शनिवार, 10 अगस्त 2019

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव

ओंकारेश्वर प्रमेश्वर लिंग के प्रादुर्भाव
ऋषियों ने कहा, महाभाग सूतजी,आपने अपने भक्तों की रक्षा करने वाले महाकाल नामक शिवलिंग की बड़ी अद्भुत कथा सुनाइ। अब कृपा करके चौथे ज्योतिर्लिंग का परिचय दीजिए ।ओमकार तीर्थ में सर्व पापहारी परमेश्वर का जो ज्योतिर्लिंग है। उसके अभीभाव की कथा सुनाइए। भारत में परमेश्‍वर ज्योतिर्लिंग जिस प्रकार प्रकट हुआ वह बताता हूं ।प्रेम से सुनो ,एक समय की बात है भगवान नारद मुनि विध्‍यं नाम शिव के समीप जा बड़ी भक्ति के साथ उनकी सेवा करने लगे कुछ काल के बाद में मुनि शैलेश वहां से गिरिराज विध्‍ंय पर आए और विंध्य ने वहां बड़े आदर के साथ उनका पूजन किया। मेरे यहां सब कुछ है कभी किसी बात की कमी नहीं होती है। इस भाव को मन में लेकर विंध्याचल नारद जी के सामने खड़े हो गए। उसकी वह अभिमान भरी बात सुनकर अहंकार नाशक नारद मुनि लंबी सांस खींचकर चुपचाप खड़े रह गए ।यह देख विंध्या पर्वत ने पूछा आपने मेरे यहां कौन सी कमी देखी है? आपके इस तरह लंबी सांस खींचने का क्या कारण है? नारद जी ने कहा, भैया तुम्हारे यहां सब कुछ है फिर भी मेरु पर्वत तुमसे बहुत ऊंचा है। उसके विभाग देवताओं के लोको में भी पहुंचा हुआ है। किंतु तुम्हारा भाग वहां कभी नहीं पहुंच सका। ऐसा कहा, वे जिस तरह आए थे उसी तरह चल दिए। परंतु मेरे जीवन को धिक्कार है, ऐसा सोचता हुआ मन ही मन। अच्छा अब मैं भगवान की अराधना करता हूँ ।भगवान शंकर की शरण में गया। वहां साक्षात ओंकार की स्थिति है ।वहां पर उसने शिव की मूर्ति बनाई और 6 माह तक निरंतर संधू की आराधना करके शिव के ध्यान में तत्पर हो गए ।अपनी तपस्या के स्थान में हिला तक नहीं विंध्याचल पर्वत। विंध्याचल को सदृस योगी दुर्लभ दिए है ।मनोवांछित वर मांगो मैं भक्तों को देने वाला हूं। आप सदा ही भक्तों से प्रशन्‍न है,यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे वर प्रदान कीजिए। जो आप अपने कार्य को सिद्ध करने वाले हैं, भगवान शंभू ने उत्तर दिया और कहा पर्वतराज तुम जैसा चाहो वैसा करो। इसी समय तथा निर्मल चित्‍त वाले ऋषि वहां आए और शंकर जी की पूजा करके बोले आप यहां निवास करे। और लोगों को सुख देने के लिए उन्होंने वैसा ही किया। वहां जो एक ही लिंग था वह दो भागो में विभक्त हो गया। वह ओमकार नाम से विख्यात हुए और पार्थिव मूर्ति में जो शिव ज्योति प्रतिष्ठित हुई उसकी परमेश्वर को ही अमलेश्वर भी कहते है। इस प्रकार ओंकार और परमेश्वर यह दोनों शिवलिंग भक्तों को फल प्रदान करने वाले हैं। उस समय देवताओं और ऋषि यों ने उन दोनों की पूजा की और भगवान वृषध्‍वज को संतुष्ट कर के अनेक वर प्राप्त कीए। तत्पश्चात देवता अपने-अपने स्थान को चले गए और विंध्याचल भी अधिक प्रसन्नता का अनुभव करने लगे। उसने अपने अभीष्ट कार्य को सिद्ध किया और मानसिक पीडा को त्याग दिया। जो मनुष्य इस प्रकार भगवान शंकर का पूजन करता है वह माता के गर्भ में फिर नहीं आता और अपने अभीष्ट फल को प्राप्त कर लेता है। इसमें किसी प्रकार का अंदेशा नहीं है। सूतजी कहते हैं। ओमकार में ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ और उसकी आराधना से जो फल मिलता है। वह सब यहां तुम्हें बता दिया है। इसके बाद में उत्तम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का वर्णन करूंगा।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you, for a message universal express.

यूक्रेन द्वारा कजान पर ड्रोन के माध्यम से हमलें

यूक्रेन द्वारा कजान पर ड्रोन के माध्यम से हमलें  सुनील श्रीवास्तव  मॉस्को। यूक्रेन द्वारा अमेरिका के 9 /11 जैसा अटैक करते हुए कजान पर ड्रोन ...