व्यक्ति तनाव से निपटने के लिए आमतौर पर कार्य-अभिविन्यस्त और प्रतिरक्षा-अभिविन्यस्त या मनोभाव केंद्रित प्रक्रियाओं का पालन करता है।कार्य अभिविन्यस्त प्रक्रिया का उद्देश्य किसी विशेष तनाव कारक द्वारा अधिरोपित की गई समायोजी मांग का यथार्थवादिता से समाधान ढूंढना है। ये चेतन और तर्कसंगत स्तर पर तनावपूर्ण स्थितियों के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन पर आधारित होती हैं। तनाव से निपटने के इन तरीकों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे प्रारम्भ, प्रत्याहार और समझौता।
1. प्रारम्भ की स्थिति में कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से स्थिति के सम्मुख आता है। वह साधानों के सम्भाव्य व व्यवहार्यता का मूल्यांकन करता है। तनावपूर्ण स्थिति का सामना करने के लिए वह सबसे ज्यादा आशाजनक कार्यवाही का चुनाव करता है और व्यवहार्यता बनाए रखता है, वहीं यदि ये क्रिया उपयोगी न लगे तो वह इस पद्धति को बदल लेता है। परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार व्यक्ति नई जानकारियां जुटा कर, सामर्थ्य का विकास करके, वर्तमान योग्यताओं का सुधार करके, नए संसाधानों का प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए प्रारम्भ की प्रतिक्रिया तब प्रकट होती है जब विद्यार्थी मुश्किल परीक्षा से पहले दोहराने की योजना बनाता है।
2. प्रत्याहार या अलगाव की स्थिति में यदि किसी व्यक्ति ने भूतकाल में अत्याधिक कठिन परिस्थिति का सामना किया हो एवं उसने उसका सामना करने के लिए अनुचित कूटनीति अपनाई हो, तब वह प्रथम अवस्था में अपनी असफलता को स्वीकार कर लेता है। वह शारीरिक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर उस तनावपूर्ण स्थिति को छोड़ देता है। वह अपने प्रयत्नों को पुनर्निर्देशित करके उचित लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाता है। प्रत्याहार के उदाहरण स्वरूप जब किसी दोस्त के बार-बार नकारने पर आप उससे सम्बन्ध-विच्छेद करके दूसरे लोगों से मित्रता करने के प्रयत्न करते हैं।
3. समझौते की स्थिति में, यदि व्यक्ति को लगता है कि मूलभूत लक्ष्य की प्रप्ति नहीं हो सकती, तो ऐसे में वह विकल्प के तौर पर दूसरे लक्ष्य को स्वीकार कर लेता है। इस तरह की प्रतिक्रिया तब प्रकट होती है जब व्यक्ति अपनी योग्यताओं का पुनर्मूल्यांकन करता है और अपनी अभिलाषाओं के स्तर को उसी के अनुसार कम कर लेता है। ये तनावपूर्ण स्थितियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपनाए गए समझौतापरक व्यवहार को दर्शाता है। उदाहरण स्वरूप एक विद्यार्थी किसी विशेष विषय में अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर पाता परंतु वह अन्य विषयों में अच्छे अंकों को प्राप्त करता है और वह इस सत्य को स्वीकारने की कोशिश करता है।
मनोभाव केंद्रित या आत्मरक्षा-अभिविन्यस्त तरीकों से तनाव का सामना करना लाभकारी सिद्ध नहीं होता, क्योंकि व्यक्ति इसके द्वारा किसी समाधान पर नहीं पहुंचता, बस स्वयं को आश्वासन देने के तरीके ढूंढता है। आत्मरक्षक पद्धतियों का उदाहरण बुद्विसंगत व्याख्या करना है जैसे यह तर्क देना कि सभी विद्यार्थी इसीलिए असफल रहे, क्योंकि परीक्षा-पत्र काफी कठिन था। इसका अन्य उदाहरण है विस्थापन करना जैसे सख्त अध्यापक पर आ रहे क्रोध को अपने छोटे भाई को डांट या मार कर उतारना। यहां आपने क्रोध का विस्थापन किया है।यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि तनाव से प्रभावशाली तरीके से निपटने के लिए व्यक्ति को स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना चाहिए। सकरात्मक सोच, मनोभावों और क्रियाओं द्वारा सिर्फ तनाव से ही बेहतर तरीके से नहीं निपटा जा सकता है, वरन् इसके द्वारा हम जीवन में अत्यधिक प्रसन्न व हल्का महसूस करते हैं, एवं अधिक योग्य बनते हैं।
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