शनिवार, 5 अक्टूबर 2019

संकल्पमयी संसार की संरचना

गतांक से...
हे मानव, तू अपने जीवन में महानता के लिए सदैव गमन करता रहता है। इसी से तेरे जीवन की प्रतिभा बनकर के रहे। विचार-विनिमय क्या है? 'रामम्‌ ब्रह्म कीर्तम्‌' माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र का जन्म हुआ और जन्म होते ही उन्होंने अपने में ओम का उद्गीत गाया। बालक जब जन्म लेता है, माता के गर्भ से तो है स्वरों में देव भाषा और देव का रुदन करना, वह आरंभ करता है। मानव देखो अपने में वर्णह संभवे, बालक का जन्म हुआ है। आज अपने विचारों को विराम देता हूं मैं बहुत दूर चला गया हूं। विचार यह दे रहा था कि वेद का मंत्र हमें यह कहता है कि हे मानव तू संकल्पवादी बन करके उस प्रभु की रचना को विचारने वाला बन। प्रभु का यह ब्रह्मांड रचा हुआ है। जब सृष्टि का प्रारंभ होता है तो परमपिता परमात्मा की उग्र क्रिया से, क्योंकि उग्र क्रिया का नाम तप कहलाता है। उग्र क्रिया  ही मानव्य तप कहलाता है। परमपिता परमात्मा ने जब सृष्टि की रचना की तो प्रभु का संकल्प मात्र ही एक उग्र क्रिया बनी और वह उग्र क्रिया बनी तो प्राण सत्ता गतिमान हो गया। जब रेत्‍तस: अपने में गतिमान हुआ, तो प्राण ने उसका पिंड बना दिया और पिंड के रूप में यह लोख लोकांतार दृष्टिपात आते रहते हैं। मेरे प्यारे, मैं विशेष चर्चा करने नहीं आया हूं। विचार यह देने के लिए आया हूं कि हम अपने में महान बनने का प्रयास करते रहे। संकल्प में, जगत संकल्पों को अपने में धारण करें। महान बनने का प्रयास करें। विचार आता रहता है वेद का मंत्र कहता है कि जितना भी यह जड़ जगत और चेतन्‍य जगत हमें दृष्टिपात आ रहा है। उस सर्वत्र ब्रह्मांड के मूल में मेरा वह प्रभु दृष्टिपात आता रहता है। वह पुरोहित है ,वह धन्य कहलाता है वह महान है और पवित्रता मेरठ रहने वाला है। उस परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान गाते हुए अपनी महानता में गमन करते रहे। आज का वाक्य यहीं पर स्थिर होता है। अब समय मिलेगा तो मैं तुम्हें शेष चर्चाएं कल प्रकट करूंगा। अब वेद का पठन-पाठन होगा। इसके पश्चात यह वार्ता समाप्त हो जाएगी।
ओम देवाहा अभ्याम रुद्राहा षा मामृहि तमत्वा वाचन नम:।
ओ देवम भद्रा: वायु रथम ओपाहा।
ओम संजनहा वायु गतम अपाहा ऋषि:।


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