रविवार, 6 अक्टूबर 2019

संकल्प: राम-भरत संवाद

राम-भरत संवाद
देखो मुनीवरो, आज हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे हैं। यह भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा। आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया है। हमारे यहां परंपरागतो से उस मनोहर वेद वाणी का प्रसार होता रहता है। जिस पवित्र वेद वाणी में उस परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान किया जाता है। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा आनंदमई माने गए हैं और जितना भी यह जड़ जगत अथवा चेतन्‍य जगत हमें दृष्टिपात आ रहा है। उस सर्वत्र ब्रम्हांड के मूल में प्राय: वह परमपिता परमात्मा दृष्टिपात आते रहते हैं। उस परमपिता परमात्मा की महिमा अथवा उसका जो अग्नि मई रूप है जो तजोमयी कहलाता है ।आज हम तेजोमयी परमपिता परमात्मा की महिमा अथवा उसके गुणों का गुणवादन करते रहे हैं। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा अनंतमई माने गए हैं। और वह हमारे पुरोहित है जो परा विद्या को प्रदान करने वाले हैं। मानव ही पुरोहित कहलाते हैं। इसलिए हमारे यहां पर उस परमपिता परमात्मा को पुरोहित के रूप में वर्णित किया गया है। और प्रत्येक मानव उसे वर लेता है। और उसे अपना पुरोहित बना करके उससे परा विद्या को अपने में धारण करने वाला है। इसलिए हम उस परमपिता परमात्मा जो परा विद्या का देने वाला है। जिस विद्या को धारण करने के पश्चात मानव का जीवन पवित्र बन जाता है और उस विद्या के अनुपम रहस्य को जानता हुआ मानव अपने कर्मकांड की ओर भी नाना पद्धति को अपनाने के लिए तत्पर हो जाता है। इसलिए हम उस परमपिता परमात्मा की महिमा अथवा उसके गुणों का अभिवादन करते चले जाएं। वह परमपिता परमात्मा हमारा पुरोहित है और पुरोहित उसे कहा जाता है जो परा विद्या को जानने वाला है। जो परा विद्या में रत रहने वाला है। मानो उसी का दिया हुआ यह अनुपम ज्ञान और विद्या है। मानव उसी के आश्रित रहता हुआ अपनी मानवीयता को पवित्र बनाता रहता है। आज हम अपने परम देव पुरोहित के लिए सदैव गान गाते रहें। क्योंकि यहां तो प्रत्येक मानव अपने पुरोहित को जानने के लिए सदैव तत्पर रहा है और यह विचार ता है कि मैं आज पुरोहित को अपने में अपनाता हूं मैं परम पिता परमात्मा के अनुपम क्षेत्र में रमण करने वाला वह परमपिता परमात्मा जो पुरोहित है। जिसकी विद्या को जानने के लिए मानव समाज इच्छुक रहता है। और भी नाना महापुरुष उनके ज्ञान को जानने के लिए तत्पर रहे हैं। वह परमपिता परमात्मा जो हमारा पुरोहित है जो इस ब्रह्मांड का पुरोहित है। जो मानव को परा विद्या प्रदान करने वाला है। उसे ही पुरोहित कहा जाता है। आज इस पुरोहित के लिए हम सदैव गुणगान गाते रहे हैं। पुरोहितानाम्‌ भविताम ब्रह्म: वही तो पुरोहित है। जो परमात्मा परब्रह्म के स्वरूप में विद्यमान है। हमारे यहां पुरोहितों के संबंध में भिन्न भिन्न प्रकार की विवेचना की गई है। जब हम पुरोहितों के लिए अपने विवेचना अथवा अपने लिए तत्पर होते हैं तो है पुरोहितनाम्‌ भविताम ब्रह्मा: जो पुरोहित बनकर के मानव के लिए जनकल्याण के लिए विचारता रहता है और अपने संपर्क में लाता हुआ अपने को उस में आहूत कर देता है। विचार विनिमय क्या है? हम पुरोहित की उपासना करने वाले बने, उन पुरोहित को जानते रहे जो परा विद्या को देने वाला है। जो मानव को मानवता की आभा में परिणत कर देता है। तो बेटा, वह पुरोहित कहा जाता है। एक पुरोहितनाम्‌ यज्ञम भव्यतम ब्राह्मण: यह जो संसार रूपी एक प्रकार की यज्ञशाला हैं। इस यज्ञ शाला में मानो आप ही तो पुरोहित बने हुए हैं। जो परा विद्या के अंकुरों को हमें परिणत करते रहते हैं और उसी परा विद्या को धारण करते हुए, हम सागर से पार हो जाते हैं। देखो पुरोहितजन प्रत्येक ग्रह में परिणत होता है।


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