राष्ट्र निर्माण पर विचार
देखो मुनिवरो, आज हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे हैं। यह भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा। आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया हमारे यहां परंपरागत ही उस मनोहर वेदवाणी का प्रसार होता रहता है। जिस पवित्र वेद वाणी में उस मेरे देव परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान गाया जाता है। वह परमपिता परमात्मा महिमा वादी है। जितना भी यह जड़त्व-चैतन्य जगत हमें दृष्टिपात आ रहा है। उस ब्रह्मांड के मूल में वह मेरा देव दृष्टिपात आ रहा है और ऋषि-मुनियों ने इसके ऊपर बहुत मनन और चिंतन किया है। वह परमपिता परमात्मा जो सर्वत्र है कोई स्थली ऐसी नहीं है। समुंद्र की कोई तरंग ऐसी नहीं है। पर्वतों में ऐसी कोई गुफा नहीं है जहां वह परमपिता परमात्मा एक-एक कण में दृष्टिपात न आ रहा है। एक-एक अणु और परमाणु में वह गतिशील होने वाला परमाणु है। वह जो उसके मिलान में ब्रह्मांड की प्रतिभा में निहित रहने वाला है। मुझे बहुत से वाक्य स्मरण आते रहते हैं। वेद के जब विचार-विनिमय में विचार बिंदु में प्रवेश होते हैं। तब प्रभु का यशोगान हमारे समीप आता रहता है। क्योंकि जब तक मानव परमपिता परमात्मा को एक-एक कण में अथवा ब्रह्मांड के मूल में दृष्टिपात नहीं करेगा। तब तक वह मानव साधक नहीं बन सकता। क्योंकि साधक और योगेश्वर उस काल में बनता है। जहां वे अपने पन को समाप्त कर देता है जैसे अनु और परमाणु की विवेचना हमारे वैदिक साहित्य में आती रही है। अणु का विभाजन करने से प्रमुख परमाणु का विभाजन करने से ब्रह्मांड की चित्रावलीया उसके समीप आ जाती है। परंतु आज मैं इस संबंध में कोई विशेष विवेचना नहीं देने आया हूं। आज का हमारा वेद का मंत्र कुछ कह रहा है प्रेरणा दे रहा है प्रेरित हो रहा है। आज हमारा यज्ञं ब्रहम व्रत व्रहा। मेरे प्यारे महानंद जी मुझे नाना प्रकार की प्रेरणा देते रहते हैं। परंतु यज्ञं भविता: लोका:, मेरे प्यारे यह जो यज्ञ कर्म है यह परंपरागतो का एक मानवीय क्रियाकलाप है। सृष्टि के आरंभ में आदि ऋषियों ने वेद के मंत्रों को लेकर के उसके ऊपर अनुसंधान किया और वैज्ञानिकों को लेकर के मानव में उसके ऊपर नाना प्रकार की चित्रावलीयो का निर्माण भी किया। इसलिए जो भी क्रियाकलाप सृष्टि के आरंभ से हमारे मस्तिष्क में और क्रियाकलापों में परिणत हो रहा है। क्रियाकलाप उन्हें मानव के जीवन की वृदिया लाने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने नाना प्रकार के यज्ञो का वर्णन किया है। क्योंकि उसमें ज्ञान है विज्ञान है एक सार्थकता निहित रहती है। मैं ऋषि भारद्वाज गोत्र में तो अपनी विज्ञान की धारा को जाना है। उद्दालक गोत्रीय ऋषि मुनियों ने नाना अध्ययन किए है,अध्यन के नाते ही आज कुछ वेद मंत्र स्मरण आ रहे हैं। वेद मंत्र कहते हैं चित्रम वृथम् यज्यो व्रती देवा: यह जो नाना प्रकार के चित्र हमारे पास आते रहते हैं। वायुमंडल में मिश्रित होते हैं। वायुमंडल में गति करते रहते हैं तो वह जो विज्ञान में जो मानव की भावनाएं और तरंगे वायुमंडल में प्रवेश कर जाती है। मैंने इस संबंध में पुरातन काल में भी निर्णय लिया था। एक समय राजा के मन में यह वाक्य आया कि यह जो मेरा जेष्ठ पुत्र हैं वह योग्य बन गया है और मैं साधना करने के लिए गमन करूं ।तो उन्होंने अपने पुत्र को राष्ट्र देकर के मनुवंश की चर्चा की है। वह अपने राष्ट्र को त्याग करके भयंकर वन मे चले गये।राजा अपने अनुसंधान करने लगे। साधना के लिए तो मैंने राष्ट्र त्याग दिया है। अब मुझे साधना करनी है तो वह मुन्जुक ॠषि के द्वार पर पहुंचे और मुन्जुक ॠषि से कहा कि प्रभु मेरा अंत करण कैसे पवित्र होगा। तो मुन्जुक ॠषि ने कहा कि तुम अपने वायुमंडल को पवित्र बनाओ। उसके पश्चात तुम साधना करो उन्होंने कहा प्रभु वायुमंडल कैसे पवित्र होगा। तो साधना के लिए वायुमंडल का पवित्र होना बहुत अनिवार्य है। तू श्वेतकेतु मंगल व्रहे, श्वेतकेतु भयंकर वनों में मुन्जुक ॠषि के क्रियाकलाप के संबंध में प्रश्न करने लगे। उन्होंने कहा तुम यज्ञ करो।
शुक्रवार, 13 सितंबर 2019
यमाचार्य नचिकेता वार्ता (राष्ट्रवाद)
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