मुनिवरो, हम पूर्व की भांति आपके समक्ष कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे हैं। तुम्हें भी प्रतीत हो गया होगा। आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया। हमारे यहां परंपरागत उससे ही उस मनोहर वेद वाणी का प्रसार होता रहता है। जिस पवित्र वेद वाणी में उस मेरे देव परमपिता परमात्मा की प्रतिभा का वर्णन किया जाता है। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा महान और प्रतिभाशाली कहलाया जाता है। उसीकी चेतना से ही यह जगत चैतन्य हो रहा है। जितना भी है जडवत संसार है अथवा चेतन जगत है। उनको क्रिया में लाने वाला है अथवा क्रियाशील बना रहता है। एक मनोनीत चेतना के लाई जाती है। उसी की चेतना में यह सर्वत्र ब्रह्मांड क्रियाशील दृष्टिपात आ रहा है। आज का हमारा वेद का ऋषि हमें यह कह रहा है कि यह नाना प्रकार की प्रेरणा दे रहा है और यह कह रहा है। हे मानव,तू अपने जीवन को उधरवागति में ले जाने का प्रयास कर। उधरवागति में कौन जाता है? उधरवागती हम किसे कहते हैं? हमारे आचार्यों ने यह माना है कि सर्वत्र इंद्रियों में उस परमपिता परमात्मा की प्रतिभा का ही वर्णन होता रहता है। अथवा उसी महान, उसकी महानता निहित रहती है। हमारी प्रत्येक इंद्रियों में धर्म और मानवता समाहित रहती है। हमें विचारना चाहिए कि मानव का धर्म और मानवता दोनों का कितना घनिष्ठ संबंध है? क्योंकि धर्म उसे कहा जाता है जिसको मानव अपने में धारण कर लेता है और धर्म उसे कहते हैं जो धर्म मानव इंद्रियों में समाहित रहता है। वह धर्म नहीं कहा जाता, वह स्वत ही उसमें निहित रहता है। प्रत्येक इंद्रिया धर्म के सूत्र में पिरोई हुई रहती है। इस सूत्र को धारण करने के पश्चात मानव का जीवन धन्य हो जाता है।वह जो धर्म है मुनवरो 'इंद्रिया वृहे व्रत् लोकामं' धर्म रूपी सूत्र में संसार पिरोया हुआ है ।यहां नाना लोक लोकांतर पिरोए हुए रहते हैं। परंतु आज हमें धर्म को जानना है। मैंने धर्म के संबंध में बहुत सी विवेचना पुरातन काल में प्रकट करते हुए कहा है कि मानव को वास्तव में धर्म को जानना चाहिए। क्योंकि धर्म एक सूत्र है जिस सूत्र में प्रत्येक परमाणु पिरोया हुआ है। लोक-लोकांतर पिराया हुआ है और वह ॠत और सत में भ्रमण करता हुआ मानव को उज्जवलता प्रकट करता रहता है। उज्जवल बनाता रहता है। मुझे वह काल स्मरण आता रहता है जिस काल में याज्ञवल्क्य मुनि महाराज अपने आश्रम में विद्यमान रहते थे। ब्रह्मचारीओं के मध्य में विराजमान होकर के कर्मचारियों से उच्चारण कर रहे थे। हे ब्रह्मचरयो, धर्म के ऊपर निरंतर चिंतन करना प्रारंभ करेंगे। वह काल स्मरणन आने लगता है तो हृदय गदगद हो जाता है। मेरी याज्ञवल्क्य मुनि महाराज के आश्रम में नाना ब्रह्मचारी प्रातः कालीन नाना समाधियों को लेकर आचार्यों के चरणों में ओत-पौत हो गए और ऋषि से कहते हैं
।महाराज ,हम यज्ञ करना चाहते हैं ब्रह्मचारी जब कहते हैं कि यज्ञ करना चाहते हैं तो ऋषि कहते हैं। यज्ञ किससे कर रहे हो ।उन्होंने कहा कि अब मैं समाधी के द्वारा यज्ञ कर रहा हूं। समिधा किसे कहते हैं। समिधा उसे कहते हैं जो अग्नि को चैतन्य कर देती है। परंतु अग्नि कैसे होती है यह समाधिओ के द्वारा होती रहती है। और समिधा जब अग्नि में प्रवेश कर जाती है तो अग्नि उदिप्त हो जाती है। इसी प्रकार यहां समिधा जहां काष्ट की समिधा होती है ।जहां वृक्ष की समिधा होती है। मुनिवरो, देखो मानव के शरीर में जो यज्ञ होता है। उसकी समिधा क्या है? ब्रह्मचारी, ऋषि याज्ञवल्क्य मुनि महाराज कहते हैं हे ब्रह्मचारयो, तुम्हारे हृदय में जो अग्नि प्रदीप्त हो रही है। उसकी समिधा क्या है। उसका वजस्व कौन है, उसका उदबुद करने वाला कौन है? वेद के ऋषि ने जब ऐसा कहा तो ब्रह्मचारी कहते हैं। हे प्रभु, हमारे शरीर की जो अग्नि उदबुद होती है। उसकी समिधा ज्ञान है, उसकी संमिधा विवेक है, जिसको धारण करने के पश्चात मानव का जीवन धन्य हो जाता है और यह संसार उदबूद स्वाहा कह करके अपनी वाणी से आंतरिक, अपने को ब्रह्म-जगत में प्रवेश करा देता है और कहीं-कहीं ब्रह्मा-जगत की अग्नि को आंतरिक जगत में प्रवेश करा देता है। तो परिणाम क्या? यह जो विशाल अग्नि है उस अग्नि को हम अपने में धारण करना चाहते हैं ।जो अग्नि लोको में सूर्य को प्रकाश मान बना रही है। तेजोमयी बना रही है। वही अग्नि है जो पृथ्वी के गर्भ में प्रवेश होकर के नाना प्रकार के खाद और खनिजों को उत्पन्न कर रही है। वह जो बननती है, जो नाना प्रकार की वनस्पतियों को ऊंचा बना रही है। वही अग्नि है जो माता के गर्भ स्थल में एक बिंदु प्रवेश करता है। उसे एक बिंदु के प्रवेश करने पर परमाणु की व्यवस्था परमाणु विभक्त हो जाते हैं और परमाणु अपने आंगन में गति करना प्रारंभ करते हैं। जब माता के गर्भ में परमाणु गति करते हैं। उन्ही प्रमाणुओ में से वह धर्मम् जबपृहे लोका: वेद का ऋषि कहता है। अपने-अपने धर्म अपनी-अपनी आभा में, अपने-अपने कारण में, प्रत्येक प्रमाण लय हो करके हम जैसे पुत्रों का निर्माण माता के गर्भ स्थल में करता है।
शनिवार, 7 सितंबर 2019
यमाचार्य नचिकेता वार्ता (धर्मवाद)
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