मंगलवार, 24 सितंबर 2019

जीवित चूहों का प्रसिद्ध मंदिर

रामचन्द्र गहलोत


बीकानेर। थार रेगिस्तान में बीकानेर से लगभग 32 किलोमीटर दूर मरू टीलों के बीच एक चर्चित गांव है-देशनोक। बीकानेर जिले के इस प्रसिद्ध गांव में करणी माता का एक मन्दिर है जो 'चूहों का मन्दिर' नाम से प्रसिद्ध हैं। मरू टीलों के बीच बसा यह छोटा सा गांव इस मन्दिर के कारण दुनियाभर में विख्यात है। इसे 'चूहों का स्वर्ग मन्दिर' भी कहा जाता है। चूहों का ऐसा संगम शायद ही दुनिया में अन्यत्रा कहीं देखने को मिले। इस मन्दिर में हर तरफ चूहे ही चूहे नजर आते हैं। कोई आराम करता हुआ, कोई खाता हुआ, कोई पीता हुआ तो कोई आपस में खेलता हुआ। रोचक बात यह है कि मन्दिर में जहां तक नजर जाती है वहीं ये चूहे विचरण करते हुए नजर आएंगे।


सुबह एवं संध्या की आरती के समय आपको मन्दिर प्रांगण में हजारों की संख्या में चूहे नजर आयेंगे। संध्या आरती के समय तो जो भक्त एक बार जहां खड़ा होता है, आरती पूर्ण होने तक उसे वहीं खड़ा रहना पड़ता है क्योंकि पूरा मन्दिर प्रागंण चूहों से भर जाता है। आरती के पश्चात बड़े-बड़े थालों में इनके लिए भोजन रख दिया जाता है तथा भक्त लोग इतने चूहों को एक साथ भोजन करते देख धन्य हो जाते हैं। कहते हैं इस मन्दिर में एक सफेद चूहा है जो किसी सौभाग्यशाली को ही दिखाई देखा है और उस पर माता की विशेष कृपा होती हैं। यह चूहा बहुत कम लोगों को दिखाई देता है।


इन चूहों को खाने के लिए मन्दिर के पुजारी मिठाई, अनाज, दूध एवं पानी देते हैं। मन्दिर में आने वाले भक्त भी इनके लिए लड्डू, बर्फी, पेड़ा, दूध एवं अन्य मिठाई चढ़ाते हैं। मन्दिर में इन चूहों के लिए एक अलग रसोईघर है जहां बड़े-बड़े कड़ाहों में इनके लिए भोजन तैयार होता हैं। खास बात यह है कि इनके छोड़े हुए भोजन को भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाता है और भक्त लोग बड़ी प्रसन्नता से प्रसाद ग्रहण करते हैं। चूहों को कोई पक्षी न झपट ले जाए, इसके लिए मंदिर प्रांगण के ऊपर लोहे की जालियां लगी हुई हैं।


मन्दिर में प्रवेश करते ही एक बोर्ड पर लिखा है, कि 'अगर किसी के पैर के नीचे दबकर कोई चूहा मर गया तो बदले में उसे चांदी का चूहा देना होगा। कृपया सावधानी से चलिए, इसलिए श्रद्धालु मन्दिर में पैर घिसटाकर चलते हैं। इस चूहों ने आज तक किसी को नहीं काटा है। गुजरात में फैले प्लेग के दौरान एक वैज्ञानिक दल भी निरीक्षण के लिए आया था परंतु इन चूहों में किसी तरह की कोई बीमारी नहीं पाई गई।


