झांसी ! कामचोर रेलकर्मियों अथवा सरकारी कर्मचारियों की छंटनी होनी चाहिए, इससे किसी को कोई ऐतराज नहीं, पर यह कौन तय करेगा? वे लोग, जो खुद कामचोर हैं! इसके साथ ही इस विषय का अतिप्रचार करके सरकारी कर्मियों को सरकार द्वारा ही जनसामान्य के बीच बदनाम क्यों किया जा रहा है?
इसके अलावा इस तथाकथित परफॉर्मेंस रिव्यू में यह भी देखा जाना चाहिए कि प्रोत्साहनप्राप्त कर्मचारी वही काम कर रहा है, जिसके लिए उसका प्रोत्साहन हुआ था, क्योंकि ऐसा अक्सर देखने में आता है कि प्रोत्साहन अधिकांश उनको ही मिलता है जो अपने इमीडिएट इंचार्ज या बॉस की चापलूसी करते हैं! इस विषय पर जब सरकार ने अपने कार्मिकों की परफॉर्मेंस सुनिश्चित करने का निर्णय कर ही लिया है, तो अब उन सभी सरकारी अधिकारियों की भी परफॉर्मेंस रिव्यू की जानी चाहिए, जिन्हें सरकारी खर्च पर साल में दो-तीन बार प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजा जाता है। इसमें यह देखा जाना चाहिए कि विदेशी प्रशिक्षण प्राप्त इन अधिकारियों ने भारतीय व्यवस्था को सुधारने में क्या योगदान किया? उनको मिले इस विदेशी प्रशिक्षण का लाभ रेलवे सहित अर्थव्यवस्था, रोजगार सृजन, जनसुविधाओं के विस्तार इत्यादि में किस हद तक हुआ!
उमेश शर्मा
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