व्यक्तित्व (personality) आधुनिक मनोविज्ञान का बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रमुख विषय है। व्यक्तित्व के अध्ययन के आधार पर व्यक्ति के व्यवहार का पूर्वकथन भी किया जा सकता है।
प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण या विशेषताएं होती हो जो दूसरे व्यक्ति में नहीं होतीं। इन्हीं गुणों एवं विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है। व्यक्ति के इन गुणों का समुच्चय ही व्यक्ति का व्यक्तित्व कहलाता है। व्यक्तित्व एक स्थिर अवस्था न होकर एक गत्यात्मक समष्टि है जिस पर परिवेश का प्रभाव पड़ता है और इसी कारण से उसमें बदलाव आ सकता है। व्यक्ति के आचार-विचार, व्यवहार, क्रियाएं और गतिविधियों में व्यक्ति का व्यक्तित्व झलकता है। व्यक्ति का समस्त व्यवहार उसके वातावरण या परिवेश में समायोजन करने के लिए होता है।
जनसाधारण में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूप से लिया जाता है, परन्तु मनोविज्ञान में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के रूप गुणों की समष्ठि से है, अर्थात् व्यक्ति के बाह्य आवरण के गुण और आन्तरिक तत्व, दोनों को माना जाता है।
परिभाषाएँ
संपादित करें
मनोवैज्ञानिकों, दार्शनिकों एवं समाज-शास्त्रियों ने व्यक्ति के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न परिभाषाएं दी हैं। इस तरह व्यक्तित्व की सैकड़ों परिभाषाएं दी जा चुकी हैं। सुविधा की दृष्टि से गिलफोर्ड (Guilford] 1959) ने इन परिभाषाओं को चार वर्गों में बांट दिया है जो निम्नलिखित हैं-
1. संग्राही (Ominbus) परिभाषाएं
2. समाकलनात्मक (Integrative) परिभाषाएं
3. सोपानित परिभाषाएं (Hierarchical Definitions)
4. समायोजन (Adjustment) आधारित परिभाषाएं।
उपरोक्त वर्गों को ध्यान में रखते हुए व्यक्तित्व की परिभाषाएं इस प्रकार दी जा सकती हैं-
संग्राही या सर्वांगीण परिभाषाएं
इस वर्ग में वे परिभाषाएं आती हो जो व्यक्ति की समस्त अनुक्रियाओं, प्रतिक्रियाओं तथा जैविक गुणों के समुच्चय पर ध्यान देती है। इसमें कैम्फ (Kempf) तथा मार्टन प्रिंस की परिभाषाएं महत्वपूर्ण हैं। कैम्फ (1919) के अनुसार
व्यक्तित्व उन प्राभ्यास संस्थाओं का या उन अभ्यास के रूपों का समन्वय है जो वातावरण में व्यक्ति के विशेष सन्तुलन को प्रस्तुत करता है।
मार्टन प्रिंस (Morton Prince) के अनुसार,
व्यक्तित्व, व्यक्ति की समस्त जैविक, जन्मजात विन्यास, उद्वेग, रुझान, क्षुधाएं, मूल प्रवृत्तियां तथा अर्जित विन्यासों एवं प्रवृत्तियों का समूह है।'
(S.S) के अनुसार,
"व्यक्ति का व्यक्तिव ही उस व्यक्ति के,
व्यक्ति होने की संभावना को दर्शाता है।"
समाकलनात्मक परिभाषाएं
इस वर्ग की परिभाषाओं में व्यक्तित्व के विभिन्न रूपों, गुणों एवं तत्वों के योग पर बल दिया जाता है। इन गुणों के समाकलन से व्यक्ति में एक विशेषता उत्पन्न हो जाती है। इस वर्ग की परिभाषाओं में वारेन तथा कारमाइकल (1930) तथा मेकर्डी की परिभाषाएं उल्लेखनीय हैं।
वारेन तथा कारमाइकल (Warren and Carmichacl) के अनुसार,व्यक्ति के विकास की किसी अवस्था पर उसके सम्पूर्ण संगठन को व्यक्तित्व कहते हैं।
