गुरुवार, 8 अगस्त 2019

प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ का वर्णन

कपिला नगरी के कालेश्वर रामेश्वर आदि की महिमा बताते हुए सूत जी ने समुद्र के तट पर स्थित गोकर्ण क्षेत्र के शिवलिंग की महिमा का वर्णन किया । फिर महाबल नामक शिवलिंग का अद्भुत महत्व सुनाकर अन्य बहुत से शिव लिंगों की विचित्र महत्त्व कथा का वर्णन करने के पश्चात ऋषियों के पूछने पर वह ज्योतिर्लिंगों का वर्णन करने लगे। सूत जी बोले, ब्राह्मणों मैंने सतगुरु से जो कुछ सुना है वह ज्योतिर्लिंगों का महत्व तथा अनेक प्राकट्य का प्रसंग अपनी बुद्धि के अनुसार संक्षेप से ही सुनाऊंगा। तुम सब लोग सुनो, मुनि, ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहले सोमनाथ का नाम आता है। अतः पहले उन्हीं के महत्व को सावधान होकर सुनो। मुनीश्वर! महामना प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्वनी आदि 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया। चंद्रमा को स्वामी के रूप में पाकर वे दक्ष कन्याएं विशेष शोभा पाने वाली तथा चंद्रमा भी उन्हें पत्नी के रूप में पाकर निरंतर सुशोभित होने लगे। उन पत्नियों में जो भी रोहनी नाम की पत्नी थी। एकमात्र वही चंद्रमा को जितनी प्रिय थी, उतनी दूसरी कोई पत्नी कदापि प्रिय नहीं थी। इससे दूसरी स्त्रियों को बड़ा दुख हुआ। वह सब अपने पिता की शरण में गई। वहां जाकर उन्होंने जो भी दुख था, उसे पिता को निवेदन किया। जो वह सब सुनकर दक्ष भी दुखी हो गए और चंद्रमा के पास आकर शांतिपूर्वक बोले। दक्ष ने कहा, कलानिधि तुम निर्मल कुल में उत्पन्न हुए हो तुम्हारे आसरे में रहने वाली जितनी स्त्रियां हैं। उन सब के प्रति तुम्हारे मन में न्यूनअधिक भाव क्यों है? तुम किसी को भी अधिक और किसी को भी कम प्यार क्यों करते हो? अब तक जो किया सो किया। अब आगे फिर कभी ऐसे विषमता पूर्ण बर्ताव मत करना। क्योंकि उसे नर्क देने वाला बताया गया है। सूत जी कहते हैं, ऋषिवरो,अपने दामाद चंद्रमा से स्वयं ऐसी प्रार्थना करके प्रजापति दक्ष चले आए। उन्हें पूर्ण निश्चय हो गया था कि अब ऐसा नहीं होगा। पर चंद्रमा ने प्रबल भावी विवश होकर उनकी बात नहीं मानी। वे रोहिणी में इतने आसक्त हो गए थे कि दूसरी किसी पत्नी का कभी आदर नहीं करते थे। इस बात को सुनकर दुखी हो फिर स्वयं चंद्रमा को उत्तम नीति से समझाने ,न्याय उचित बर्ताव के लिए प्रार्थना की। दक्ष बोले, चंद्रमा सुनो, एक बार तुम से प्रार्थना कर चुका हूं फिर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी इसलिए आज साप देता हूं कि तुम्हें अक्षय का रोग हो जाए ।सूत जी कहते हैं, दक्ष के इतना कहते ही क्षण भर में चंद्रमा अक्षय रोग से ग्रस्त हो गए। उनके क्षय होते ही उस समय सब ओर महान हाहाकार मच गया। सब देवता और ऋषि कहने लगे कि हाय अब क्या करना चाहिए। चंद्रमा कैसे ठीक हो। तब इंद्र आदि देवता तथा वशिष्ठ आदि ऋषि ब्रह्मा की शरण में गए उनकी बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा, देवताओं जो हुआ सो हुआ। अब वह निश्चय ही ठीक नहीं हो सकता। अतः उसके निवारण के लिए मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं। आदर पूर्वक सुनो, चंद्रमा देवताओं के साथ प्रभास नामक क्षेत्र में जाए और वहां मृत्युंजय मंत्र का विधि पूर्वक अनुष्ठान करते हुए भगवान शिव की आराधना करें। अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके वहां चंद्र देव नित्य तपस्या करें। इससे प्रसन्न होकर उन्हें रोग रहित कर देंगे। तब देवताओं तथा ऋषियों के कहने से ब्रह्माजी की आज्ञा के अनुसार चंद्रमा ने वहां 6 महीने तक निरंतर तपस्या की। मृत्युंजय मंत्र से भगवान का पूजन किया। 10 करोड मंत्र का जप और महामृत्युंजय मंत्र का ध्यान करते हुए चंद्रमा वहां स्थिर चित्त होकर लगातार खड़े रहे। उन्हें तपस्या करते देख भक्तवत्सल भगवान शंकर प्रसन्न हो उनके सामने प्रकट हो गए और चंद्रमा से बोले चंद्रदेव तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारे मन में जो अभीष्ट है वह वर मांगो, मैं प्रसन्न हूं, तुम्हें संपूर्ण उत्तम वर प्रदान करूंगा। चंद्रमा बोले देवेश्वर यदि आप प्रसन्न है तो मेरे लिए क्या असाध्य हो सकता है। शंकर आप मेरे शरीर के इस क्षय का निवारण कीजिए। शिव जी ने कहा, चंद्रदेव एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला छीन हो और दूसरे पक्ष में फिर वह निरंतर बढ़ती रहे। तदनंतर चंद्रमा ने भक्ति भाव से भगवान शंकर की स्तुति की। देवताओं पर प्रसन्न हो उस क्षेत्र के महत्व को बढ़ाने तथा चंद्रमा के यश का विस्तार करने के लिए भगवान शंकर उन्हीं के नाम पर वहां सोमेश्वर कहलाए और सोमनाथ के नाम से तीनों लोकों में विख्यात हुए। सोमनाथ का पूजन करने से उपासक के क्षय तथा कोढ़ आदि रोगों का नाश हो जाता है। वहीं संपूर्ण देवताओं ने सोंम कुंड की भी स्थापना की। जिसमें शिव और ब्रह्मा का सदा निवास माना जाता है।


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