शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019

राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 मुनिवरो, राजाओ ने प्रश्न् किया कि राजा कौन है, जिस राजा के राष्ट्र में विज्ञान पराकाष्ठा पर हो और विज्ञान का सदुपयोग होता हो! उस राजा का राष्ट्र पवित्र होता है! वह राजा पवित्र होता है! मानव देखो जिस राजा के राष्ट्र में विज्ञान अपनी पराकाष्ठा पर नहीं रहता है! वह विज्ञान के वांग्मय में प्रवेश हो जाता है और वह विज्ञान मानव का राष्ट्र का मौलिक गुण बनकर रहता है! मौलिक गुण क्यों? क्योंकि राष्ट्र को ऊंचा बनाने वाला वह मानव देखो स्वीकृत कहलाता है! तो देखो राष्ट्र और मानवता दोनों ही अपने में तत्पर रहने चाहिए! जिससे समाज में एक महानता की ज्योति उत्पन्न हो जाए! तो आओ मेरे प्यारे, देखो राजाओं ने कहा प्रभु क्या राजा के राष्ट्र में विज्ञान होना अनिवार्य है? भगवान राम ने कहा कि अनिवार्य नहीं है,परंतु विज्ञान होना चाहिए उसका सदुपयोग होना चाहिए! उसके जीवन में एक महानता की ज्योति होनी चाहिए! देखो विज्ञान अपने में अभिमान बनकर के विज्ञान अपने में निखत्त्सुक बनने से राष्ट्र की प्रतिभा नष्ट हो जाती है! तो विचार विनिमय क्या है? मैंने बहुत पुरातन काल में कहा था कि मानव को अहिंसा परमो धर्म अपनाना चाहिए! इसको अपनाने से ही समाज में एक महानता का प्रदर्शन होता है! मुझे भगवान राम का जीवन स्मरण आता रहता है! भगवान राम रात्रि के समय प्रभु का चिंतन करते रहते थे! भयंकर वनों में भी जहां सिंह राज अपनी गर्जना कर रहा है! मानव प्रत्येक प्राणी अपनी ध्वनि कर रहा है और उसमें वह ध्वनित हो रहा है! इसी प्रकार प्रत्येक राजा जब अपने में ध्वनित बनने के लिए विवेक अमृत का पान करता है! उससे विवेक जागरूक हो जाता है और वह विवेक ही मानव का जीवन कहलाया जाता हैं! तो इसलिए प्रत्येक मानव के हृदय में विवेक होना चाहिए! जिस विवेक के द्वारा राष्ट्र और प्रजा दोनों पवित्र बनते हैं! भगवान राम के जीवन की गाथा मुझे स्मरण आती रहती है! एक समय बेटा वह प्रातः कालीन भ्रमण कर रहे थे भ्रमण करते-करते कुछ समय व्यतीत हो गया! भ्रमण करते-करते अपने को आभा में नियुक्त करने लगे! वह अपने में अपनी कृतिका को ऊंचा बनाते हुए सिंह राज के आंगन में उस से खिलवाड़ करने लगे! भ्रमण करते-करते जब सिंह राज से खिलवाड़ कर रहे थे तो कहीं से लक्ष्मण भी भ्रमण करते हुए आ गए! वह सिंह राज से खिलवाड़ कर रहे हैं! कह रहे हैं तू अहिंसा में परिणत होने वाला है! तू कितना महान है वह सिंह राजू से खिलवाड़ करते रहते थे समय व्यतीत होता रहता है! इसी प्रकार जब मानव प्रत्येक प्राणी मात्र से स्नेह करने लगता है तो देखो एक खिलवाड़ करता रहता है! नागराज से भी खिलवाड़ होता रहता है, नागराज एक वायु में गुथा प्राणी है! जब अपने में वह रत हो जाता है अपने में धारयामी बन जाता है! याज्ञिक बन जाता है! तो देखो उसके जीवन में अहिंसा परमो धर्म की एक आभा का जन्म हो जाता है और वही जन्म वृत्तियों में रत हो करके वह मानव के जीवन का मानसिक रूप बन करके उनके ह्रदय में निहित हो जाता है!


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