदि हम राजा बनकर के राष्ट्र को उन्नत नहीं बना सकते और जीवन की चर्चा में पवित्रता नहीं ला सकते और उस पवित्रता को हम धारण नहीं करेंगे तो हमारा राष्ट्रीयत़व शांत हो जाएगा!


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