सोमवार, 22 जुलाई 2019

शिवालयों में नहीं,पैर रखने की जगह


सावन माह में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने वाले युवा श्रद्धालु थोड़ा समय माता-पिता की सेवा में भी लगाएं। हाथों हाथ मिलेगा फल।


उज्जैन ! सावन माह का पहला सोमवार रहा। सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है। यही वजह रही कि सावन के पहले सोमवार को देश भर के शिवालयों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। उज्जैन के महाकाल जैसे मंदिरों में तो पैर रखने की जगह भी नहीं थी। सावन माह में शिव मंदिरों में पूजा अर्चना करने का अब फैशन हो गया है। धनाढ्य और मध्यमवर्गीय परिवार के युवा आपस में मिलकर रोजाना पूजा-अर्चना करते हैं। इन दिनों ऐसे कई युवा मिल जाएंगे जिनके माथे पर चंदन का बड़ा तिलक लगा होगा और हाथ में लच्छे  बांधे होंगे। वर्ष में 11 माह सुबह देर से उठने वाले युवा भी सावन माह में पूजा के लिए सुबह जल्दी उठ रहे हैं। इसे भगवान शिव का प्रताप ही कहा जाएगा कि सावन में अनेक लोग शराब आदि का सेवा भी नहीं करते हैं। यानि भगवान के प्रति श्रद्धा प्रकट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। घर-दुकान सारा कामकाज छोड़ कर पूजा में लगे हुए हैं। मेहनती युवा तो आसपास के सरोवर या नदी से अपने मंदिर तक कावर्ड यात्रा निकाल रहे हैं। कावड़ यात्रा और पूजा अर्चना के साथ ही सहस्त्र धाराओं का दौर शुरू हो गया है। राजस्थान जैसे प्रदेश में अभी भले ही मानसून की बरसात नहीं हुई हो, लेकिन भगवान शिव की प्रतिमा पर हजारों लीटर पानी बहाया जा रहा है। मेरा भी मानना है कि पूजा अर्चना से मन की शांति मिलती है तथा कठिन कार्य करने के लिए आत्मबल मिलता है। हम भगवान के भरोसे विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हैं। हर श्रद्धालुओं को लगता है कि भगवान उनके साथ है। इसलिए जो युवा सावन माह में रोजाना शिव मंदिरों में पूजा अर्चना कर रहे हैं, उन पर मेरा कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन अच्छा हो कि ऐसे युवा कुछ समय निकाल कर अपने माता-पिता की सेवा भी कर लें। भगवान शिव के प्रतिफल के लिए तो थोड़ा इंतजार भी करना पड़ सकता है। लेकिन माता-पिता की सेवा का फल तो हाथों हाथ मिल जाएगा। यदि मंदिर में पूजा में दो घंटे लगते हैं तो माता-पिता की 15 मिनट की सेवा से ही काम चल जाएगा। जिन परिवारों में माता-पिता हैं वे तो पहले ही पवित्र बने हुए हैं। कई माता-पिता अपने बेटों से संवाद करने के लिए लालायित रहते हैं, लेकिन बेटों की व्यस्तता की वजह से बात नहीं होती है। जिन माता-पिता का एक ही बेटा है और वह भी किसी महानगर या विदेश में नौकरी करता है तो भी ऐसे माता-पिता को अपने बेटे पर गर्व होता है। कभी किसी से शिकायत नहीं करते। भारत की सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्थाओं पर कभी अलग से लिखा जाएगा, फिलहाल सावन माह में पूजा अर्चना करने वाले युवा श्रद्धालु थोड़ा समय अपने माता-पिता की सेवा में भी लगाएं और भी कुछ नहीं तो मधुरता के साथ बात ही कर लें। मेरी भगवान शिव से प्रार्थना है कि जो युवा सावन में पूजा अर्चना कर रहे हैं उन्हें माता-पिता की सेवा करने की सद्बुद्धि प्रदान करें। यदि परिवार में माता-पिता का सम्मान नहीं है तो फिर पूजा-अर्चना का कोई फायदा नहीं है।
एस.पी.मित्तल


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