तारिक आज़मी
गोरखपुर। ट्रेन का सफ़र आपके लिए सुहाना हो इसके लिए मुह भी चलना चाहिए। इस बात को रेलवे ने शुरू से ही ख़ास ध्यान रखा है इसी वजह से ट्रेन में पैंट्री कार की व्यवस्था होती है। अब चक्कर ये है कि पैंट्री या फिर जिसको आप ट्रेन रसोई कह सकते है का ठेका होता है। आप भली भाति जानते है कि ठेका प्रथा तो सिर्फ मुनाफे के लिए बनी है। तो ठेके केवल उन्ही ट्रेनों के उठ जाते है जिसमे मुनाफा जमकर मिले। बकिया ट्रेनों में खान पान की ज़िम्मेदारी स्टेशन पर उपस्थित वेंडरो की होती है।ऐसे ट्रेने जिनमे पेंट्री नही लगती है, वह अवैध वेंडरो के अवैध कमाई का जरिया बन जाती है। इन अवैध वेंडरो के लिए भले सख्त नियम हो मगर जब संरक्षण ही नियमो को मनवाने वालो का हो तो कहा जा सकता है कि जब सैया भये कोतवाल तो डर काहे का।
आप पूरी खबर के साथ जितनी भी तस्वीरे देख रहे है यह सभी अवैध वेंडरो की है। ये अवैध वेंडर वाराणसी गोरखपुर रेल मार्ग के असली राजा होते है। खुद देखे कि जब ये अवैध वेंडर चलती ट्रेन के वातानुकूलित कोच में जमकर अपनी बिक्री कर रहे है तो फिर साधारण डिब्बो में क्या हाल होता होगा। दस रुपयों की चार में दूध कम पानी ज्यादा अथवा दूध ही नही सफेदा और पानी के तर्ज पर एक दिन में एक दिन में 500 चाय बेच कर 5 हज़ार की बिक्री आप बढ़िया चाय की दूकान पर बढ़िया क्वालिटी की चाय बेच कर भी नहीं कर सकते है। वहा आपको दूध के साथ चीनी चायपत्ती पर भी खर्च करना पड़ जाता है। मगर इनको अधिक खर्च करने की ज़रूरत नही होती है।
बहरहाल, हम आपको आज अवैध वेंडरो की कमाई नहीं जुड़ा रहे है, बल्कि वह बताना चाहते है जिसके लिए रेल विभाग और साथ ही आरपीऍफ़ और जीआरपी आँखे बंद कर मौन स्वीकारोक्ति देते हुवे काम जारी है के तर्ज पर हमारे आपके स्वास्थ के साथ सुरक्षा से खिलवाड़ कर रही है। वाराणसी से गोरखपुर रेल मार्ग पर अवैध वेंडरो की भरमार है। अगर गौर से देखे तो ये अवैध वेंडर एक सिंडिकेट की तरह काम करते है। सिंडिकेट भी कोई छोटा मोटा नही बल्कि काफी बड़ा होता है। हर ट्रेन पर एक गुट का अपना कब्ज़ा होता है। वही गुट उस ट्रेन पर अवैध वेंडरो को माल बेचने के लिए भेजता है। खुला हुआ चना से लेकर चाय तक और गैर मानक के पानी तक की बिक्री ट्रेनों में होती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you, for a message universal express.