गतांक से...
हे ब्रह्मावाह वॉचन्नम है' जिस राजा के राष्ट्र में विचारों में भिन्नता आ जाती है। राष्ट्र और प्रजा दोनों में एक दूसरे का मत भिन्न होता रहता है । राष्ट्र को नारकीय बनाता है। वह समाज नरक है। इसलिए यमआचार्य ने कहा, नचिकेता, हमारे प्यारे आचार्य से संबंधित रहना चाहिए। दोनों का परस्पर विवाद मे परस्पर समन्वय हो। परस्पर एक विचारों में प्रश्न करता उत्तर देने वाला है और वह दर्शनिक दर्शनों से उठा हुआ हो। ज्ञान और विज्ञान में गुथा हुआ हो। इस प्रकार का जो तुम्हारा विद्यालय है यह स्वर्ग कहलाता है ।प्रथम अग्नि का पूजन ग्रह पथ्य नाम की अग्नि कहलाती है। जिस अग्नि का हमें पूजन करना है और द्वितीय अग्नि का नाम हमारे यहां आहावह अन्य नाम की अग्नि कहलाती है। जिस अग्नि में ब्रह्मचारी मानव तपस्या करता है। द्वितीय का नाम। मेरे प्यारे देखो वह ग्रहपथ्य नाम की अग्नि ग्रहपथ्य नाम की अग्नि क्या है? जहां बैठा देखो माता पिता अग्नि में तपाया रहते हैं उस अग्नि का हमें पूजन करना है। आज कोई भी यह चाहता है कि मेरा गृह स्वर्ग बन जाए। मेरे गृह में स्वर्ग का वायुमंडल बन जाए। तो माता-पिता अंतरस्थली पर विराजमान होकर के लक्षणों का विचार-विनिमय करें और प्रातः कालीन अग्निहोत्र। जिसे ग्रहपथ्य नाम की अग्नि कहते हैं, का पूजन करें। अग्नि नाम कई रूपों में रहने वाली है। यह वाणी से उद्गार शब्द गीत होता है। इसका नाम भी अग्नि कहलाता है। जब माता-पिता अपने अपने आचरण से विशुद्ध होते हैं। आचरण के होते हैं उनके गृह स्वर्ग बनते हैं और जिनके आचरण की भिन्नता हो जाती है। वहां ग्रह शांत हो जाती है अपने को स्वर्ग बनाना है। तो हमें चरणों को इतना पवित्र बनाना चाहिए। अंतरात्मा के अनुकूल बनाना चाहिए ।पति-पत्नी माता-पिता बालक बालिका अपने श्रवण करेंगे। अपने में अध्ययन करेंगे उनके आचरण से उनके आचरण बन जाते हैं। उनकी प्रतिक्रिया विचित्र बन जाती है। हे मातेश्वरी, हे मित्रों, आज अपने चरणों को पवित्र बनाओ। तुम्हारे ग्रह में नर्क का वास ने बन जाए। तुम नारकीय बनो। तुम देवपुरी में अपना वास करने वाले। ग्रह को स्वर्ग बनाना है तो स्वर्ग उस काल में बनेगा जब ग्रहपथ्य नाम की अग्नि का प्रकाश होगा। प्रकाश कैसे होता है। प्रातः कालीन वेद मंत्रों का अध्ययन ध्वनि होती रहे। गृह प्रातः कालीन ध्वनित होता रहे। मुझे स्मरण आता रहता है नाना ऋषि-मुनियों का जीवन वह माता और पिता अपने शिकानकेतू ऋषि हुए हैं उद्दालक गोत्र में। शिकनकेतु ऋषि महाराज और उनकी पत्नी प्रातः कालीन याग करते तो याग क्रम में मानव दर्शनों का अध्ययन करते। विज्ञान की तरंगों में उड़ान उड़ते रहते। बाल बालिकाएं माता-पिता के आश्रमों का अध्ययन करते जब अध्ययन करते तो स्वर्ग बन गया। ग्रह में जीवन बन गया और मैं आज तुम्हें ग्रहपथ्य नाम की अग्नि के पूजन के संबंध में कुछ विवेचना करना चाहता हूं । महाराज दिलीप जब अध्ययन करते थे और उनकी पत्नी जब ग्रहपथ्य नाम की अग्नि का पूजन करती तो राष्ट्र पवित्र बंधन बन जाता। प्रातः कालीन अपनी क्रियाओं से निवृत्त होकर के वेदों का अध्ययन करना, ज्ञान की चर्चा करना। प्रातः कालीन अग्निहोत्र करना प्रकाश और सुगंध में अपने जीवन को ले जाना और दर्शनों का अध्ययन करना हमारा मानवीय कर्तव्य है। जब तप कर देता है तो दूसरा प्राणी भी तपायमान हो जाता है। बालक बालिकाओं में परिणित हो जाते हैं। अथवा निश्चित हो जाते हैं। विचार-विनिमय क्या है। देखो, विशाखा वायुमंडल केवल पानी से प्रारंभ होता है। इसलिए वाणी में नम्रता के उद्गार होने चाहिए जिससे बालक कहे कि मेरे माता-पिता बड़े प्रसन्न है, वह कितने उदार हैं। कितने गीत गाने वाले हैं। मेरे पुत्रों, मदालसा जब वेदों का गाना गाती थी। उसके बालक बालिका प्रातः कालीन वेद गाती रहती तो ब्रह्मचारी बालक उनके समीप विद्वान है। माता के गानों को सुनकर के ग्रह को पवित्र बना रही है। गृह में वायुमंडल पवित्र बन रहा है जगत और मन दोनों ऊंचे बन रहे हैं। तो स्वर्ग की कल्पना करने वाला आचार्य कहता है वेद मंत्र कहता है कि हमारे यहां स्वर्ग होना चाहिए। मुझे, मनु के यहां महाराज अक्षु का जीवन उनके साहित्य में प्रवेश करते हैं, प्रातः कालीन वेद का अध्ययन करते हैं। समुद्रों के तटों पर विद्यमान हो करके उपासना करते हैं। राष्ट्र में प्रजा उनके अनुकूल बरतने लगे, इस प्रकार राष्ट्र बन गया, मानव का आचरण मानव की प्रतिभा ऊंची नहीं बनेगी। मानव कल्पना करें कि मैं स्वर्ग में चला जाऊं यह असंभव है। बालक वर्ग कहलाता है। परमपिता परमात्मा है,माता की प्रतिभा का निर्माण हो रहा है।
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