सोमवार, 16 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता (धर्मवाद)

गतांक से...
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव इससे पूर्व के काल में राजा रावण की चर्चा कर रहे थे। राजा रावण के राष्ट्र में भी यह घोषणा थी कि मेरे राष्ट्र में याज्ञिक होने चाहिए और वह स्वयं अश्वमेघ यज्ञ भी करते थे। प्रजा-राजा मिलकर के अश्‍वमेघ जब होता है। परंतु यहां महाभारत काल के पश्चात के विद्वानों ने, उनको मैं विद्वान तो नहीं कह सकता। परंतु अर्थ का अनर्थ नही करना चाहता,यागो में घोड़े के मांस की आहुति देना प्रारंभ किया। राजा उसे कहते हैं जो राजा है, प्रजा को ऊंचा बनाने वाला हो और अश्वमेध यज्ञ करने वाला हो । राजा और प्रजा में जो दोनों मिलकर के यज्ञ करते हैं उसको अश्वमेघ यज्ञ कहते हैं। परंतु देखो यहां अर्थों का अनर्थ हुआ है। राजा मे भी अब उसे कहते हैं जो द्वितीय को अपने हृदय को विजय करने वाला हो। राष्ट्र को विजय करने वाला हो। परंतु देखो आज यज्ञ का अभिप्राय, आधुनिक इस महाभारत काल के पश्चात रसवादन करने वालों ने वाममार्ग में यह अपनाया की बकरी के मांस की आ हुती देना प्रारंभ किया। परंतु देखो यह विद्वानों की सब रसना स्वान की चर्चाएं है।कोई मानव यह कहता है कि मेरी मांस उदर की पूर्ति होती है तो मैं कहता हूं कि यह तुम्हारी रसना है। अपने शरीर को एक मुर्दालय की एक स्थली बनाया है। जिसको तुम पान करते रहते हो और यज्ञो का तिरस्कार करने से, समाज ऐसा बन गया है। आज मैं संसार के भ्रमण करने के पश्चात उदगीत गाताचला आ रहा हूं । संसार का प्राणी इस समय वर्तमान काल में आवर्तीयों में 95% के लगभग देखो मांस और सुरापान का है। परंतु देखो इतना पुरातन संसार में रह रहा है। कितना अपने शरीर को नष्ट कर रहे हैं। आज हम यह कल्पना करने लगे कि राम राज्‍य आ जाए या कृष्ण की वह राजसभा आ जाए और ऋषि-मुनियों का वह काल जाए। तो मुझे बड़ा आश्चर्य में दृष्टिपात आता रहता है। मैं इसको स्वीकार किसी-किसी काल में करता रहता हूं। देखो बीज का अंकुरण रहा है। परंतु देखो जब हम यह भी चाहते हैं कि मैं अपने गुरुदेव से चर्चा करता रहता हूं। हे भगवान, इस प्रकार का जो यह समाज बन रहा है। यह जो समाज बन रहा है यह कहां जाएगा। प्रभु, परंतु आज मैं यही कहने आया हूं मेरा अंतर हृदय गदगद हो रहा है। ऐसे वामरगी काल में जिसने धर्म मुद्रा को विशेष मान लिया है। ऐसे काल में अपने धर्म का सदुपयोग कर रहा है। यह तेरे जीवन का सौभाग्य है। तेरी मानवता का सौभाग्य है। मेरे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे। जिससे तू अपने धर्म का सदुपयोग करता रहे। अपने गृह में हमारे यहां महाभारत के काल से पूर्व राम के काल में समाज की कथा देखो उनकी विचित्रता का वर्णन करता है। राम के काल में माता-पिता से प्रथम पुत्र का हनन नहीं होता था। मृत्यु नहीं होती थी। उसका मूल क्या है? उसके मूल में प्रत्येक ग्रह में यज्ञ होता था। माता-पिता संयमी बन करके और ओजस्वी संतान को जन्म देते थे। माता-पिता अपने गर्भ स्थल में ही बालक को बनाना प्रारंभ करते थे । वेद की ध्वनियों की ध्वनि में ध्वनित कर रही, अपने अंग-अंग को जब वेद की ध्वनि से ध्वनित कर रही है। तो माता के गर्भ में बालक का निर्माण हो रहा है। परंतु वह निर्माण इतने पूर्ण आयु की आत्मा अर्पित संस्कारों से निर्माण हो रहा है।माता-पिता से पूर्व उस बालक का हनन नहीं होता है। माता-पिता अपनी संतानों का उपार्जन करते है। अंत में देखो वह प्रसन्न होकर के संसार से जाते हैं। आज संसार नार्किक है क्योंकि देखो आहार और व्यवहार, तिरस्कार होने से यह होता है कि माता का पुत्र माता से प्रथम समाप्त हो जाता है। माता का अंतरण दुखी हो जाता है। वही वायुमंडल की धारा ग्रह में प्रवेश होती है। वायुमंडल में जाती है विज्ञान का दुरुपयोग हो रहा है। तो वह वायुमंडल दूषित हो रहा है वायुमंडल के दूषित होने का परिणाम यह है कि हमारे यहां देखो ध्‍वनी पवित्र नहीं रहती है। ध्वनि में ध्वनि बन गई है। क्योंकि संसार में एक वस्तु का मिलन हुआ है और उसका विच्छेद होता है तो वही अपार कष्ट है। परंतु जो वस्तुओं में प्राप्त हुई है वह जो कि त्‍यो बनी रहती है तो उसका कष्ट नहीं होता और वह उसमें रुग्णता नहीं आती। तो इसलिए मैंने भगवान राम के काल की चर्चा की है। प्रथम जब मांस का,सुरा पान जिस भी काल में मानव स्वार्थ में परिणत हो जाएगा। राष्ट्र में यज्ञ नहीं रहेगा तो वहां माता पिता और पुत्र का अभियोग सदैव अपने में ग्रहण करते रहेंगे और जब मानव निस्वार्थ हो जाता है। कर्म के आधार पर अपने जीवन को व्यतीत करता है कर्तव्यवाद की बेदी पर आता है। तो न विज्ञान का दुरुपयोग होता है ना देखो यह दूषित वायु मंडल बनता है। यह पवित्रता में रहने वाला ज्ञान और विज्ञान अपने में सार्थक बन करके रहता है। मैं अपने पूज्यपाद गुरुदेव से वर्णन कराने आया हूं कि आधुनिक काल का जो राष्ट्रवाद है। संसार का पृथ्वी मंडल पर कोई भी राष्ट्र नहीं रहा है। यह केवल रक्त भरी क्रांति की स्थली बनती चली जा रही है। यहां मत-मतान्‍तरो के कारण इस प्रति मंडल पर एक मानव, मानव को हनन करने के लिए तत्पर हो रहा है। उसके मूल में क्या है? राजा हिंसक बने हुए हैं, राजा हिंसा की वेदी पर परिणत हो रहा है। जब राजा हिसंक हो गया तो परिणाम क्या हो रहा है। उसका परिणाम है कि मानव का हृदय हिंसा मे तत्पर रहता है।


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