माना जाता है कि करणी माता का वरदान है कि देशनोक में कभी कोई महामारी नहीं फैलेगी। ऐतिहासिक एवं धार्मिक मान्यता के अनुसार करणी माता का जन्म सुआप गांव (जोधपुर) के चारण वंश के मेहोजी के घर विक्रमी सवंत 1444 में अविश्वनी शुक्ल सप्तमी को हुआ था। कहते हैं कि मेहोजी एवं उनकी पत्नी देवल ने इष्टदेवी हिंगलाज की लम्बी आराधना की जिससे प्रसन्न होकर देवी ने दुर्गा रूप में इन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। मेहोजी और देवल ने देवी से अपने घर में जन्म लेने का वर मांगा। देवी ने इन्हें यह वर दे दिया और इनके घर जन्म लेने का वचन भरा। मान्यता हैं कि करणी माता ने नौ की बजाय 21 माह गर्भ में रहकर जन्म लिया था और प्रसूति के समग देवल को दुर्गा रूप में दर्शन देकर अपने वचन का स्मरण कराया था।


मेहोजी और देवल माता ने इनका नाम 'रिधूबाई' रखा था परंतु बचपन से ही अपने अलौकिक चमत्कारों, अंधों, लगड़ों को ठीक करने तथा रोगियों के रोग दूर करने के कारण इनका नाम 'करणी' रख दिया गया। करणी माता ने यहां के जनमानस को अनेक चमत्कार दिखाये और धीरे-धीरे करणी माता यहां के लोगों की असाध्य देवी बन गई। करणी माता के संबंध में यहां अनेक जनश्रुति प्रचलित हैं। कहते हैं कि भूख प्यास से व्याकुल युगल राजा की सेना को माता ने भरपेट भोजन कराया था जबकि भोजन कुछ ही लोगों का था।


करणी माता ने जोधपुर, नरेश जोधा जी के पुत्रा बीका जी को देशनोक के पास एक नई रियासत बसाने का आशीर्वाद दिया तथा खुद अपने हाथों से उसकी नींव रखी जिसका नाम बीकानेर रखा गया। करणी माता के आर्शीवाद से बीकानेर एक समृद्ध रियासत बनकर उभरी। राजपूत नरेश जोधा जी एवं बीका जी जीवन पर्यन्त माता के उपासक रहे। वर्तमान मन्दिर के स्थान पर पहले एक गुफा थी जहां करणी माता ने ज्यादातर समय बिताया। बाद में बीकाजी के वंशज नरेशों में यहां संगमरमर का मन्दिर बनवा दिया। मन्दिर के गर्भगृह में उस गुफा का कुछ हिस्सा अब भी है।


सुआप गांव देशनोक से लगभग 127 किलोमीटर दूर है और यहां पुराना जाल का वृक्ष अब भी है जहां माता का झूला विद्यमान है। मन्दिर का प्रवेश द्वार अत्यंत ही आकर्षक है। प्रवेश द्वार पर फूल, पत्तियों के डिजाईन के अलावा हाथी तराशे गए हैं। प्रवेश द्वार चांदी का बना हुआ है और उस पर महीन कलाकारी की गई है। प्रवेश द्वार के बाहर संगमरमर के बने शेर बैठे हुए दिखाई देते हैं। मन्दिर के बाकी तीन द्वार भी चांदी के बने हुए हैं तथा मन्दिर के गर्भगृह में शुद्ध सोने के अनेकों छत्रा चढ़ाए हुए हंै। करणी माता का सिंहासन भी सोने का बना हुआ है। करणी माता को चूहों एव गायों से विशेष लगाव था, इसलिए इस गांव के लोग अपने पशुओं के क्रय-विक्रम के पश्चात उनका दूध यहां चढ़ाते हैं। इससे इन्हें पशु धन में लाभ मिलता है।


वैसे तो यहां कभी भी आ सकते हैं परंतु नवरात्रों में यहां भारी मेला लगता है तथा दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। यहां अन्य प्रदेशों से भी श्रद्वालु आते हैं। विदेशी सैलानी भी यहां खूब आते हैं और माता के इस अद्भुत मन्दिर एवं उसके चूहों को देखकर दंग रह जाते हैं। निश्चित रूप से मेरी तरह बीकानेर जाने वाले हर श्रद्धालु की यात्रा इस मन्दिर को देखे बिना अधूरी रह जाती है। (अदिति)


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