गतांक से...
मेरे प्यारे मुझे स्मरण आता रहता है कि महाराजा सगर के भ्रमण करते आश्व को किसी ने अपने यहां स्थिर नहीं किया। महर्षि कपिल मुनि महाराज अपने विद्यालय में विद्यमान थे। उनके यहां जय और विजय दो राजकुमार अध्ययन करते रहते थे। वह अस्त्र-शस्त्र विद्या में बड़े निपुण ,पूर्णता को प्राप्त हुए थे। उन्होंने अश्व को अपने विद्यालय में स्थिर कर लिया। अब अश्व कहीं दृष्टिपात नहीं हुआ तो महाराज सगर ने अपने पुत्र सुख मंजस से कहा कि हमारी चौमुखी पुत्रवत सेना के साथ अश्व को लेने जाओ। वह सर्वत्र पृथ्वी पर भ्रमण करके कहीं अश्व को प्राप्त नहीं कर सके। वे राजा सागर के द्वार पर आकर बोले प्रभु हमें कहीं ऐसा भान नहीं हुआ कि हम उस अश्व को ले आए। उन्होंने कहा, कहां गया। पर वह हमें कहीं प्रतीत नहीं है। उन्होंने कहा जानकारी लाओ सेनापति सहित उन्हें भ्रमण करने लगे और पृथ्वी के ऊपर तथा ग्रह में दृष्टिपात करने लगे। इसी प्रकार भ्रमण करते जब कपिल मुनि के द्वार पर पहुंचे तो महात्मा कपिल ने उन्हें आसन दिया। उन्होंने दृष्टिपात किया कि अश्व वहां विद्यमान है। उन्होंने कहा है कपिल 'अमृतम भूतम ब्रह्मा:' ऋषि विचार रहा है कि तुम्हारा हमारा संग्राम होगा। क्योंकि तुमने अश्वमेघ यज्ञ के अश्व को अपने यहां स्थिर किया है। उन्होंने कहा भगवन बहुत प्रिय कपिल मुनि महाराज जहां दर्शनों के मर्म को जानते थे, जहां वे तपस्वी थे, वहां अस्त्र-शस्त्रों की भी विद्या भली प्रकार जानते थे। जय और विजय जो उनके शिष्य थे और विद्या के ऊपर यंत्रों का निर्माण करते रहते थे। उन्हें भी यह प्रतीत हुआ। मेरे प्यारे, मुझे स्मरण आता रहता है कि महात्मा कपिल मुनि महाराज ने 'अमृता: ब्रह्म वर्तम राजसुताहम: कहा हे राजन, तुम इस प्रकार व्रत मे क्यों हो, उन्होंने कहा नहीं हम संग्राम करेंगे। बहुत प्रिय कहकर जय और विजय को आज्ञा दी। जय- विजय धनुष याग करते थे। धनुर्विद्या के महात्मा कपिल मुनि बड़े परायण थे। धनुर्विद्या के आधार पर उन्होंने संग्राम करना आरंभ किया। जय और विजय ने जहां एक-दो यंत्रों का प्रहार किया तो उनकी बहूरंगनी सेना नष्ट हो गई। सर्वत्र सेना के नष्ट हो जाने पर राजा को यह प्रतीत हुआ कि यह जय और विजय ने की है और महात्मा कपिल के यहां जिंनका वर्तम ब्रह्म: अध्ययन होता रहता है। उसमें सब विद्या विद्यमान है। मुझे ऐसा स्मरण आ रहा है कि राजा ने जब यह स्वीकार कर लिया। राज नवरत्न घोषणा वर्तम् ब्रह्म: क्रतम, महात्मा कपिल मुनि के आश्रम में युवा सब विद्वान है। सगर और उनके पुत्र सुखमंजस दोनों ने वहां से गमन किया और दोनों भ्रमण करते हुए वे महात्मा कपिल के आश्रम में पहुंचे। महात्मा कपिल ने राजा को दृष्टिपात करते हुए उनका नमन किया। अनुवादन किया, अनुकृतियों में रत रहने लगे तो उन्होंने अपनी गाथा का वर्णन किया। महात्मा सगर ने कहा रहस्यतम हे ऋषि, आप महात्मा है मैं भी एक महात्मा के तुल्य हूं।भगवन आप मेरे आश्रम में गमन कीजिए। उन्होंने कहा मैं इस समय नहीं जा पाऊंगा। मेरे प्यारे उन्होंने कहा यह मेरी सेना किसने नष्ट किया। उन्होंने कहा यह जय और विजय ने की है। तुम्हारा अश्वमेघ यज्ञ का अश्व भी यही विधमान है। जय और विजय से संग्राम करने को तत्पर हुए तो उस समय महात्मा कपिल ने कहा कि जय-विजय तुम यंत्र में बड़े परायण हो। यंत्रों की नाना लोको की आभा में रत रहने के लिए तत्पर रहते हो।
बुधवार, 16 अक्टूबर 2019
महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद उपदेश
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