सोमवार, 23 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता

गतांक से...


मुझे स्मरण आता रहता है शतपथ ब्राह्मण के ऋषि ने एक बहुत ही ऊंची वार्ता प्रकट की। देखो वेद का ऋषि याज्ञवल्क्य मुनि कहता है कि एक समय था वाजपेई यज्ञ जब हो रहा था तो यज्ञ को, वर्णीअस्‍ते, काला हिरण यज्ञ को ले गया। उस शौर्य को ले जाकर के उसने वत्रासुर को अर्पित कर दिया। वत्रासुर ने उसकी वृष्टि कर दी और वृष्टि करके वहां बैल की, गो के बछड़े की वहां बली का वर्णन आया। बलि का अभिप्राय यह है कि पुरुषार्थ करना, बलि से पुरुषार्थ करके पृथ्वी पर वत्रासुर ने वृष्‍टि की। इस पृथ्वी के गर्भ से नाना प्रकार का खाद पदार्थों को उत्पन्न करने का नाम भी गान के रूप में परिणत किया गया है। वैदिक साहित्य ने बहुत सी ऊंची युक्तियां देते हुए कहा कि कौन गाता है। धुंध ने उसी को वितरकों को प्रदान कर दिया। वत्रासुर नाम मेगो का कहा गया है। मेघों ने उसकी धीमी वृष्टि कर दिया, देखो अन्‍न की उत्पत्ति हो गई है। मानव की परिक्रमा करने लगा, उससे गाने लगा अद्भुत प्रेम, देवा अन्नादम इस प्रकार का गान जब स्वर धमनियों में परिणत होता है। ऐसा स्मरण है जहां मानव यह गाना गाता है, मल्हार होता है। जिससे मेधा उत्पन्न होकर के प्रारंभ हो जाती है। यह चर्चाएं तुम्हें कहां तक करूंगा। वैदिक साहित्य की चर्चा काल आता रहेगा। मैं वर्णन करता रहूंगा। परंतु आज का विचार-विनिमय क्या है कि गायत्री मां तू गाई जाती है। प्रत्येक वेद मंत्र को गायत्री कहते हैं। गान रूपों में गाई जाती है। जब गाई जाती है तो गाना गाने वाला गा रहा है। इसी प्रकार एक दूसरा प्राणी की परिक्रमा कर रहा है।मानव एक, दूसरे लोगो की परिक्रमा कर रहा है। जैसे पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही है, सूर्य बृहस्पति की परिक्रमा कर रहा है। बृहस्पति अरुण मंडल की परिक्रमा कर रहा है। अरुण मंडल ध्रुव की परिक्रमा कर रहा है।   मंडल जेष्‍ठा नक्षत्र की परिक्रमा कर रहा है, जेष्‍ठा या नक्षत्र स्वाति नक्षत्र की परिक्रमा कर रहा है। स्वाति नक्षत्र आश्रयतू मंडल की परिक्रमा कर रहे हैं। आश्रयतू मंडल अचल मंडलों की परिक्रमा कर रहे हैं। अचल मंडल कीर्ति मंडलों की परिक्रमा कर रहे हैं। कीर्ति मंडल कौनकेतु मंडल की परिक्रमा कर रहे हैं। मंडल गंधर्व लोगों की परिक्रमा कर रहे हैं। लोक,लोको की परिक्रमा कर रहे हैं। इंद्र से लेकर पृथ्वी से लेकर के 1 सौरमंडल बन गया है। एक सौरमंडल यह विशाल है। इसमें अरबों खरबों लोक लोक अंतर्गत परिक्रमा कर रहे हैं। मुनिवरो, प्रमाण के रूप में इनका सूत्र बना हुआ है। एक चेतना है जो एक दूसरे को पिरोने वाली चेतना ही महान है ।वही सूत्र कहलाता है। सौरमंडल आकाशगंगा में गति कर रहे हैं, आकाशगंगा में गणना करने वाले ने कहा है कि आकाशगंगा में लगभग 1 के लगभग सौरमंडल कहलाते हैं। और ऐसी ऐसी आकाशगंगा ऋषि मुनियों के विज्ञान के अनुसार लगभग 972 आकाशगंगा दृष्टिपात आती रहती है। मुनिवरो, इस प्रकार का विज्ञान हमारे राष्ट्र में वैदिक साहित्य में आता रहा है। सौरमंडल में मैंने तुम्हें वर्णन कराया है कई काल में वर्णन कराया है। आज भी तुम्हें परिचय दे देता हूं। 3000000 पृथ्वी है जो सूर्य की परिक्रमा कर रही है। एक सहस्त्र सूर्य है जो अरुण मंडल की परिक्रमा कर रहे हैं। एक सहस्त्र आरुणि है जो ध्रुव मंडल की परिक्रमा कर रहे हैं। एक सहस्त्र गुरु है जो मूल नक्षत्र की परिक्रमा कर रहे हैं। एक सहस्त्र जेष्‍ठा नक्षत्र है जो मूल नक्षत्रों की परिक्रमा कर रहे हैं। ऐसे ऐसे चल मंडल एक सहस्त्र चल मंडलों की परिक्रमा कर रहे है। कृति मंडलों की परिक्रमा गंधर्व लोक, एक सहस्त्र लोक इस इंद्र की परिक्रमा करते हुए यहां एक सौरमंडल बनता है। यह सौरमंडल बना और सौरमंडल भ्रमण करने लगा।एक आकाशगंगा में इसमें एक अरब 99 करोड के लगभग सौरमंडल है। ऐसी ऐसी आकाशगंगा याज्ञवल्क्य ऋषि, ऋषि भारद्वाज के विद्यालय में उनके यहां विज्ञान शालाओं के अनुसार 972 आकाशगंगा दृष्टिपात आती रही है। मुनिवर यह ब्रह्मांड एक दूसरे में नृत्य कर रहा है। गाना गा रहा है एक सूत्र में पिरोया हुआ है। जैसे मानव के मस्तिष्क में एक आनंदावनी होती है उस आनंद ध्वनि को जानकर के दीपमालिका का गाना गाते हैं कहीं मल्हार गाना गाते हैं कहीं श्रुति गान गाते हैं। कहीं जटा गान गाते हैं कहीं उदार, तनुदार स्वरों की धनि बन जाती है। मेरे प्यारे, मैं विशेष विवेचना देने नहीं आया हूं। मैं गंभीर समुद्रों में चला गया हूं। इन समुद्रों में जाने के लिए नहीं आया हूं। विचार-विनिमय क्या है कि मुझे देखो परमपिता परमात्मा की आराधना करते हुए देव की महिमा का गुणगान गाते हुए। हम उसका गाना गाते रहे। मां गायत्री तू गान के रूप में गाई जाती है और तेरे घर स्थल में सर्वत्र ब्रह्मांड का गान हो रहा है। आज का वाक्य उच्चारण करने का अभिप्राय यही है कि परमपिता परमात्मा की आराधना करते हुए उस देव की महिमा का गुणगान गाते हुए इस संसार सागर से पार हो जाए। आज का वाक्य समाप्त होता है। शेष चर्चाएं कल प्रकट करूंगा, अब वेदों का पठन-पाठन होगा।


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