माता देवी बिंदुरूपा नादरुप:शिवा: पिता! पूजिताभ्यां पितृभ्यां तु परमानंद एव ही! परमानंदलाभार्थ:शिवलिंग प्रपूज्येत्!!
सादेवी जगतां माता स शिवो जगत: पिता ! पित्रो: शुश्रूषके नित्यं कृपाधिक्यं ही वर्धते!!
सारा चराचर जगत बिंदु नाद स्वरूप है! बिंदु शक्ति है और नाद शिव इस तरह है! जगत शिव शक्ति स्वरूप ही है नाद बिंदु का और बिंदु इस जगत का आधार है! यह बिंदु और नाद शक्ति और शिव संपूर्ण जगत के आधार सब रूप से स्थित है! बिंदु और नाद से युक्त सब कुछ शिवस्वरूप है! क्योंकि वही सब का आधार है! आधार में ही आध का समावेश अथवा लय होता है! यही समीकरण है इस समीकरण की स्थिति से ही सृष्टि काल में जगत का प्रादुर्भाव होता है! इसमें संयस नहीं है! शिवलिंग बिंदु नाद स्रवत है! अतः उसे जगत का कारण बताया जाता है! बिंदु देवी और नाद शिव इन दोनों का संयुक्त रूप ही शिवलिंग कहलाता है! अतः जन्म के संकट से छुटकारा पाने के लिए शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए! बिंदु रूपा देवी उमा माता है और नाद स्वरूप भगवान शिव पिता! इन माता-पिता के पूजित होने से परम आनंद की प्राप्ति होती है! आनंद का लाभ लेने के लिए शिवलिंग का विशेष रूप से पूजन करें! देवी उमा जगत की माता है और भगवान शिव जगत के पिता! जो इनकी सेवा करता है उस पुत्र पर इन दोनों माता-पिता की कृपा अधिकाधिक बढ़ती रहती है! वह पूजा कर कृपा करके उसे अपना आंतरिक ऐश्वर्य प्रदान करते हैं !आंतरिक आनंद की प्राप्ति के लिए शिवलिंग को माता-पिता का स्वरूप मानकर उसकी पूजा करनी चाहिए ! भाग से शुरू है ! शक्ति प्रकृति कहलाती है ,अंतरिक्ष उपग्रह को कहते हैं, और आंतरिक अधिष्ठान भूत गर्व करती है! वह प्राकृतिक रूप से युक्त होने के कारण भगवान है !क्योंकि वही प्रकृति का जनक है, प्रकृति में जो पुरुष का सहयोग होता है यही तो उससे उसका प्रथम पुरूष कहलाता है! प्रकृति से महत्व आदि के कर्म से जो जगत का व्यर्थ होना है यही उस प्रकृति का द्वितीय जन्म कहलाता है! जीव पुरुष से ही बारंबार जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता है! माया द्वारा अन्य रूप से प्रकट किया जाना है ,उसका जन्म कहलाता है! जीव का शरीर जन्म काल से ही जीर्ण 6 विकारों से युक्त होने लगता है! इसलिए उसे जीव संज्ञा दी गई है! जो जन्म लेता है और विभिन्न पाशो द्वारा बंधन में पड़ता है उसका नाम जीव है! और बंधन जीव शब्द का अर्थ ही है! अतः जन्म-मृत्यु के बंधन की निवृत्ति के लिए जन्म के अधिष्ठान भूत मात्र पित्र स्वरूप शिवलिंग का पूजन करना चाहिए!
गाय का दूध, दही ,घी इन तीनों को पूजन के लिए शहद और शक्कर के साथ पृथक-पृथक भी रखें और इन सबको मिलाकर सम्मिलित रूप से पंचामृत भी तैयार कर ले! इनके द्वारा शिवलिंग का अभिषेक एवं स्नान कराएं! फिर गाय के दूध और अन्न के मेल से नवैध तैयार करके प्रणव मंत्र के उच्चारण पूर्वक उसे भगवान शिव को अर्पित करें! संपूर्ण प्रणव को ध्यान लिंग कहते हैं! स्वयंभू लिंग नाद स्वरूप होने के कारण नाद लिंग कहा गया है! इस प्रकार अकार, उकार, मकार बिंदु ,नाद और ध्वनि के रूप में लिंग के छह भेद हैं! इन 6 लिंगों की नित्य पूजा करने से देहधारी जीव ,जीवन मुक्त हो जाता है इसमें सयंस नहीं है!
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