सोमवार, 28 अक्टूबर 2019

राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 तो विचार विनिमय क्या है? भगवान राम का जीवन कितना विचित्र रहा है! विभिन्न राजा महाराजा उनके दर्शनार्थ विचारार्थ और उनके समीप आते रहते! एक समय सुबाहू राजा भगवान राम के दर्शनार्थ पंचवटी में आए और यह विचार-विनिमय करने लगे कि प्रजा में संग्रह की प्रवृत्ति का निराकरण कैसे हो? उन्होंने राम से कहा कि मैं कृषि उद्गम द्वारा अपने उधर की पूर्ति करता हूं, गृह स्वामिनी से भी यही कहता हूं! परंतु मैं प्रजा की उस संग्रह प्रवृत्ति को समाप्त नहीं कर सकता हूं! क्योंकि जब मेरे हृदय में संग्रह की प्रवृत्ति बनी हुई है! प्रजा की भी संग्रह की प्रवृत्ति बनी हुई है! मानो जब संग्रह की प्रवृत्ति राजा में आती जा रही है तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि रक्त भरी क्रांति का संचार हो जाएगा! भगवान मेरे राष्ट्र में संप्रदाय का एक स्त्रोत बह रहा है! प्रभु के नाम पर नाना संप्रदाय हैं! नाना प्रकार की कृतियां बन रही है! भगवान राम ने कहा राजन तुम चाहते क्या हो? उन्होंने कहा प्रभु, मैं अपने राष्ट्र को महान बनाना चाहता हूं! तो उस समय भगवान राम ने यह कहा कि तुम्हारे राष्ट्र में वैदिकता होनी चाहिए! सबसे प्रथम तो प्रजा में धर्म के नामों पर प्रभु के नामों पर नाना प्रकार के साधन की स्थलीय नहीं रहनी चाहिए! क्योंकि नाना प्रकार के स्वरों की स्थलीय बनी रहेगी तो उसके बनने का परिणाम यह होगा कि तुम्हारा राष्ट्र रक्त भरी क्रांति में संचालित हो जाएगा! तुम्हारा एक वैदिक प्रसार होना चाहिए! हमारे ऋषि-मुनियों ने एक पद्धति का निर्माण किया है! उन्होंने कहा है कि राजा के राष्ट्र में प्रजा में समाज में पांच प्रकार का पंचीकरण परमात्मा के नामों पर होना चाहिए! वह पंचीकरण कौन सा है? प्रातः कालीन देखो प्रत्येक ग्रह में ब्रह्मा का चिंतन होना चाहिए! पति-पत्नी ब्रह्मा का चिंतन करने वाले हो! उसके पश्चात प्रातः कालीन देव पूजा होनी चाहिए! सुगंधी होनी चाहिए! प्रत्येक ग्रह में वेद ध्वनि होनी चाहिए और देखो अन्याधान करके यज्ञ होना चाहिए! उन्होंने कहा बहुत प्रियतम और तृतीय यह है कि अतिथि सत्कार होना चाहिए! कोई भी अतिथि आए उस को भोजन कराना और बलि वैशया करना, भोजनालय में मेरी प्यारी माता प्रत्येक प्राणी का भोग निर्धारित कर देती है! तो मानो यह पंचीकरण कहलाता है! इस पंचीकरण में राजा के राष्ट्र में जो प्रत्येक ग्रह, पति-पत्नी है, बालक है! वह सब इस सूत्र में पिरोए हुए होने चाहिए! प्रभु का चिंतन तो प्राय: करना चाहिए! परंतु जब भी समय मिले तो सवाध्याय करें! समय मिले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, समय मिले तो देखो ब्रह्मवर्चोसी बने तो ब्राह्मण का क्रियाकलाप होना चाहिए! प्रजापति राजा को अपने संग्रह की प्रवृत्ति को त्याग देना चाहिए! चिंतन करता है प्रात: कालीन अग्नि का ध्यान करके वह अग्नि में प्रदान करता है! अपनी भावनाओं से उसके पश्चात उसी पंचीकरण में कोई अतिथि आ गया है! उसकी सेवा करना उसको अन्नादि देना, कोई पुरोहित आ जाए! उससे उपदेश लेना प्रारंभ करें! मानव सत्संग की प्रतिभा तुम्हारे हृदय में रहनी चाहिए! इसी प्रकार देखो अतिथि सेवा पंचीकरण में मानव का राष्ट्र परिवर्तित होता है! यह नाना प्रकार की आभा में नियुक्त नहीं रहना चाहिए! संग्रह की प्रवृत्ति को त्याग देता है! एक मानव है जो वृक्ष के नीचे अपना स्थान बना देता है! उसकी छाया में रहता है मानो वह राजा है! वह अपने में संग्रह करने की प्रवृत्ति में रहने का प्रयास करता है! एक स्वयं क्रियाकलाप करने वाला स्वयं का उद्गम करने वाला है! उसको पान करता है वह जो पवित्र अन्न को ग्रहण करता है! वह मानव पाप के मूल में ले जाता है! पवित्र अन्न को ग्रहण करना है!


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you, for a message universal express.

यूक्रेन द्वारा कजान पर ड्रोन के माध्यम से हमलें

यूक्रेन द्वारा कजान पर ड्रोन के माध्यम से हमलें  सुनील श्रीवास्तव  मॉस्को। यूक्रेन द्वारा अमेरिका के 9 /11 जैसा अटैक करते हुए कजान पर ड्रोन ...