गुरुवार, 5 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता

गतांक से...


मेरे प्यारे देखो बाह्य और आंतरिक दोनों दूषित हो गए तो उस समय मुनि मानो, देखो, उसके शोधन के लिए कोई क्रियाकलाप नहीं करता और वह परमाणु उसी को प्राप्त होकर के और भी कला का क्षेत्र बन कर के वह नाना प्रकार के और प्रिय भोज पदार्थ में रत हो करके मेरे प्यारे देखो अपने को नष्ट करने वाले बन जाते हैं। तो विचार-विनिय मैं विशेष चर्चा नहीं देने आया हूं। विचार यह देने के लिए आया हूं। साक्‍लय मुनि महाराज कालिंग के गिरी में बेटा देखो वह यह वाक्य उच्चारण करने लगे। मुनिवरो देखो कात्यायन की पत्नी ने कहा, प्रभु मुझे कुछ ऐसा प्रतीत होता है। आपके शरीर से आपके हृदय से मुझे ऐसी सुगंध आ रही है। जैसे ब्राहो ममता मे परिणत हो जाएं। साक्‍लय मुनि ने कहा देवी तुम्हारा वाक्य मिथ्या तो होता नहीं। मैंने कई काल कई ॠषियो से यह वाक्य मैंने श्रवण किया है। क्या तुम्हारा वाक्य यर्थात है तुम जीवन में सत्य उच्चारण करने वाली हो,मिथ्या  उच्चारण नही करती हो। जब इस प्रकार की आभा जब तुम्हारे में है तो मैं भी मोह में परिणत हो सकता हूं। कोई ऐसा आश्चर्य नहीं है। मेरे प्यारे देखो उन्होंने कहा तो प्रभु आप अपने को ममता से दूर कीजिए। आप अपने को मोह से भी दूर कीजिए। उन्होंने कहा देवी में प्रयास तो करूंगा। परंतु देखो यह कैसे होगा और उसको प्रभु ही जानता है। मैं नहीं जान पाता। आपको भविष्य कि मुझे चर्चाएं घोषणा की है मेरे प्यारे हो सकता है। मेरे यह शरीर में चित्र के मंडल में ऐसे अंकुर विद्यमान हो। 
 साक्‍लय मुनि महाराज ने बेटा एक रात्रि वहां विश्राम किया और वहां से उन्होंने गमन किया। गमन करते हुए जब आश्रम में आए तो हिरनी का बालक व्याकुल हो रहा था। वह जल का भी गमन नहीं कर रहा था। उनसे उनको मोह हो गया देखो हिरणी के बालक को, अपने ऋषि को पिता तुल्य स्वीकार करके उससे मोह हो गया। अब ऋषि ने आ करके उससे अपने कंठ से आलिंगन किया। रात्रि का समय हुआ तो उस वक्त को बिचारने लगा। क्या मुझे कात्यान की पत्नी ने जो वाक्य कहा है। वह वाक्य तो उन्होंने बड़ा विचित्र कहा हैै। हो सकता है मुझे भी आज हिरनी के वाल्य को दृष्टिपात करके मेरा अंत:हृदय यह कहता है कि तुझे मोह हो गया है।मानो तुझे ममत हो गई है तेरे बिना यह नहीं रह पाता और मेरा प्रांत:हृदय ही मानो उसकी निंदनीय दशा को दृष्टिपात करके मैं भी व्याकुल हो गया हूं। इस प्रकार वह चिंतन में लग गए और चिंतन करते रहे। मेरे प्यारे देखो चिंतित में लगे रहे मुनिवरो, देखो प्रात कालीन हिरनी के वाले को पुनः हृदय से प्रणाली गमन किया और उसको गो के गृह और दुग्ध के द्वारा उसका पालन करने लगे। तो मुझे कुछ ऐसा स्मरण है। क्या मुनिवरो, देखो पूर्णरूपेण जब वह पालन करने लगे तो एक समय भ्रमण करते हुए कहीं से उनके पिता श्वेतकेतु आ गए और माता भी आ गई आ गई। पित्रो संभव्‌ लोकांम मेरे प्यारे श्वेतकेतु को दृष्टिपात करके महर्षि साक्‍ल्य मुनि महाराज ने मानो उनके चरणों को स्पर्श किया और उन्हें आसन दिया। उस पर वह विराजमान हो गए माता भी विद्यमान हो गई । तो वह हिरनी के वालक को दुग्ध का पान कराने लगे। उनका स्वागत तो इतना ही किया। तो वह विराजमान हो गए और वह हिरनी के वाले को दुग्ध आहार कराने लगे। माता पितरों को मानो दुग्ध आहार नहीं कराया अंजल पान नहीं कराया। मानो कंदमूल नहीं दिया हिरनी के वलेय की ममता में उसके रथ रहने पर मेरे प्यारे देखो वह श्वेतकेतु ऋषि के अश्रु पात होने लगे और अपनी पत्नी से बोले क्या। हे देवी हम वृद्धि यहां से हमारा प्रस्थान होना चाहििए। उन्होंने कहा प्रभु ओम ब्रह्मा पुत्र शुभम ब्रह्मा उन्होंने कहा ऋषि साकलय के पुत्र स्वीकार करेंंगे। इन्हें ऋषि की दृष्टि से दृष्टिपात करोगे उन्होंने कहा देवी महतो दृष्टि ऋषि की आवाज से ही प्राप्त कर रहा हूं। परंतु देखो मेरा अंतरात्मा दुखित हो जा रहा हैै। क्यों, उन्होंने कहा देवी, हमने इसके बाल्यकाल में इसके बनाने में जो हमने सहयोग दिया है। वैसे योग आज हमें व्रत प्रतीत हो रहा हैै। मेरे पुत्रों उन्होंने कहा भगवान ऐसा क्यों है? उन्होंने कहा इससे मोह हो गया है ना होने के कारण हम आए हैं। हमारा संभव हमारा अंतरण ह्रदय यह कह रहा है कि यह ममता-मोह में परिणित हो गया है! साथ सावले ब्रह्मा करले ने कहा है भगवान,ॠषिवर आप व्‍याकुुल क्यों हो रहे हैं क्यों पागल हो रहे हो। उन्होंने कहा कि है पुत्रों, क्या मैं तुम्हें मोह में दृष्टिपात कर रहा हूं। साक्‍लय मुनि ने कहा प्रभु आप मुझे तो मोह में ही दृष्टिपात कर रहे हैं। मैं मोह में आपको भी दृष्टिपात कर रहा हूं। अब मुनि वह देखो वह पिता मोहन हो गए। माता ने कहा कहो भगवान ॠषिवर शाक्यल मुनि क्या कह रहे हैं। मेरे प्यारे उन्होंने कहा यथार्थ कह रहे हैं। मैं ममता में ही हू । शाक्यलमुनि कहते हैं क्या मोह की संतान मोह में ही नष्ट हो जाती है। भगवान! मेरे प्यारे देखो, स्वाद को दृष्टिपात करते हुए उन्होंने यहां यथार्थ बताया है। इसलिए वेद ऋषि कहता है मंत्र कहता है। वक्तव्य ब्राहा ब्रह्मण प्रवचन।


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