शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

तनाव के कारण और बचाव

जब कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में रुकावटों का सामना करता है तो वह तनावग्रस्त हो जाता है। यह अक्सर व्यक्ति में द्वन्द्व और निराशा की भावना पैदा करता है। प्रबल निराशा मिलने के कारण यह द्वन्द्व और भी तनावपूर्ण हो जाता है। आमतौर पर व्यक्ति द्वन्द्व में तब पड़ जाता है जब वह परस्पर विरोधी स्थिति का सामना करता है। उद्देश्य और परिस्थिति के स्वरूप पर निर्भर व्यक्ति जीवन में तीन प्रकार के द्वन्द्वों का सामना करता है।


(क) प्रस्ताव-प्रस्ताव द्वन्द्व
(ख) परिहार-परिहार द्वन्द्व
(ग) प्रस्ताव-परिहार द्वन्द्व
प्रस्ताव-प्रस्ताव द्वन्द्व : इस तरह का द्वन्द्व तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति को दो या अधिक वांछित उद्देश्यों में से चुनाव करना पड़ता है। इस तरह के द्वन्द्व में दोनों ही लक्ष्यों की प्राप्ति की चाहत होती है। उदाहरण के लिए, एक ही दिन में दो विवाहों के निमंत्रण में से किसी एक का चुनाव करना।


परिहार-प्रस्ताव द्वन्द्व : इस तरह का द्वन्द्व तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति को दो या अधिक अवांछित लक्ष्यों में चुनाव करना पड़ता है। इस तरह के द्वन्द्व को अक्सर 'एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई' वाली स्थिति कहा जाता है। जैसे कि कम शैक्षिक योग्यता वाले युवा को या तो बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा या फिर बहुत ही कम आय की अनचाही नौकरी को स्वीकार करना पड़ेगा। इस तरह का द्वन्द्व बहुत ही गम्भीर सामंजस्य की समस्याएं उत्पन्न करता है, क्योंकि द्वन्द्व का समाधान करने पर भी चैन की बजाय निराशा ही उत्पन्न होगी।


प्रस्ताव-परिहार द्वन्द्व : इस तरह के द्वन्द्व में किसी व्यक्ति में समान उद्देश्य का चुनाव करने एवं उसे नकारने दोनों के प्रति प्रबल रूझान होता है। जैसे कि एक युवा सामाजिक और सुरक्षा कारणों से विवाह करना चाहता है लेकिन उसी स्थिति में वह विवाह की जिम्मेदारियों और निजी स्वतंत्रता के खत्म हो जाने का भय भी रखता है। ऐसे द्वन्द्व का समाधान लक्ष्य के कुछ नकरात्मक और सकरात्मक पहलुओं को स्वीकृत करने से ही सम्भव है।


बहुसंख्यक विकल्पों के होने के कारण कभी-कभी प्रस्ताव-परिहार द्वन्द्व को "मिश्रित-अनुग्रह" द्वन्द्वों के संदर्भ में भी देखा जाता है।


कुंठा : (देखें, कुण्ठा) कुंठा एक प्रयोगात्मक अवस्था है जो कि कुछ कारणों के परिणामस्वरूप होती है जैसे


(क) बाहरी प्रभावों के कारण आवश्यकताओं और अभिप्रेरणाओं में अवरोध पैदा होना जो कि लक्ष्य में बाधाएं उत्पन्न करता है और आवश्यकताओं की पूर्ति होने से रोकता है।
(ख) वांछित लक्ष्यों की अनुपस्थिति द्वारा।
अवरोध व बाधाएं भौतिक एवं सामाजिक दोनों प्रकार की हो सकती हैं और ये व्यक्ति में निराशा या कुंठा का भाव उत्पन्न करती हैं। इस में दुर्घटना, अस्वस्थ अंतरवैयक्तिक संबंध, प्रिय की मृत्यु हो जाना। व्यक्तिगत् अभिलक्षण जैसे शारीरिक विकलांगता, अपूर्ण योग्यता और आत्मानुशासन का अभाव भी कुंठा की जड़ है। कुछ साधारण कुंठाएं हैं जो अक्सर कुछ निश्चित मुश्किलों का कारण बन जाती है। इनमें वांछित लक्ष्य की प्राप्ति में विलम्ब, संसाधानों का अभाव, असफलता, हानि, अकेलापन और निरर्थकता सम्मिलित है।


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