नई दिल्ली। अयोध्या केस की सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच मामले में रोचक मोड़ आ गया है। 23 दिन की सुनवाई बीतने के बाद अब दोनों तरफ (हिंदू और मुस्लिम) के पक्ष फिर से कोर्ट के बाहर बातचीत से मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं। इसके लिए दो प्रमुख पार्टियों (सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा) ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखा है।
155 दिनों तक चलीं थीं मध्यस्थता की कोशिश
अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले मध्यस्थता से हल निकालने के लिए पैनल बनाया था। 155 दिनों तक कोशिशें भी हुईं, लेकिन कोई हल नहीं निकला। यह सामने आया था कि हिंदू और मुस्लिम पार्टियां इस विवाद का समाधान निकालने में सफल नहीं रहीं। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए जो पैनल बनाया था उसमें तीन लोग शामिल थे। इसमें सुप्रीम कोर्ट के जज एफएम कलीफुल्ला, सीनियर वकील श्रीराम पंचू और श्री श्री रविशंकर का नाम था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई। फिलहाल हिंदू पक्ष की दलीलें पूरी हो चुकी हैं और मुस्लिम पक्ष अपनी दलीलें रख रहा है। पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है, जिसमें जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर भी शामिल हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई इसके अध्यक्ष हैं।
'फिर शुरू हो मध्यस्थता'-दरअसल सुन्नी वक्फ बोर्ड, जो अबतक जमीन के मालिकाना हक की मांग करता रहा है, उसने मध्यस्थता के लिए पत्र लिखा है। वह चाहता है कि बातचीत से मुद्दे को सुलझाने की कोशिश फिर से शुरू की जाए। बता दें कि पहले बातचीत उलेमा ए हिंद (मौलाना अरशद मदनी) के कट्टरपंथी स्टैंड और राम जन्मभूमि न्यास के विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की मांग को लेकर बिगड़ी थी। वक्फ बोर्ड की तरह निर्वाणी अखाड़े ने भी बातचीत की इच्छा जाहिर करते हुए पत्र लिखा है। गौरतलब है कि निर्वाणी अखाड़ा उन तीन प्रमुख रामआनंदी अखाड़ों में से है जो हनुमान गढ़ी मंदिर की देखरेख करता रहा है। निर्वाणी अखाड़े की बात से निर्मोही अखाड़ा भी सहमत है।
उलेमा ए हिंद और राम जन्मभूमि न्यास की वजह से बात बिगड़ने से पहले तक दोनों पक्ष लगभग अंतिम निर्णय पर आ गए थे। इसमें मुस्लिम पक्ष विवादित स्थल पर दावा छोड़ने वाला था (जहां हिंदू पक्ष मंदिर बनाना चाहता है), मुस्लिमों को मस्जिद निर्माण के लिए फंड और दूसरी जगह दी जानी थी। फिर से बातचीत चाहनेवाली दोनों पार्टियों को लगता है कि चीफ जस्टिस के लिए इसकी इजाजत देना मुश्किल काम नहीं है और यह (बातचीत) सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के साथ-साथ भी चल सकती है।
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