शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

बाढ़ की यात्रा पर चले (समसामयिक)

बाढ की यात्रा पर चले और नेताजी हवाई 



जब बाढ़ आती है, तो फिर मजबूरन हमारे नेता को हवाई सर्वेक्षण करना पड़ता है। जब कोई नेता ऐसा करता है, तो मुझे बहुत बेबस जान पड़ता है।


आप कहेंगे कि वाह साहब वाह! आपको डूबी हुई जनता नहीं नेता बेबस नजर आ रहा। फिर मैं आप से कहूंगा कि जी हाँ, मुझे नेता बेबस नजर आ रहा है। और जनता कब नहीं डूबी थी, जो आज कुछ नया है! संसद में बढ़ते दागी प्रतिनिधियों के बारे में आपका क्या खयाल है! सूखा पड़ा तो सूखी थी, बाढ़ आई तो डूबी है। अब आप से इल्तजा है कि अब आप जरा हवाई जहाज में बैठे उस नेता के बारे में सोचें। जितनी देर उसे बैठना है, मुंह लटकाए रखना है। किसी नेता-नगरी के लिए मुद्दा लटकाना आसान है, ठीक उसी तरह जैसे किसी अधिकारी के लिए फाइल लटकाना, मगर मुंह लटकाने में मेहनत लगती है। अनुभव, कौशल सब लगता है। आप जरा वह दृश्य सोचें, जब फोटो खींचने वाला फोटो खींचने से पहले आप से मुस्कराने के लिए कहता है, सोचिए सांस रोके, पेट अंदर खींचे 10-15 सेकेंड में ही क्या हालत हो जाती है! मैं अपनी कहता हूं! बचपन में ऐसी परिस्थिति में कई बार तो मैं रोने लगा हूं और कुछेक बार हंसने। पिटाई हुई अलग से। अब फिर जरा उस नेता पर आते हैं, जो हवा में उड़ रहा! अगर वह अकेले होता या ऐसा करते वक्त उसकी फोटो-वीडियो न बनती तो उसके लिए आसान होता। वह हंस-मुस्कुरा सकता था। थकावट होने के फलस्वरूप अंगड़ाई ले सकता था। एक जैसा दृश्य निहारते-निहारते जंभाई ले सकता था। अरे कुछ नहीं अपनी बोरियत दूर करने हेतु अपनी उंगलियां चटका सकता था। जरा सोचिए! कितने सारे विकल्प मौजूद थे, मगर वह कुछ नहीं कर सकता सिवाय मुंह लटकाने के, जो ठीक इस वक्त वह बखूबी कर रहा। वह जानता है कि बगल में उसके फोटोग्राफर बैठा है, जो उसकी फोटो उतार रहा है, सो उसे अपना मुंह लटका कर रखना है। कहीं जरा सी भी कुछ ऊंच-नीच हुई तो अपोजिशन को बैठे बिठाए एक मुद्दा मिल जाएगा! जोकि उसकी पोजिशन के लिए बिल्कुल भी ठीक न होगा! ऐसे ही मुझे याद पड़ता है कि एक श्रद्धाजंलि समारोह में कुछ नेता हंस पड़े थे, फिर अगले दिन जनता ने उनको बहुत श्रद्धा से याद किया। जिसने जोक सुनाया था, वह नहीं हंसा था। वह संवेनशील माना गया। ऐसे मौकों पर एक संवेनशील नेता (अनुभवी पढ़ें) तनिक भी रिस्क नहीं लेता। सो, नेता को मुंह लटकाना है, और ऐसे लटकाना है कि कम से कम इतना तो हो कि कल जब अखबार में लोग उसे देखें (बाढ़ पीड़ित नहीं) तो बाढ़ की विकरालता से ज्यादा त्रासद उनका चेहरा दिखे! लोगों को पता चलना चाहिए कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र को देखने के बाद नेताजी बहुत प्रभावित हुए।अब सोचिए, जब तक वह जलमग्न क्षेत्रों को देखेगा, तब तक उसे देखते हुए स्वयं को चिंतामग्न होते दिखाना भी है। यह काम कम चुनौतियों से भरा नहीं है! आप इसे ऐसे समझें, किसी स्विमिंग पूल में नहाने वाले को जलमग्न क्षेत्र को देखकर फिलिंग लानी है! कल को अखबार में वह अपनी छपी फोटो देखें और खुद को दाद भी न दे पाएं, फिर इतने वर्षों की राजनीति करने का क्या फायदा!
सर्वेक्षण तो भारत की जनता के साथ जुड़ा हुआ है। रोजमर्रा के अनुभव से उसने जाना है कि अधिकतर सर्वेक्षण हवा हवाई होते हैं। और यहां नेता जमीनी हकीकत जानने के हवाई सर्वेक्षण कर रहा है। चाहत तो टाल सकता था, मगर हवाखोरी का अवसर कौन जाने देता है। वह हवाई जहाज की किनारे वाली सीट पर बैठ कर मन ही मन उनको जरूर नमन करता होगा, जिसने इस गरीब देश मे हवाई दौरा करने की रस्म रखी। जब वह हवाई सर्वेक्षण कर रहा होता है तब वह जानता है कि ऐसा करने से बाढ़ प्रभावित जनता कोई फायदा नहीं होगा। होगा वही जो होता आ रहा है। पिछले साल भी बाढ़ आई थी। परसाल भी वही हुआ था, जो इस साल अभी हो रहा है। उसे संतोष है कि जो भी होगा वह आपदा कोष से होगा। आपदा कोष का खयाल आते ही वो मन ही मन मुस्कुराता है। वह एकदम से दार्शनिक हो जाता है। देखा जाए तो बाढ़ क्या है! इफरात पानी। जरूरत से बहुत ज्यादा एकमुश्त पानी। पानी था तो आपदा हुई। पैसा होता तो बरकत कहते।


बाढ़ में नेता का हवाई दौरा देख कर मेरा एक मित्र कहता है कि इनको बोट से जायजा लेने जाना चाहिए था, तब अच्छे से जानते और महसूस करते। मुझे महसूस शब्द सुनकर हंसी आई। मैंने उससे कहा', इतना सोचना भी ठीक नहीं मित्र! समानुभूति छोड़ो सहानभूति ही मिल जाए, कृपा समझो! और रही बात बोट से जाने की, अगर चुनाव होते और वोट लेना होता, तो बोट से नेता जरूर जाता' मेरा वह मित्र फिर बोलता है', बरसात के मौसम में फिर चुनाव होने चाहिए!'
मैं इसके जवाब में शायर जमाली का यह शेर उसकी तरफ बढ़ा देता हूं,


'तुम आसमाँ की बुलंदी से जल्द लौट आना 
हमें ज़मीं के मसाइल पे बात करनी है'


संजय शर्मा


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