गतांक से... मुनिवर, परमपिता परमात्मा का यह अनुपम जगत है। यह तरंगवाद में सर्वत्र रहता है। सर्वत्र तरंगों में निहित हो रहा है। प्रत्येक विचार तरंगित हो रहे हैं। विचार आभा में नृत्य कर रहे हैं। ग्राहपथ्य नाम की जो अग्नि है। उसके संबंध में उदगीत गा रहा हूं। मुझे स्मरण है जब हम अपने पूज्य पाद गुरुओं के द्वारा अपने पितरों के द्वारा अध्ययन करते थे। माता लोरिया पान कराती थी, वेद मंत्रों के उदगीत गाती रहती थी। मानव संस्कार बनता रहता था। उन्हीं संस्कार के आधार पर मुनिवर मानव का जीवन मानवीय क्षेत्रों के उपरांत को प्राप्त होकर के मुनि की कोटी में चला जाता है। ऋषि मुनियों की प्रतिभा में चला जाता है तो विचार-विनिमय क्या है? मैं विशेष नहीं देने आया हूं मै भी नहीं केवल परिचय देने चला आता हूं और वह परिचय क्या है। आचार्य के वाक्यों को प्रगट कर रहा हूं जो उन्होंने कहा है। उन्होंने कहा कि गृहपथ्य नाम की अग्नि का पूजन करो। हम भी करते हैं प्रातः कालीन करते हैं। ब्रह्मचारी महान तपस्वी बन जाते हैं ।उन्होंने कहा कि मुझे स्मरण है नचिकेता एक समय हम अपने कुटुंब के सहित भ्रमण करते पर्वतों की राहों में चले गए। वहां एक सोमकेतु सोभनी ऋषि महाराज अपनी याग में बने हुए थे और अपनी आत्मा के इंद्रियों का संकल्प बना करके याग कर रहे थे। याग करते हुए हमने कहा, प्रभु यह क्या कर रहे हो उन्होंने कहा मैं नाना प्रकार के संकल्प अंतर हृदय इंद्रियों के साथ ले बना करके हृदय रूपी यज्ञशाला में याग कर रहा हूं। हृदय यागों में प्रतिष्ठित हो रहा हूं जब इस प्रकार का हमने श्रवन किया तो वहां 12 वर्ष हमने भी इस प्रकार का अनुष्ठान किया। 12 वर्षों तक इंद्रियों के संकल्प को एकत्रित करके यज्ञ किया। हमारा जीवन मृत्यु के लिए व्याकुल हो गया कि मृत्यु से पार होना चाहिए। हम भी मृत्यु से पार हो, इसी प्रकार हमें सबको मृतक का नाम ही ज्ञान और विज्ञान कहलाता है। इस प्रकार के वाक्य प्रकट किए क्रियाशील बनाने का उद्देश्य स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा धन्य है प्रभु आपने हमारे ज्ञान की प्रतिभा को समाप्त कर दिया है। योगिता लोकाम् वृरिथा जब उन्होंने यह कहा कि हमारा जीवन एक महानता की ज्योति में प्रवेश हो जाना चाहिए। चेतन हो गया और उन्होंने कहा धन्य है प्रभु आपने हमें धन्य ही नहीं आपने तो हमें मृत्युंजय बनाने की एक पगडंडी को दिया है। आपको धन्यवाद है। यहां आकर के नचिकेतन मौन हो गया और मोन हो करके उन्होंने यज्ञशाला का क्रियाकलाप वर्णन किया। ग्राहपथ्य की अग्नि तत्व को प्राप्त कर आती है। वह देवताओं की जागृति कर आती है। इस प्रकार का विचार दिया इस प्रकार का उन्होंने जब अपना विचार दिया। उदगीर बनाने के लिए तो नचिकेता अपने में मौन होकर के चिंतन में लगा। उन्होंने कहा है नचिकेता मोन होना नहीं है। एक तीसरी अग्नि कहलाती है जिसको अवनी अग्नि कहते हैं जब माता-पिता बालक बालिकाओं से प्रबल बन जाए। कृपया करके भ्रमण करना प्रारंभ करें और सात्विकता से भ्रमण करते हुए विद्यालयों में अन देते हुए, विद्यालय की प्रतिभा को ऊंचा बनाते हुए। राष्ट्र समाज और प्रजा को उधरवा में गति कराते हुए उस अग्नि का पूजन करना चाहिए। वह अवनी अग्नि कहलाती है जो ग्रह को त्याग करके अपने में अग्नि का पूजन करता है। पूजन करने का नाम है स्वर्ग कहलाता है। पूजा तीन प्रकार की जाती है इन तीनों प्रकार के पूजन करने का नाम स्वर्ग कहलाता है। नचिकेता तीन प्रकार की अग्नि का पूजन होना चाहिए। इतना उच्चारण करके वह मौन हो गए हैं। उन्होंने मौन हो करके अपने में सांत्वना को प्राप्त किया। नचिकेता ने कहा प्रभु आपने इसमें बहुत कुछ स्वर्ग की घटनाएं की स्वर्ग के लिए आपने हमें बहुत सा उदगार दिया है। हम जानना चाहते हैं। आत्मा शरीर को त्याग करके कहा जाता है? यह मेरा तीसरा प्रश्न है। उन्होंने यह वाक्य उच्चारण करके मोहन हो गये। यम आचार्य ने कहा हमारा यह विचार कल प्रकट होगा। आज का विचार यहीं पर समाप्त होता है। आज के बाद का का उच्चारण करने का हमारा अभिप्राय क्या है। पूजन का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक वस्तु को जान करके उसका सदुपयोग करना उसको क्रिया में लाना। यही सदुपयोग और उसका पूजन कहलाता है। पूजन का अभिप्राय मैंने कई काल में तुम्हें उच्चारण किया है
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