गुरुवार, 26 सितंबर 2019

कागभुषडं-लोमस क्रिया कलाप

गतांक से...


प्राण सूत्र क्या है? हमारे यहां भिन्न-भिन्न प्रकार के प्राणों की प्रतिक्रियाएं मानी जाती है। प्राण के आधार पर मानव का जीवन न्योछावर रहता है। प्राण ही है जो प्रत्येक लोक-लोकातरों को एक सूत्र में पिरोने वाला है। एक तारा मंडलों की माला बनी हुई है और एक सूत्र में पिरोई हुई है। वही तो प्राण सूत्र कहलाता है। जैसे मानव का शरीर है। मानव के शरीर में नाना प्रकार के संस्कार विधमान होते हैं। नाना प्रकार की आवाज उसमें दृष्टिपात आती है। जैसे चंद्रमा की यात्रा में रत होने जा रहा है। चंद्रमा का यान और विज्ञान उसके मानवीय मस्तिष्‍को में नृत्य कर रहा है। तभी तो उसको चंद्रमा का ज्ञान होता है वह एक सूत्र है जो प्रत्येक परमाणु को अपने सूत्र में पिरोये है। ब्रह्मांड की कल्पना करने वाले आचार्यों ने यह कहा है कि एक ही सूत्र है जिसमें ब्रह्मांड पिरोहा हुआ है तो मैं ऋषि कागभुषडं जी के विद्यालय में इस प्रकार के प्रश्न होते रहते थे। ब्रह्मचारीजन एक स्थली पर विद्यमान होते तो कई तारा मंडलों की गणना हो रही है। कहीं सूर्य की गणना हो रही है, कहीं आकाशगंगा की गणना हो रही है। कहीं नाना निहारिका को निहार रहे अपने अंतरण में, आभा में प्राण सूत्र की चर्चा होती रहती थी। यह सर्वत्र ब्रह्मांड जो गति कर रहा है। अपने आसन पर प्रत्येक प्राणी प्रत्येक लोक-लोकांतर जो क्रियाशील हो रहा है। उसी प्राण सूत्र की महिमा है। प्राण सूत्र की एक आभा कहलाती है, पूर्व से दक्षिणायन को वृत्ती कर रहा है। वह सर्वत्र एक प्राण की आरती हो रही है। देखो काग भुषडं जी और महर्षि लोमस मुनि महाराज का, दोनों के संवाद, कि मैंने अभी-अभी तुम्हें चर्चा की थी। महाराज जी, दोनों उत्तर प्रश्न करते रहते थे। वह यह कहा करते थे कि संसार एक दूसरे में रमण कर रहा है। एक दूसरे में पिरोया हुआ ही दृष्टिपात आता है। जब दोनों की वार्ता आरंभ रहती है तो दोनों अपने को प्राण सूत्र में पिरोया हुआ स्वीकार करते थे। स्वीकार करते थे इस समय अपने स्थलों पर विद्यमान हो करके उन्होंने यह विचारा कि आज हमे सूर्य मंडल की यात्रा करने के लिए तत्पर होना चाहिए, तो वहां उन किरणों में जब प्राण सूत्र उन्होंने दृष्टिपात किया। प्राण सूत्र ही है जिसके द्वारा सूर्य की किरण पृथ्वी मंडल पर आती है। नाना लोक-लोकातंरो में प्रवेश करती है। धौलोक से जब वह सूर्यप्रकाश लेता है, विद्युत लेता है। उसी विद्युत को लेकर के संसार प्रकाशमान होता है। सूर्य प्रकाशित बना हुआ है परंतु देखो योगी जन उस प्राण सूत्र के सहयोग से सूर्य की किरण के साथ-साथ, सूर्य की यात्रा में तत्पर रहते हैं। मैंने बहुत पुरातन काल में तुम्हें निर्णय देते हुए कहा था कि हमारे यहां नाना प्रकार के वैज्ञानिक हुए हैं। जिन वैज्ञानिकों ने सूर्य से ऊर्जा लेकर के, सूर्य से सक्‍ती को लेकर के, सूर्य की यात्रा वाले यानो का निर्माण किया है। उन यादों में विद्यमान हो करके देखो यात्री बना रहा है। इसलिए आचार्यों ने कहा है कि इसी आभा को लेकर के प्राण सूत्र की चिकित्सा हमारे यहां परंपरागतो से विचित्र मानी गई है। कागभुषडं जी ने लोमस से कहा कि प्राण वायु लेकर के सूर्य की आभा में रमण करता है। सूर्य की किरणों के साथ साथ ऊर्जा ले करके उसको प्राप्त कर लेता है। इसी प्रकार मानव के द्वारा एक प्राण चिकित्सा भी कहलाई जाती है। हमारे यहां प्राण चिकित्सा को लेकर के सूर्य और चंद्र दोनों के ज्ञान विज्ञान को लेकर के उन्होंने प्राण चिकित्सा का निर्माण किया है। कागभुषडं जी की विशेषता इस संसार में उस काल में रही है कि उन्होंने प्राण सूत्र लेकर के प्राण चिकित्सा का निर्माण किया है। हमारे यहां कई प्रकार की चिकित्सा का निदान होता रहा है। एक प्राण चिकित्सा है, एक वायु चिकित्सा है ,एक धौ चिकित्सा कहलाती है। एक वनस्पति विज्ञान वाली चिकित्सा कहलाती है। परंतु यह जो प्राण चिकित्सा है यह सर्वोपरि और सबसे महान चिकित्सा मानी जाती है। जब हमारे यहां वैध राज प्राण सूत्र में रमण करनेवाले प्राण की चिकित्सा में तत्पर हुए, तो उन्होंने अपने को प्राण सूत्र में पिरोना आरंभ किया। कागभुषडं जी ने 12 वर्ष तक इस प्रकार का तप किया। मुनिवर, जो वह प्राण के ऊपर अनुसंधान करते रहे कि प्राण की गति क्या है? कितनी घड़ी में नाभि केंद्र से सूर्य प्रणायाम की गलियों में गति कर रहा है। कितनी घड़ियों में यह चंद्र स्वर विज्ञान में गति कर रहा है। यदि दोनों में देखो उनका दोनों स्वरूप, प्रतिभा एक ही सूत्र में पिरोई हुई है। स्वस्थ प्राणी कहलाया जाता है और इसमें दोनों प्रकार के विज्ञान में किसी में किसी प्रकार की त्रुटियां और स्वार्थ मंद और तेज गति रहती है। तो दोनों में किसी प्रकार के रुग्‍ण की आशंका बनी रहेगी। तो परिणाम यह है कि प्रत्येक मानव को प्राण चिकित्सा के ऊपर अध्ययन करना चाहिए। प्राण चिकित्सा वाले बहुत से वैज्ञानिक हुए हैं। प्राण चिकित्सा वालों ने सूर्य की किरणों के द्वारा अपने को प्रवृत्‍त किया है।


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