ब्रहम ऋषि कृष्णदत्त के द्वारा
गतांक से....
मेरी प्यारी माता सदैव पुत्रों के लिए यह चाहती है कि मेरा पुत्र महान बन जाए। मेरे पुत्र में एक महानता आ जाए, मेरा पुत्र आध्यात्मिक विज्ञान और भौतिक विज्ञान दोनों को अपने में समेटने वाला हो। परंतु पिता भी यही चाहता है। यह मेरी इच्छा पूर्ण करना चाहता है,तो जाओ तुम मृत्यु को चले जाओ। मृत्यु के गर्भ में यह क्या है, तुम अज्ञान को त्याग और प्रकाश में चले जाओ। प्रभु से कामना करते हैं, मेरा पुत्र मुझे प्रकाश में प्रकाश के लिए प्रेरणा दे रहा है और मोक्ष में जाना चाहता है। मेरा वही पित्र मेरे जीवन का कल्याण करने वाला है। आचार्यकुल में जब ब्रह्मचारी अध्ययन करता है तो आचार्य की यह कामना होती है कि मेरा ब्रह्मचारी महान होना चाहिए। मेरे ब्रह्मचारी में चक्षुओं में अनुसंधान, में अनुसंधान स्रोतों में अनुसंधान, अनुसंधान करता हुआ कहता है। ब्रह्मचारी इंद्रियों के विषयों को मुझे प्रदान कर। जिससे मैं पवित्र और महान बन जाऊं। मैं महान बनूंगा ब्रह्मचारी महान बनेगा। नचिकेता, यह क्या है मेरी इच्छा यह है कि मेरे पित्रो की योजनाएं उनकी आशा अभिलाषा पूर्ण हो। उन्होंने कहा प्रभु और बताएं, देवता है उनकी भी मेरे हृदय में यह कामना है कि वे भी भासित रहे। जैसे सूर्य हमारा पित्र है, वह प्रकाश देता है। चंद्रमा हमारा पित्र है ,वह अमृत देता है। अग्नि हमारा पित्र है वह ऊर्जा देता है। उष्ण बनाता है बनाता रहता है। यह शीतल बनाता है वायु देता है। अंतरिक्ष हमें अवकाश देता है। अपने अपने पित्र है। यह चरित्र है। परंतु यह पित्र कैसे हैं जो हमें देते ही देते हैं।अमृत देने वाला चंद्रमा है कहां-कहां से बटोर करके हमें प्रदान करता है। मेरे प्रभु, तू कितना विज्ञानमयी है। बालक नचिकेता ब्रह्मचारी कहता है, आचार्य,हे प्रभु,मेरे जो पित्र जन है वह चंद्रमा अमृत लाता है, समुंदरों में जाता है। समुंदरों से परमाणुओं को लेता है।अंतरिक्ष में पहुंचाता है अपनी छटा कांति के द्वारा वह प्रदान करता है। जो भाषित रहता है। सूर्य,वह सूर्य प्रकाश को देने वाला है। वह प्रकाश देता है। देखो इसी प्रकार यह आपको ज्योति देता है। यह अमृत मई प्राण में समाहित रहती है। 'प्राणोंऽवृहे वाचन्नम् ब्रह्मा:' यह प्राणों से युक्त होकर के हमें शीतल बनाता है। जीवन प्रदान कर देता है। इसी प्रकार अग्नि है। अग्नि पोषण बनाने लगती है यह तो वही बनाती है जो अपने वायुमंडल को पवित्र,अपने आप हमें नियुक्त बनाती रहती है। इसी प्रकार वायु प्रण देता है और अंतरिक्ष अवकाश देता है तो यह भगवान मेरे चरित्र में पितरों के संबंध में तो इतना नहीं जानता हूं। परंतु मेरी इच्छा यह है कि पितरों के लिए आया हूं। प्रभु, मेरे पितरों की इच्छा पूर्ण हो। मेरे प्यारे बालक नचिकेता के वाक्यों को पान करके उसके मुखारविंद को एक ही नेत्रों से वे दृष्टिपात करते रहे। उन्होंने सोचा कि है ब्रह्मचारी तो बड़ा विचित्र है। जो अपने सर्वत्र पितरों की इच्छा को पूर्ण करना चाहता है और कहा, ब्रह्मचारी तथास्तु। प्रथम वचन स्वीकार कर दिया, द्वितीय वचन रह गया। उन्होंने कहा मैं यह जानना चाहता हूं कि स्वर्ग किसे कहते हैं। मैं स्वर्ग के संबंध में अपनी विवेचना चाहता हूं। मैं जानना चाहता हूं कि स्वर्ग क्या है? तो बालक नचिकेता ने कहा हे ब्रह्मचारि,अग्नि की पूजा करने का नाम है स्वर्ग कहलाता है। अब नचिकेता को आचार्य ने कहा है नचिकेता मैं उच्चारण करता जाऊंगा तुम सुनते जाओ और जहां तुम्हारी शंका हो वहां निवारण करते चले जाओ। उन्होंने कहा स्वर्ग कहते हैं अग्नि की पूजा को अब अग्नि हमारे यहां कितने प्रकार की है? जिसका हम पूजन करें एक अग्नि वह जिस अग्नि में मेरी प्यारी माता भोजन को तपा रही है। यह अग्निवृत है। अग्नि का नाम ग्रहपथ्य हैं, जिसके नाम की अग्नि में ब्रह्मचारी अपने विद्यालय में तपा करता है। विद्यालय में ब्रह्मचारी तप रहा है। अपना क्रियाकलाप बना दिया है। उसने स्वर्ग में जाने के लिए प्रातः कालीन अपने आसन को त्याग देता है। जब तारा मंडलों की आंतरिक स्रोत रहती है। आसन को त्याग वह अपनी क्रियाओं से निवृत्त होता है। क्रियाओं से निवृत्त होकर के प्रातः कालीन यज्ञ की अग्नि में आहुतियों के द्वारा वह देवताओं का पूजन करता है। जिसे ग्रहपथ्य नाम की अग्नि कहते हैं। उस अग्नि का पूजन करता है वह अग्नि कौन सी है जो अग्नि ब्रह्मचर्य के रूप में मानव के शरीर में प्रवाहित रहती है। मैं ब्रह्मचारी उस अग्नि को स्वीकार करके उसका पूजन कर रहा हूँ ।
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