शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2019

संकल्प रुपी उपासना

गतांक से...
 मेरे पुत्रों ऋषि ने जब यह श्रवण किया तो वह निरुत्तर हो गए। माता अरुंधति ने कहा, हे दिव्य, हे पुत्री, हमारी इच्छा ऐसी है कि तुम राष्ट्र का अनुग्रह करो, क्योंकि राष्ट्र का अन्‍न ग्रहण करना तुम्हारे लिए बहुत अनिवार्य है। उन्होंने कहा मातेश्वरी, कारण, क्यों अनिवार्य है? उन्होंने कहा तुम राष्ट्र का इसलिए अन्‍न ग्रहण करो कि 'ब्राह्म वासस्‌ प्रहे' राजकुमार का जन्म होना चाहिए। उन्होंने कहा कि 'ममत्‍वाम्‌ ब्रह्मा' माता की यह इच्छा नहीं है। 'तपस्यम ब्रहमणम्‌ वाचन नमः क्रति लोकाम्‌' जो इस प्रकार की संतान को जन्म दे। मेरी कामना है मेरी इच्छा है कि मैं त्याग और तपस्या में पुत्र को जन्म देना चाहती हूं। माता अरुंधति ने कहा कि नहीं तुम राष्ट्र का अन्‍न ग्रहण करो। उन्होंने कहा मातेश्वरी तुमने यह श्रवन नहीं किया कि प्रभु ने हमारे तुम्हारे शरीर का निर्माण किया है और यह माता-पिता का संकल्प मात्र ही है। यदि हम यह उच्चारण करने लगे कि यह माता की संपदा है या पितर की संपदा है यह संपदा है उसकी जिसने निर्माण किया है। और उस निर्माण करने वाले में संस्कारों के आधार पर इसका निर्माण किया है। और उन्हीं आधार पर यह जीवन का विपरीत होता रहेगा। हे प्रभा, ब्रह्म, हे मातेश्वरी, यदि यह विकृत हो जाएगा और यह छिन्न-भिन्न हो जाएगा। संकल्पों में ही मानव संसार समाप्त हो जाएगा। माता अरुंधति भी मौन हो गई। वशिष्ठ मुनि बोले की हे पुत्री, राष्ट्रीयअन्‍न मे कोई दोष रोपण नहीं होता है। उन्होंने कहा प्रभु मैं स्वयं कला कौशल कर लेती हूं और उसके बदले जो आता है उससे मैं अपने उदर की पूर्ति कर लेती हूं। हे प्रभु, आप तो यह जानते हैं क्योंकि ब्रह्मवेता है और ब्राह्मवेताओं की बुद्धि बड़ी प्रखर होती है और बड़ी ऊंची उड़ान उड़ने वाली होती है। इस उडाण के साथ यह स्वीकार करना तुम्हारे लिए बहुत अनिवार्य हो जाएगा कि प्रत्येक मानव एक संकल्प है। पुत्र का जन्म होता है, आत्मा किसी का पुत्र है, शरीर का पुत्र-पुत्री होता है। परंतु यह क्या है यह माता-पिता का संकल्प ही पुत्र की संज्ञा संकल्प मात्र से है। यह संकल्प समाप्त हो जाए या विकृत हो जाए तो एक प्रकार की एक विडंबना ऐसी उत्पन्न हो जाए। जिसको हम नहीं जान पाते कौशल्या जी ने कहा पुत्री भी इस प्रकार का संकल्प है। राजा भी एक प्रकार का संकल्प है। प्रजा का संकल्प मात्र है। इसी प्रकार माता भी संकल्प मात्र है। पित्र भी संकल्प मात्र है। यह सूर्य भी एक प्रकार का संकल्प है। अरुंधति मंडल भी एक प्रकार का संकल्प है जो भी संकल्प है। हे भगवान, हे मातेश्वरी, हे पित्र, हे आचार्य, हे ब्रह्मावेता तुम जानते हो कि यह सर्वत्र जगत केवल एक संकल्प मात्र कहलाता है। उन्होंने पुनः कहा हां एक वाक्य में स्वीकार कर सकती हूं। यदि हे पित्र, यदि आपको और माता का दोनों का संकल्प नष्ट हो जाए। तो मैं भी अपने संकल्प को नष्ट कर सकती हूं। ऋषि वशिष्ठ मुनि महाराज मोन हो गए और मौन होकर उन्होंने कहा, 'तत्वनम ब्रह्मा: पुत्रों संभावा: उन्होंने कहा तुम्हारा संकल्प पूर्ण हो, पुत्री, उन्होंने कहा ब्राह्मणों देखो उन्होंने अपने आश्रम को गमन किया और उन्हें जब राजा प्राप्त हुए तो उन्हें राजा से कहा। हे राजन, यह तो संकल्प है ,आचार्य के द्वारा उन्होंने संकल्प किया हुआ है और संकल्प उनका नष्ट नहीं होना चाहिए। यदि संकल्प चला गया तो प्राण चला गया। मानवता चली गई। राजन तुम संकल्प में देवी को रहने दो। तुम अपने क्रियाकलापों में परिणत हो जाओ। उस समय राजा भी मौन हो गया। कुछ समय के पश्चात आज का वार और तिथि और दिवस कहलाता है। जहां राम जैसे महापुरुषों का जन्म हुआ। महापुरुषों के जीवन की कथाएं होती है। उनमें कोई विशेषताएं होती है। मेरे प्यारे, महानंद जी ने मुझे प्रेरणा दी। प्रेरणा के आधार पर वाकम ब्रह्म' मेरे पुत्रो,वह रचना अपने में बड़ी विचित्र बन करके रहती है।


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