मोर को कार्तिकेय (मुरुगन) का वाहन माना जाता है। प्रख्यात खग मोर अथवा मयूर एक पक्षी है। जिसका मूलस्थान दक्षिणी और दक्षिणपूर्वी एशिया में है। ये ज़्यादातर खुले वनों में वन्यपक्षी की तरह रहते हैं। नीला मोर भारत और श्रीलंका का राष्ट्रीय पक्षी है। नर की एक ख़ूबसूरत और रंग-बिरंगी फरों से बनी पूँछ होती है, जिसे वो खोलकर प्रणय निवेदन के लिए नाचता है! विशेष रूप से बसन्त और बारिश के मौसम में। मोर की मादा मोरनी कहलाती है। जावाई मोर हरे रंग का होता है।
बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों से जरी शाही पोशाक पहनी हुई हो; इसीलिए मोर को पक्षियों का राजा कहा जाता है। पक्षियों का राजा होने के कारण ही प्रकृति ने इसके सिर पर ताज जैसी कलंगी लगायी है। मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही भारत सरकार ने 26 जनवरी,1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। हमारे पड़ोसी देश म्यांमार का राष्ट्रीय पक्षी भी मोर ही है। 'फैसियानिडाई' परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम 'पावो क्रिस्टेटस' है। अंग्रेजी भाषा में इसे 'ब्ल्यू पीफॉउल' अथवा 'पीकॉक' कहते हैं। संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है। मोर भारत तथा श्रीलंका में बहुतायत में पाया जाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार मानव आबादी तक ले आती है।
मोर प्रारम्भ से ही मनुष्य के आकर्षण का केन्द्र रहा है। अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को उच्च कोटी का दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर को मार कर खाना महापाप समझा जाता है। भगवान् श्रीकृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस पक्षी के महत्त्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य 'मेघदूत' में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत पसंद रहा है। प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जो सिक्के चलते थे, उनके एक तरफ मोर बना होता था। मुगल बादशाह शाहजहाँ जिस तख्त पर बैठते थे, उसकी संरचना मोर जैसी थी। दो मोरों के मध्य बादशाह की गद्दी थी तथा पीछे पंख फैलाये मोर। हीरों-पन्नों से जरे इस तख्त का नाम तख्त-ए-ताऊस' रखा गया। अरबी भाषा में मोर को 'ताऊस' कहते हैं।
नर मोर की लम्बाई लगभग 215 सेंटीमीटर तथा ऊँचाई लगभग 50 सेंटीमीटर होती है। मादा मोर की लम्बाई लगभग 95 सेंटीमीटर ही होती है। नर और मादा मोर की पहचान करना बहुत आसान है। नर के सिर पर बड़ी कलंगी तथा मादा के सिर पर छोटी कलंगी होती है। नर मोर की छोटी-सी पूँछ पर लम्बे व सजावटी पंखों का एक गुच्छा होता है। मोर के इन पंखों की संख्या 150 के लगभग होती है। मादा पक्षी के ये सजावटी पंख नहीं होते। वर्षा ऋतु में मोर जब पूरी मस्ती में नाचता है तो उसके कुछ पंख टूट जाते हैं। वैसे भी वर्ष में एक बार अगस्त के महीने में मोर के सभी पंख झड़ जाते हैं। ग्रीष्म-काल के आने से पहले ये पंख फिर से निकल आते हैं। मुख्यतः मोर नीले रंग में पाया जाता है, परन्तु यह सफेद, हरे, व जामुनी रंग का भी होता है। इसकी उम्र 25 से 30 वर्ष तक होती है। मोरनी घोंसला नहीं बनाती, यह जमीन पर ही सुरक्षित स्थान पर अंडे देती है।
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