सोमवार, 14 अक्टूबर 2019

महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 इसी प्रकार देखो एक राष्ट्रीय दूसरे से स्नेह कर रहा है स्नेह करते हुए एक दूसरे में परिणत होने का नाम ही बेटा, देखो माला बननी है। जैसे माता-पिता है, पित्र जन है, आचार्य जन है, शिष्य गण है। इसी प्रकार की विचारमयी माला बन जाती है। उस माला को कौन धारण करता है। बेटा विचारक, उस माला को कौन धारण करता है, जो परमात्मा को जान लेता है। उस माला को कौन धारण करता है, बेटा जिसको हम आत्मा के रूप में परिणत करते हैं। आओ मुनिवरो, इस संबंध में तुम्हें विशेषता में नहीं ले जाना चाहता हूं। विचार केवल यह है कि हमें उस माला के सूत्रों को अपनी गणना में लाकर के ही तो पार होना है। आओ मेरे पुत्रों देखो मैं कहां चला गया हूं। विचार केवल यह है कि कई समय से हमारा विचार राष्ट्रवाद और तपस्या के ऊपर विचार-विनिमय हो रहा है। प्रत्येक मानव यह कहता है कि अपने को कैसे जाना जाए। अपने को जाने बिना हम परमात्मा की प्रतिभा को नहीं पा सकेंगे। फिर अपने पन कैसे जाने? मेरे प्यारे देखो इंद्रियों में जो ज्ञान और विज्ञान समाहित हो रहा है। उस प्रत्येक इंद्रियों के ज्ञान और विज्ञान को हम जानने वाले बने। वही हमारी जानकारी है मेरे पुत्रों जब हम प्रत्येक इंद्रियों के विषयों को जानकारी में लाते हैं और हृदय से हृदय का मिलान करते हैं। तो वही मानवीयता की आभामयी एक उपलब्धि मानी गई है। इस उपलब्धि को प्राप्त करने के पश्चात मानव नाना प्रकार की तपस्या में परिणत हो जाता है। एक माला बनाना प्रारंभ कर देता है। हम विचार-विनिमय करते चले जाएं कि हमारा जीवन हमारा राष्ट्र हमारी मानवीयता कैसे ऊंची बनेगी। मेरे प्यारे देखो राष्ट्र के लिए गमन करने से पूर्व राम यह विचार कर रहे थे। मैं ऋषि वशिष्ठ मुनि महाराज और माता अरुंधति इत्यादि की विवेचना हो रही थी। महात्मा विभीषण ने 'अमृताम् महात्मम् ब्रह्मा: कृतम देवत्वम दुष्टाम् ब्रव्हे क्रतम्। महर्षि वशिष्ठ मुनि महाराज ने यह कहा कि, हे राम, यदि तुम राष्ट्र का पालन करना चाहते हो तो तुम्हें वशिष्ठ बनना है। तुम्हें इतनी वृत्ति बनना है। उन्होंने कहा है प्रभु मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि आप जो राष्ट्रवाद की चर्चा कर रहे हैं यह राष्ट्रवाद क्या है? उन्होंने कहा राष्ट्रवाद वास्तव में अपने ऊपर अनुशासन करने को कहते हैं। अपने ऊपर अनुशासन करता हुआ, जब अपने को जान लेता है तो वह राष्ट्र को उस प्रकार भोगत्व मे लाता है जैसे शब्द आता है यह जनह ममह, कि यह संसार, यह राष्ट्र मेरा नहीं है मैं तो कर्तव्य करने के लिए तत्पर रहता हूं। जो कर्तव्य करते हुए करते स्वीकार करता है। वही राष्ट्रवादी कहलाता है। भगवान राम ने पुन: यह कहा कि महाराज यह राष्ट्रवाद क्या है? उन्होंने कहा ब्रह्म जगत में राष्ट्रवाद उसे कहते हैं। जहां-जहां राष्ट्र को प्रजा मे महानता और शांति की स्थापना हो। राजा के राष्ट्र में प्रजा और राष्ट्र एक ही रस रहने चाहिए। उसे राष्ट्रवाद कहते हैं। भगवान राम ने उन्हें प्रश्न किया कि भगवान यह राष्ट्रवाद क्या है? उन्होंने कहा राष्ट्रवाद वह है,जिस राजा के राष्ट्र में वेद के मार्ग को जानने वाले पंडित्व होते हैं जिस राजा के राष्ट्र में वृद्धि वाले हो और उसमें अपनी आभा वाले विवेकी पुरुष होने चाहिए। जिस राजा के राष्ट्र में विवेकी पुरुष नहीं होते, जिस राजा के राष्ट्र में महापुरुष त्याग और तपस्या में नहीं होते। उस राजा का राष्ट्र नग्न रह जाता है। इसलिए हमारे यहां परंपरागतो  से ही राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय प्रणाली में महापुरुषों का बड़ा वर्णन आता रहा है। विवेकी पुरुषों के, ऋषि मुनि के चरणों को स्पर्श करते रहते हैं और वह किसी न किसी काल में अपनी पिपासा को शांत करते हैं। वह पिपाशा जब शांत हो जाती है तो राष्ट्रीय प्रणाली पवित्र बनती है। क्योंकि राजा जब अशांत होगा तो वह कहां जाएगा? वह ग्रह में नहीं जा सकता है, वनों में नहीं जा सकता है। क्योंकि उसके ऊपर एक राष्ट्रीय परंपरा है।


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