गतांक से...
मेरे प्यारे मुझे स्मरण आता रहता है जब भी आप पृथ्वी मंडल पर महात्मा कपिल और भी नाना प्रकार के ऐसे विद्यालय थे। जहां परमाणु विद्या पर अन्वेषण होता रहता था और मुनिवरो देखो मंगल मंडल में मृचिक नामक एक वैज्ञानिक था जो अपने में धनुर्विद्या में परायण थे। महात्मा कपिल मुनि आश्रम से जय और विजय दोनों ब्रह्मचारी को लेकर मंगल मंडल में अपने यंत्रों के द्वारा पहुंचे। क्योंकि यंत्रों में विद्यमान होकर लोको में गमन किया जा सकता है। मंगल मंडल में जाकर 6 माह तक उन्होंने वहां की शस्त्र विद्या का अध्ययन किया। कपिल प्रभु हमने इस विद्या को जान लिया है वैसे यंत्रों का निर्माण करना जानते थे। जिन्हें वायुमंडल में त्यागने से ही सर्वत्र वायुमंडल शून्यगति को प्राप्त हो जाता था और प्राणी मात्र भी शून्यता को प्राप्त हो जाता था। बेटा मुझे उस विज्ञान में नहीं जाना है। विज्ञान तो अपनी स्थली में बड़ा अनूठा बन कर रहा है। परंतु मैं केवल इतना उच्चारण कर रहा हूं कि संभवे ब्राह्मणा: वर्तम: देवात्मम्' महात्मा कपिल और ब्रहमचारियों की इस प्रकार की वार्ता आरंभ होती है। वह भी लोक लोकातंरो में भ्रमण करते रहते थे मेरे प्यारे जय और विजय ने उन्हें प्राप्त कर दिया और यह कहा है व्रहे वर्तम् राजन, हे राजन अब तुम क्या करना चाहते हो। राजा ने कहा मैं अश्वमेघ यज्ञ करना चाहता हूं। महात्मा कपिल ने आज्ञा दी। उन्होंने अपने सब ब्रह्मचारी जनों के साथ आकर अयोध्या में अश्वमेघ यज्ञ किया। कहते हैं राजा को अश्व और प्रजा को मेघ कहते हैं। प्रजा को इसलिए अश्वमेघ यज्ञ बनता है। क्योंकि यज्ञ का अभिप्राय है अपने आंतरिक जगत की त्रुटियों को त्यागना और सूता को ग्रहण करना। जिससे मानव का जीवन पवित्र बन जाए। मेरे प्यारे, मै विज्ञान के युग में नहीं ले जा रहा हूं विचार केवल यह प्रकट करना है कि हम अपने में अपनेपन को जानने का प्रयास करें। महर्षि वशिष्ठ मुनि महाराज ने भगवान राम को उनके पूर्वजों की कथा का वर्णन किया । उन्हें भी यह प्रश्न बना रहा कि प्रभु यह इसका प्रतिशोध नहीं है कि राजा सगर ने यह शिक्षा दी। कपिल ने यह किया और वह हो गया। हे प्रभु मेरा तो बना हुआ है राष्ट्रवाद क्या है वशिष्ठ वशिष्ठ कहलाते थे अपने में उन्होंने वरिष्ठता का ज्ञान था। उन्होंने कहा हे राम, राष्ट्रवाद उसे कहते हैं जहां धर्म और मानवता की रक्षा होती है। वह राष्ट्र कहलाता है जंहा मेरी पुत्रियों को पूजनीय दृष्टि से दृष्टिपात किया जाता है और राष्ट्र के एक छोर से दूसरे छोर में मेरी पुत्री चली जाए। कोई भी उसको कूदृष्टिपान करने वाला राष्ट्र में नहीं होना चाहिए। वशिष्ठ ने जब यह कहा तो राम बड़े प्रसन्न हुए। आप मुझे बाल्यकाल में भी है शिक्षा देते रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा तो शिक्षा है चाहे बाल अवस्था में प्राप्त हो या युवावस्था में प्राप्त हो। परंतु शिक्षा अपनी स्थली में शिक्षा बनी रहती है। महात्मा वशिष्ठ ने कहा तुम यदि अपने राष्ट्र को ऐसा बनाना चाहते हो तो प्रियतम ऊंचा बनता है। जब प्रत्येक मानव के अव्यव पवित्र बन जाते हैं।
गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019
महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद उपदेश
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