रविवार, 4 अगस्त 2019

सिलाद पुत्र नंदी का अवतरण

सनत कुमार जी ने पूछा,आप महादेव के अंश से उत्पन्न होकर शिव को कैसे प्राप्त हुए थे?वह सारा वृत्तांत मै सुनना चाहता हूं उसे वर्णन करने की कृपा करें! नंदीश्वर बोले ,सर्वज्ञ सनत कुमार जी मैं जिस प्रकार महादेव के अंश से जन्म लेकर शिव को प्राप्त हुआ, उस प्रसंग का वर्णन करता हूं तुम सावधानीपूर्वक श्रवण करो! शिलाद नामक एक धर्मात्मा ने पितरों के आदेश से उन्होंने आयोनिज पुत्र की प्राप्ति के लिए तप करके देवेश्वर इंद्र को प्रसन्न किया!परंतु देवराज इंद्र ने ऐसा पुत्र प्रदान करने में अपने आप को असमर्थ बता कर सर्वेश्वर महा शक्तिसंपन्न महादेव की आराधना करने का उपदेश दिया !तब सिलाद भगवान महादेव को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे, उनके तप से प्रसन्न होकर महादेव पधारें और महासमाधि मग्‍न को थपथपा कर जगाया,तब शिलाद ने शिव का स्तवन किया और भगवान शिव के उन्हें वर देने को प्रस्तुत होने पर उनसे कहा प्रभु मैं आपके ही समान अग्नि पुत्र चाहता हूं तब शिव जी प्रसन्न होकर मुनी से बोले, शिव जी ने कहा, तपोधन पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने मुनियों ने तथा बड़े-बड़े देवताओं ने मेरे अवतार धारण करने के लिए तपस्या द्वारा मेरी आराधना की थी! इसलिए सारे जगत का पिता हूं फिर भी तुम मेरे पिता और मैं तुम्हारा पुत्र होऊगां, मेरा नाम नदीं हुआ! नंदीश्वर जी कहते हैं ,अपने चरणों में बात कर के सामने खड़े हुए आदमी की कृपा दृष्टि से देखा और उन्हें ऐसा आदेश दे तुरंत ही उमा सहित वहीं अंतर्धान हो गए! महादेव जी के चले जाने के पश्चात महामुनि सिलाद ने अपने आश्रम में आकर वह सारा वृत्तांत कह सुनाया! कुछ समय बीत जाने के बाद जब यज्ञ जोतन में श्रेष्ठ मेरे पिताजी तप करने के लिए क्षेत्र को जोत रहे थे !उसी समय मैं शंभू की आज्ञा से यज्ञ के पूर्व उनके शरीर में उत्पन्न हो गए! मेरे शरीर की अग्‍नि वाह युगांत कालीन अग्नि के समान थी! तब सारी दिशाओं में प्रसन्नता हुई ! उधर सिलाद ने भी जब मुझ बालक को प्रलय कालीन सूर्य और अग्नि के सदृश प्रभावशाली, त्रिनेत्र, चतुर्भुज ,प्रकाशमान जटामुकुटधारी, त्रिशूल आदि आयुधो से युक्त सर्वथा रूद्र रूप में देखा! तभी महान आनंद में निमग्न हो गये और मुझ को नमस्कार करते हुए कहने लगे, शिलाद बोले सुरेश्वर, क्योंकि तुमने नंदी नाम से प्रकट होकर मुझे आनंदित किया है! इसलिए मैं तुम आनंद में जगदीश्वर को नमस्कार करता हूं ! नंदीश्वर जी कहते हैं, मुनि पद्म जैसे निर्धन को निधि प्राप्त हो जाने से प्रसन्नता होती है! उसी प्रकार मेरी प्राप्ति से हर्षित होकर पिताजी ने महेश्वर की भलीभांति वंदना की और फिर मुझे लेकर वे शीघ्र ही अपनी पाठशाला को चले गए! महामुनि जब मैं सिलाद की कुटिया में पहुंच गया! तब मैंने अपने रूप का परित्याग करके मनुष्य रूप धारण कर लिया! तदनंतर साल का नंदन पुत्र वत्सल सिलाद ने मेरे जात कर्म आदि सभी संस्कार संपन्न किए !फिर 5 वर्ष में पिताजी ने मुझे सांगोपांग संपूर्ण वेदों का तथा अन्यान्य शास्त्रों का भी अध्ययन कराया! 7 वर्ष पूरा होने पर शिव जी की आज्ञा से मित्र और वरुण नाम के मुनि मुझे देखने के लिए आश्रम पधारें आज तक संपूर्ण शास्त्रों के अर्थ तथा थोड़ी है! परंतु1वर्ष से अधिक नहीं दिखती!


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