मेकर्डी (J.T. Mac Curdy) के शब्दों में,
व्यक्तित्व रूचियों का वह समाकलन है जो जीवन के व्यवहार में एक विशेष प्रकार की प्रवृत्ति उत्पन्न करता है।
सोपानित परिभाषाएँ
विलियन जैम्स तथा मैस्लो जैसे कुछ मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के कई सोपान बताए हैं। इन मनोवैज्ञानिकों ने मुख्य रूप से व्यक्तित्व के चार सोपान माने हैं-
1. भौतिक व्यक्तित्व (Material self)
2. सामाजिक व्यक्तित्व (Social self)
3. आध्यात्मिक व्यक्तित्व (Spiritual self)
4. शुद्ध अहम् (Pure Ego)
प्रथम सोपान के अन्तर्गत व्यक्ति के शरीर की बनावट में आनुवांशिकता से प्राप्त विशेष गुण सम्मिलित है जबकि द्वितीय सोपान में सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक विकास का उल्लेख होता है। व्यक्तित्व का तीसरा सोपान जैम्स ने आध्यात्मिक व्यक्तित्व माना है। उनके अनुसार इस सोपान वाले व्यक्ति की रूचि आध्यात्मिक विषयों में होती है और सामाजिक वह सम्बन्धों की अपेक्षा इसे अधिक महत्व देता है। अब उसके आध्यात्मिक व्यक्तित्व का विकास होने लगता है। चौथे सोपान में व्यक्ति अपने आत्म स्वरूप का पूर्ण ज्ञान कर लेता है और सभी वस्तुओं में अपनी आत्मा का दर्शन करता है और तब वह अपने व्यक्तित्व के अंतिम सोपान पर पहुंचता है। श्री अरविन्द ने भी व्यक्ति विकास के क्रम में करीब-करीब इसी प्रकार के विचार प्रकट किये हैं। उन्होंने भौतिक (Physical), भावात्मक या प्राणिक (Vital), बौद्धिक (Mental), चैत्य (Psyche), आध्यात्मिक (Spiritual) तथा अति मानसिक (Supramental) सोपानों का उल्लेख किया है।
समायोजन आधारित परिभाषाएँ
इस वर्ग की परिभाषाओं में मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के व्यक्तित्व के अध्ययन तथा व्याख्या में समायोजन (ऐडजस्टमेण्ट) को महत्वपूर्ण मानते हैं। इस वर्ग में वे परिभाषाएं आती हो जिनमें समायोजन पर सबसे अधिक बल दिया जाता है। व्यक्ति में ऐसे गुण जो उसको समायोजित करने में उसकी सहायता करते हों, चाहे वे शारीरिक हों या मानसिक उन सब का गठन इस प्रकार का होता है कि वे निरन्तर गतिशील रहते हैं। इन गुणों की गत्यात्मकता के कारण ही एक विशेष प्रकार की अनन्यता या अपूर्वता व्यक्ति में पैदा हो जाती है। बोरिंग के अनुसार,
व्यक्तित्व व्यक्ति का उसके वातावरण के साथ अपूर्व व स्थायी समायोजन है।
व्यक्ति के व्यक्तित्व को सम्पूर्ण रूप से परिभाषित करने में उपरोक्त परिभाषाएं आंशिक हैं। किसी व्यक्ति का चाहे कितने ही मानसिक या शारीरिक गुणों का योग हो, कितना ही चिन्तनशील या ज्ञानी हो, परन्तु उसके व्यवहार में गतिशीलता न होने पर उसका व्यवहार और समायोजन अधूरा रह जाता है। आलपोर्ट ने इस बात को ध्यान में रखकर अपने विचारों को व्यक्त करके व्यक्तित्व की परिभाषा को सर्वमान्य बनाने का पूर्ण एवं सफल प्रयास किया। उसकी परिभाषाएं अधिकांश मनोवैज्ञानिकों द्वारा पूर्ण परिभाषा के रूप में स्वीकार की गईं हैं। अतः इस वर्ग की परिभाषाओं में आलपोर्ट की परिभाषा महत्वपूर्ण है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you, for a message universal express.