जिला अधिकारी से चश्मा हटाने की दरकार
अश्वनी उपाध्याय
गाजियाबाद। जनपद की व्यवस्था की चर्चा दुनिया के हर मंच पर की जाए तो भी यह गुणगान अधूरा ही रह जाएगा। अत्याचार-भ्रष्टाचार की सीमाएं अनंत होती जा रही है। लाखो अधिकारी कर्मचारी और नेता जनता की अंतर हृदय से सेवा करने में तल्लीन है। जिले की शासनिक और प्रशासनिक व्यवस्था का जिला अधिकारी को चश्मा हटा कर देखने की दरकार है। जनपद में थाने हाई क्लास के दलाली घर बन रहे हैं। अपराधियों के इशारे पर अधिकारी नाच करते नजर आ रहे हैं। पुलिस इतनी कर्तव्यनिष्ठ हो गई है कि रिश्वतखोरी की प्राथमिकता पर ही सुनवाई होती है। यदि पीड़ित के पास पुलिस को देने के लिए धन नहीं है तो पुलिस अंधी-बहरी बन जाती है। अपराध के पोषण का कार्य कर रही है स्थानीय पुलिस। ऐसा एक भी अपराध नहीं है जो जनपद में धड़ल्ले से ना हो रहा हो। आखिर यह सब इतना अनियंत्रित क्यों हो रहा है?
वहीं गत दिनों लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर के कार्यालय पर विधायक से शिकायत करने के लिए धरने पर बैठे पत्रकारों को दिनदहाड़े जान से मारने का प्रयास जैसी असामान्य घटनाएं जनपद में अधिकारियों की कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा करती है। निरीह कमजोर जनता पर अत्याचार करने वाला कोई शूरवीर नहीं हुआ। सामाजिक जन जागरण में संलिप्त पत्रकारों पर हमला होना, सामाजिक अवस्था और स्थिति का अवलोकन कराता है। हो सकता है पत्रकारिता से जुड़ा समाज इससे कुछ सबक ले। जो पत्रकार अभी भी चाटुकारिता में व्यस्त हैं उन्हे समझना चाहिए पत्रकारिता का पहला अध्याय सच है और सच बहुत कड़वा होता है।
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