शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 प्रात कालीन भगवान राम पंचवटी में यज्ञ करते थे, नाना राजा और ऋषिजन उनके दर्शनार्थ को प्राय: आते रहते थे! मानव के जीवन में एक सार्थकता का दिग्दर्शन तभी हो सकता है! जब वह मानव अपने में अहिंसा परमो धर्म: ही बन जाए! भगवान राम जब पंचवटी पर रहते थे तो उनके यहां नाना प्राणी क्रीड़ा करते रहते थे! नागराज जैसे प्राणी भी क्रीड़ा करते रहते और भी नाना प्राणी क्रीड़ा करते रहते! परंतु जब अपनी भव्यता में आते तो अपने में मेघराज से वार्ता प्रकट करते रहते हैं! हमें यह दो ही वस्तुओं का निर्णय दे रहा है! हे मानव तू याज्ञिक बन, तू अपने में निर्भय बन, विष्णु-ब्रह्मा बनकर के मानव परमपिता परमात्मा की नीति को जान ले! उसकी प्रतिभा को जान ले! उसके ज्ञान और विज्ञान को जानने वाला बने!वह अपने में उपदेश देते रहते थे! यह अपने में सार्थक बनाने वाला वाक्य है! हम अपने जीवन में प्रत्येक समय में अहिंसा परमो धर्म को अपना करके निर्भयता का पठन-पाठन करते! मानो उसकी कृतिका को हम अपने में ध्यानस्थित होकर के हम स्वतंत्र होकर के विचरण करने वाले बने! राजा वही होता है जो निर्भय रहता है! वह प्रभु की गोद में चला गया है! प्रभु के राष्ट्र में भ्रमण करता रहता है! विचार-विनिमय यह है कि प्रत्येक मानव अपने में महानता का सदैव दिग्दर्शन करता हुआ, अपने जीवन को ऊंचा बनाता रहे! मैं भगवान राम की वही अनूठी चर्चा कर रहा हूं, जहां उनके यहां नाना ऋषिवर अपने में अध्ययन सील बने हुए हैं! वेदों का पठन-पाठन चल रहा है! भयंकर वनों में भगवान राम अपने में प्रतिभासित हो रहे हैं !नाना ऋषिवर अध्ययन कराने वाले, अध्ययन कर आते रहते हैं! वेदों की प्रतिभा में रत रहते हैं! क्योंकि वे अमृत का पान करने वाला प्राणी ही प्रणायाम करता है और प्रणायाम करके अपने सखा के द्वार पर चला जाता है! जहां सखा विद्यमान है भगवान राम पंचवटी पर रहकर के नाना प्रकार के प्राणियों के द्वारा उद्धार के अनेक कर्तव्य परायण के संबंध में विचारते रहते थे! अपना अन्वेषण करते रहते थे! विचार-विनिमय करते रहते थे! भयंकर वनों में भी कुछ समय के पश्चात वहाँ कहीं से प्रातः कालीन एक व्याघ्र आ गया!  व्याघ के आने पर माता सीता ने कहा कि भगवान यह व्याघ्र कहां से आ गया है! उन्होंने कहा कोई प्रेमी होगा, कोई प्राणी वंदना करने के लिए आया हुआ! भगवान राम जब व्याघ्र के समीप पहुंचे तो व्याघ्र अपने वाक्य में अपनी वाणी में वाक्य उच्चारण करने लगे! बेटा प्रत्येक मानव के हृदय में यह आशंका बनी रहती है किस पशु की वार्ता को राजा कैसे स्वीकार करता है! परंतु इसके संदर्भ में यह है कि भगवान राम एक यज्ञ करा रहे हैं और भी यज्ञ हो रहे हैं! उनकी अवहेलना में प्रतिपादित होने वाला 'अप्रवह: वाचप्रवहे: लोकाम्' मेरे प्यारे देखो उन्होंने अपने में 'धाराह प्रवहे रघुऊ संभूति ब्रह्मलोकम वाच प्रहे वस्तुत सुप्रजा: वर्णम ब्रह्मा वाच प्रहे वस्तुतै' जब व्याघ वहां पहुंचा तो भगवान राम अपने में वेदों का अध्ययन कर रहे थे! उनके अध्ययन में जो स्वर ध्वनियां हो रही थी उसको अपने में श्रवण करने लगा? राम बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने व्याघ्र से प्रीति की और ब्याघ से है कहा की हे ब्याघ, तेरा जो यह वचन है यह तेरा राष्ट्र है तेरी राष्ट्रीयता इसमें रहती है! मानो यह हमें बड़ी प्रसन्नता है कि तुम्हारे राष्ट्र में हम भी भ्रमण कर रहे हैं! परंतु तुम भी प्राणी हो हम भी प्राणी है और प्राणी, प्राणी अपने में प्रीति करने वाला बने!


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